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अप्सरा/अगला भाग ७

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अप्सरा
सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला'

पृष्ठ १२० से – १४० तक

 

अप्सरा "साथ राजकुमार थे?" "श्राप तब कहाँ थे ?' "लखनऊ। किसानों का संगठन कर रहा था, पर बचकर, क्योकि मुझे काम ज्यादा प्यारा था ।" 'फिर " "लखनऊ में सरकारी खजाने पर डाका पड़ा। शक पर मैं भी गिरफ्तार कर लिया गया। पर मेरी गैरहाजिरी ही साबित रही। पुलिस के पास कोई बड़ी शिकायत नहीं थी। सिर्फ नाम दर्ज था। .खुफियावाले मुझे भला आदमी जानते थे। कोई सुबूत न रहने से जमानत पर छाड़ दिया गया।" "आप कब गिरफ्तार किए गए ?" ":-सात रोज हुए होंगे। अखबायें में छपा था।" "राजकुमार को कब मालूम हुआ ?" "जिस रोज भाभी को ले आए। उसी रात को तुम्हारे यहाँ।" कनक एक बार प्रणय से पुलकित हो गई। "देखिए, कैसी चालाकी, मुझे नहीं बतलाया, मुमसे नाराज होकर आए थे।" हाँ, सुना है, तुमसे नाराज हो गए थे। भाभी से बतलाया भी नहीं था । पर एक दिन उनकी चोरी भाभी ने पकड़ ली, तुम्हारे यहाँ से जो कपड़ा पहनकर गए थे, उसमें सिंदूर लगा था।" ___ कनक शरमा गई । श्रच्छा, यह सब भी हो चुका है " हँसती हुई चल रही थी। __"हाँ, राजकुमार की मदद के लिये यहाँ आने पर मुझे मालूम हुआ कि कुँवर साहब ने उनको गिरफ्तार करने का हुक्म दिया है। यहाँ मेरी भाभी के पिता नौकर हैं। गिरफ्तार करनेवालों में उनके गॉव का भी एक आदमी था। उसने उन्हें खबर दी। तब मैंने उसे सम- माया कि अपने आदमियों को बहकाकर मुझे ही गिरातार होनेवाला अप्सरा आदमी बतलाए, और गिरफ्तार करा दे। राजकुमार की रक्षा के लिये मैं और कई आदमियों को छोड़कर गिरफ्तार हो गया। मैं जानता था कि तुम मुझे नहीं पहचानती, इसलिये मैं छूट जाऊँगा । राजकुमार की गिरफ्तारी की वजह भी समझ में नहीं आ रही थी।" _____ कनक ने बतलाया कि उसी ने, अपनी सहायता के लिये, राजकुमार को गिरफ्तार करने का कुवर साहब से आग्रह किया था। ___धीरे-धीरे गाँव नजदीक आ गया । कनक ने थककर कहा "अभी कितनी दूर है " "बस आ गए।" "आपने अभी नाम नहीं बतलाया।" ____“मुझे चंदन कहते हैं। हम लोग अब नजदीक आ गए । इन कपड़ों से गाँव के भीतर जाना ठीक नहीं । मैं पहले जाता हूँ, भाभी की एक साड़ी ले आऊँ, फिर तुम्हें पहनाकर ले जाऊँगा । एक दूसरे कपड़े में तुम्हारे ये सब कपड़े बाँध लूँगा। घबराना मत । इस जंगल में कोई बड़े जानवर नहीं रहते। ___कनक को ढाँढस बँधा चंदन भाभी के पास चला। वहाँ से गॉव चार फलीग के करीब था।थोड़ी रात रह गई थी। दरवाजे पर धका सुनकर तारा पलँग से उठी। नीचे उतरकर दर- वाजा खोला । चंदन को देखकर चाँद की तरह खिल गई-"तुम श्रा गए ? लेहार्थी शिशु की दृष्टि से भाभी को देखकर चंदन ने कहा- "भाभी, मैं रावण से सीता को भी जीत लाया ।" तारा तरंगित हो उठी।