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अप्रैल की निर्वाचित पुस्तक
निर्वाचित पुस्तक

सप्ताह की पुस्तक
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रक्षा बंधन विश्वंभरनाथ शर्मा 'कौशिक' द्वारा रचित कहानी संग्रह है। इसका प्रकाशन आगरा के विनोद पुस्तक मन्दिर द्वारा १९५९ ई. में किया गया था।


"कुछ लोग भक्ति में विभोर होकर कीर्तन करते हैं और कुछ लोगों ने इसे संध्या की बैठकबाजी तथा मनोरंजन का साधन बना रक्खा है। अधिक संख्या ऐसों की ही है। परन्तु यह तो मानना ही पड़ेगा कि, धार्मिक दृष्टि से, यह मनोरंजनों की अपेक्षा उत्कृष्ट है। रायसाहब कन्हैयालाल भी ऐसे लोगों में थे जिन्होंने कीर्तन को अपना मनोरंजन बना रक्खा है। उनके घर में कृष्ण मन्दिर था। कृष्ण-मन्दिर में ही कीर्त्तन होता था। रायसाहब के कुछ परिचित तथा कुछ वेतन-भोगी लोग सन्ध्या को ७ बजे आ जाते थे और नौ बजे तक कीर्तन करते थे। चलते समय उन्हें एक एक दोना प्रसाद मिलता था। कुछ लोक तो केवल प्रसाद के लालच से ही आकर सम्मिलित हो जाते थे। मनोरंजन का मनोरंजन और प्रसाद घाते में। कभी-कभी पास-पड़ौस की कुछ महिलायें भी आ जाती थीं। जिस दिन महिलाओं का सहयोग प्राप्त हो जाता था उस दिन कीर्तन करने वाले अपना पूरा जोर लगा देते थे। कुछ लोगों के लिए महिलाओं की उपस्थिति स्फूर्ति-दायक होती है।..."पूरा पढ़ें)


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पूर्ण पुस्तक
पूर्ण पुस्तकें

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साफ़ माथे का समाज अनुपम मिश्र द्वारा लिखित पुस्तक है। इसका प्रकाशन "पेंगुइन", (दिल्ली) द्वारा २००६ ई॰ में किया गया।

"इस सृष्टि की रचना जल से हुई है और मनुष्य ही नहीं; समूची सृष्टि को निर्मित करने वाले क्षिति, जल, पावक, गगन और समीर नामक पंचभूतों में एक जल भी है। मानव जाति का इतिहास भी जल से जुड़ा हुआ है। आदमी की आदि प्रजाति अमीबा की उत्पत्ति जल के बिना संभव ही नहीं थी। अधिकांश सभ्यताओं का विकास भी नदियों के किनारे हुआ है। आज भी महत्वपूर्ण नगर किसी न किसी नदी के किनारे ही अवस्थित हैं। गांवों के भी आस-पास छोटी-बड़ी नदी बहती रही है और पहले तालाबों और बग़ीचों से तो गांव घिरा ही रहता था। तब खेती के लिए किसानों को किसी कीटनाशक या रासायनिक खाद का उपयोग करने की कोई ज़रूरत नहीं होती थी। पेड़-पत्तों और घर के कूड़े से बनी जैविक खाद ही ज़मीन की उर्वरता को लगातार बढ़ाती जाती थी।" ...(पूरा पढ़ें)


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सहकार्य

इस माह शोधित करने के लिए चुनी गई पुस्तक:
  1. Kabir Granthavali.pdf ‎[९२१ पृष्ठ]
  2. जायसी ग्रंथावली.djvu ‎[४९८ पृष्ठ]
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रचनाकार
रचनाकार

अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध' (15 अप्रैल 1865 — 16 मार्च 1947) हिंदी भाषा के कवि, निबंधकार तथा संपादक थे। विकिस्रोत पर उपलब्ध उनकी रचनाएँ:

  1. प्रियप्रवास (1914), खड़ी बोली हिंदी का पहला महाकाव्य जो कृष्ण के गोकुल से मथुरा प्रवास की घटना पर आधारित
  2. चोखे चौपदे (1924), हरिऔध हजारा नाम से भी प्रसिद्ध इस पुस्तक में एक हजार चौपदे हैं
  3. वेनिस का बाँका (1928), अंग्रेजी नाटक मर्चेंट ऑफ वेनिस का अनुवाद
  4. रसकलस (1931), मुक्तकों का संग्रह
  5. रस साहित्य और समीक्षायें (१९५६), आलोचनात्मक निबंधों का संग्रह
  6. हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास

आज का पाठ

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गिरिधरदास रामचंद्र शुक्ल द्वारा रचित हिन्दी साहित्य का इतिहास का एक अंश है जिसके दूसरे संस्करण का प्रकाशन काशी के नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा १९४१ ई॰ में किया गया।

"गिरिधरदास—ये भारतेंदु बाबू हरिश्चंद्र के पिता थे और ब्रजभाषा के बहुत ही प्रौढ़ कवि थे। इनका नाम तो बाबू गोपालचंद्र था पर कविता में अपना उपनाम ये 'गिरिधरदास', 'गिरिधर', 'गिरिधारन' रखते थे। भारतेंदु ने इनके संबंध में लिखा है कि "जिन श्री गिरिधरदास कवि रचे ग्रंथ चालीस"। इनका जन्म पौष कृष्ण १५ संवत् १८९० को हुआ। इनके पिता काले हर्षचंद, जो काशी के एक बड़े प्रतिष्ठित रईस थे, इन्हें ग्यारह वर्ष के छोड़ कर ही परलोक सिधारे। इन्होंने अपने निज के परिश्रम से संस्कृत और हिंदी में बड़ी, स्थिर योग्यता प्राप्त की और पुस्तकों का एक बहुत बड़ा अनमोल संग्रह किया।..."(पूरा पढ़ें)

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