-"कहाँ है वह ?" ____ पीछेवाले जंगल में । बँगले से खाई तैराकर लाया। वहाँ बड़ी खराब स्थिति हो रही थी। अपनी एक साड़ी दो बहुत जल्द, और एक चादर ओढ़ने के लिये, और एक ओर उसके कपड़े बाँधने के लिये। तुरंत एक अच्छी साडी और दो चट्टर निकालकर चंदन को देते हुए अप्सरा ११५ तारा ने कहा-"हाँ, एक बात याद आई, जरा ठहर जाओ, मैं भी चलती हूँ, मेरे साथ आएगी, तुम अलग हो जाना, जरा कड़े और छड़े निकाल । तारा का दिया हुआ कुल सामान चंदन ने लपेटकर ले लिया। फिर आगे-आगे ताय को लेकर जंगल की तरफ चला। कनक प्रतीक्षा कर रही थी । शीघ्र ही दोनो कनक के पास पहुँच गए । कनक को देखकर तारा से न रहा गया। "बहन, ईश्वर की इच्छा से तुम राक्षसों के हाथ से बच गई।" कहकर ताय ने कनक का गले से लगा लिया। हृदय में जैसी सहानुभूति का सुख कनक को मिल रहा था, ऐसा उसे आज ओवन में नया ही मिला था। सो के लिये स्त्री की सहानु- भूति कितनी प्रखर और कितनी सुखद होती है, इसका आज ही उसे अनुभव हुथा। तारा ने साड़ी देकर कहा-"यह सब खोलकर इसे पहन लो कनक ने गीले वल उतार दिए । तारा ने चंदन से कहा-"छोटे साहक, ये कड़े पहना दो, देखें, कलाई में कितनी ताकत है।" चंदन ने कड़े डालकर दोनो हाथ घुटनों के बीच रखकर, जोर लगाकर पहना दिए, फिर छड़े भी। युवती ने चंदन की इस ताकत के लिये तारीफ की, फिर कनक से घट्टर ओढ़कर साथ चलने के लिये कहा । कनक चदर ओढ़ने लगी, तो युवती ने कहा- नहीं, इस तरह नहीं, इस तरह ।” कनक को चद्दर श्रोढ़ा दी। आगे-आगे तारा, पीछे-पीछे कनक चली। चंदन ने कनक के कपड़े पाँध लिए और दूसरी राह के मिलने तक साथ-साथ चला। तारा चुटकियाँ लेती हुई बोली-छोटे साहब, इस वक आप क्य ___ कनक हँसी । चंदन ने कहा-"एक दर्जा महावीर से बढ़ गया केवल नंबर देने ही नहीं गया, सीता को भी जीव लाया १५. असर थोड़ी ही दूर पर एक दूसरी राह मिली । चंदन उससे होकर चला। युवती कनक को लेकर दूसरी से चली। प्रथम ऊपा का प्रकाश कुछ-कुछ फैलने लगा था। उसो समय ताय कनक को लेकर पिता के मकान पहुँची, और अपने कमरे में, जहाँ राजकुमार सो रहा था, ले जाकर, दरवाजा बंद कर लिया। कुछ देर में चंदन भो आ गया । कनक थक गई थी। युवती ने पहले राजकुमार के पलंग पर सोने के लिये इंगित किया। कनक को लजित खड़ी देख बाल के दूसरे पलँग पर सस्नेह बाँह पकड़ बैठा दिया, और कहा-"भायम करो, वड़ी तकलीफ मिली" कनक के मुरमाए हुए अधर खिल गए। चंदन ने पेशवाज सुखाने के लिये युवती को दिया । उसने लेकर कहा-"देखो, वहाँ चलकर इसका अग्नि-संस्कार करना है।" चंदन थक रहा था। राजकुमार की बग़ल में लेट गया। युवती सबकी देख-रेख में रही। धीरे-धीरे चंदन भी सो गया। कनक कुछ देर तक पड़ी सोचती रही । मा की याद आई। कहीं ऐसा न हो कि उसकी खोज में उसी वक, स्टेशन मोटर दौड़ाई गई हो, और तब तक गाड़ी न आई हो, वह पकड़ ली गई हो। समय का अंदाजा लगाया । गाड़ी साढ़े तीन बजे रात को आती है। चढ़ जाना संभव है। फिर राजकुमार की बातें सोचती कि न-जाने यह सब इनके विचार में क्या भाव पैदा करे । कभी चंदन की और कभी तारा की चातें सोचती, ये लोग कैसे सहृदय हैं ! चंदन और राजकुमार में कितना प्रेम ! तारा उसे कितना चाहती है ! इस प्रकार, उसे नही मालुम, उसकी इस सुख-कल्पना के बीच कब पलकों के दल मुद गए। ___ कुछ दिन चढ़ थाने पर राजकुमार की आँखों ने एक बार चिंता के जाल के भीतर से बाहर प्रकाश के प्रति देखा। चंदन की याद आई। उठकर बैठ गया 'बहूजी झरोखे के पास एक बाजू पकड़े हुए बाहर ७ अप्सरा की सड़क की तरफ देख रही थीं। कोलाहल, कौतुक-पूर्ण हास्य तथा वार्तालाप के अशिष्ट शब्द सुन पड़ते थे। ___ राजकुमार ने उठकर देखा, वराल में चंदन सो रहा था। एक पलँग और बिछा था। कोई चट्टर से सर से पैर तक ढके हुए सो रहा था। चंदन को देखकर चिंता की तमाम गाँठे आनंद के मरोर से खुल गई । जगाकर उससे अनेक बातें पूछने के लिये इच्छात्रों के रंगीन उत्स रोएँ-राएँ से फूट पड़े। उठकर बहू के पास जाकर पूछा ये कब आए ? जगा दें ?" "बातें इस तरह करो कि बाहर किसी के कान में आवाज न पड़े, . और जरूरत पड़ने पर तुम्हें साड़ी पहनकर रहना होगा।" राजकुमार जल गया-क्यों.? "बड़ी नाजुक हालत है, फिर तुम्हें सब मालूम हो जायगा।" “पर मैं साड़ी नहीं पहन सकता। अभी से कहे देता हूँ।" "अर्जुन तो साल-भर विराट के यहाँ साड़ी पहनकर नाचते रहे, तुमको क्या हो गया ?" "वह उस वक्त नपुंसक थे।" "और इस वक्त, तुम | उससे पीछा छुड़ाकर नहीं भरो ?" राजकुमार लजित प्रसन्नता से प्रसंग से टल गया। पूछा-यह कौन हैं, जो पलंग पर पड़े हैं ? "मुह खोलकर देखो।" "नाम ही से पता चल जाया। "हमें नाम से काम ज्यादा पसंद है।" "अगर कोई अजान आदमी हो?" "तो जान-पहचान हो जायगी।" • "सो रहे हैं, नाराज होंगे। "कुछ बकझक लेंगे, पर जहाँ तक अनुमान है, जीत नहीं सकते।" . "कोई रिश्तेदार हैं शायद ?" ११८ अप्सरा ___ तभी तो इतनी दूर तक पहुँचे हैं।" ___ राजकुमार पलंग के पास गया। चादर रेशमी और मोटी थी, मुंह देख नहीं पड़ता था। धीरे से उठाने लगा। तारा खड़ी हँस रही थी। खोलकर देखा, विस्मय से फिर चादर उढ़ाने लगा । कनक की ऑखे खुल गई । चादर उढ़ाते हुए राजकुमार को देखा, उठकर बैठ गई। देखा, सामने तारा हँस रही थी। लज्जा से उठकर खड़ी हो गई। फिर तारा के पास चली गई । मुख उसी तरह खुला रक्खा। वार्तालाप तथा हँसी-मजाक की ध्वनि से चंदन की नींद उखड़ गई। उठकर देखा, तो सब लोग उठे हुए थे। राजकुमार ने बड़े उत्साह से बाहों में भरकर उसे उठाकर खड़ा कर दिया। .. ____ तारा और कनक दोनो को देख रही थीं। दोनो एक ही-से थे। राजकुमार कुछ बड़ा था। शरीर भी कुछ भरा हुआ । लोटे में जल रखा था । राजकुमार ने चंदन को मुंह धोने के लिये दिया। खुद भी उसी से ढालकर मुंह धोते हुए पूछा-"कल जब मैं आया, तब लोगों से मालूम हुआ कि तुम आए हो, पर कहाँ हो, क्या बात है, बहूजी से बहुत पूछा, पर वह टाल गई।" __ "फिर बतलाऊँगा । अभी समय नहीं । बहुत-सी बातें हैं। अंदाजा लगा लो । मैं न जाता, तो इनकी बड़ी संकटमय स्थिति थी, उन लोगों के हाथ से इनकी रक्षा न होती!" ___हाँ, कुछ-कुछ समझ में आ रहा है।" "देखो, हम लोगों को श्राज ही चलने के लिये तैयार हो जाना चाहिए, ऐसी सावधानी से कि पकड़ में न आएँ।" "क्यों " "तुम्हें गिरफ्तार करने का पहले ही हुक्म था, और तुम्हारी इन्होने आज्ञा निकाली थी। उसी पर मैं गिरफ्तार हुआ. तुम्हें बचाने के लिये, क्योंकि तुम सब जगहों से परिचित नहीं थे। फिर जब पेश हुआ, तब इनके दुबारा गाने का प्रकरण चल रहा था, बँगले में, खास महफिल थी।" चंदन ने हाथ पोंछते हुए कहा । अप्सरा ११६ "हैमिल्टन साहब भी आए थे।" कनक ने कहा । "फिर ?" राज- कुमार ने चंदन से पूछा। संक्षेप में कुल हाल चंदन बतला गया । युवती कनक को लेकर बगलवाले कमरे में चली गई। "आज ही चलना चाहिए।" चंदन ने कहा । "चलो।" "चलो नहीं, चारों तरफ लोग फैल गए होंगे। इस व्यूह से बचकर निकल जाना बहुत मामूली बात नहीं। और, तअज्जुब नहीं कि लोगों को दो-एक रोज़ में बात मालूम हो जाय।" "गाड़ी सजा लें, और उसी पर चले चलें।" 'स्टेशन।" "खूब ! तो फिर पकड़ जाने में कितनी देर है !" "फिर " " "औरत बन सकते हो ?" Ma" चंदन हँसने लगा। कहा-"हाँ भई, तुम औरतवाले कैसे औरत बनोगे ? पर मैं तो बन सकता हूँ।" "यह तो पहले ही से बने हुए हैं। कहती हुई मुस्किराती कनक के साथ युवती कमरे में आ रही थी। युवती कनक को वहीं छोड़कर भोजन-पान के इंतजाम के लिये चली गई। चंदन को कमरा बंद कर लेने के लिये कह दिया। चंदन ने कमरा बंद कर लिया। कनक निष्कृति के मार्ग पर आकर देख रही थी, उसके मानसिक भावों में युवती के संग-मात्र से तीब्र परिवर्तन हो रहा था। इस परि- वर्तन के चक्र पर जो शान उसके शरीर और मन को लग रही थी, उससे उसके चित्त की तमाम वृत्तियाँ एक दूसरे ही प्रवाह से तेज बह रही थीं, और इस धारा में पहले की तमाम प्रखरता मिटी जा रही १२० अप्सरा थी, केवल एक शांत, शीतल अनुभूति चित्त की स्थिति को दृढ़तर कर रही थी, अंगों की चपलता उस प्रवाह से तट पर तपस्या करती हुई- सी निश्चल हो रही थी। राजकुमार चंदन से उसका पूर्वापर कुछ प्रसंग एक-एक पूछ रहा था। चंदन बतला रहा था। दोनों के वियोग के समय से अब तक की संपूर्ण घटनाएँ, उनके पारस्परिक संबंध वार्तालाप से जुड़ते जा रहे थे। "तुम विवाह से घबराते क्यों हो ?" चंदन ने पूछा। "प्रतिज्ञा तुम्हें याद होगी।" राजकुमार ने शांत स्वर से कहा ।। "वह मानवीय थी, यह संबंध दैवी है, इसमें शक्ति ज्यादा है।" "जीवन का अर्थ समर है।" "पर जब तक वह कायदे से, सतर्क और सरस अविराम होता रहे। विक्षिप्त का जीवन जीवन नहीं, न उसका समर समर।" मैं अभी विक्षिप्त नहीं हुआ। ___चोट खा वर्तमान स्थिति को कनक भूल गई । अत्रस्त-दृष्टि, अकुंठित कंठ से कह दिया-"मैंने विवाह के लिये कब, किससे प्रार्थना की" चंदन देखने लगा। ऐसी आँखें उसने कभी नहीं देखीं। इनमें कितना तेज! ___ कनक ने फिर कहा-राजकुमारजी, आपने स्वयं जो प्रतिज्ञा की है, शायद ईश्वर के सामने की है, और मेरे लिये जो शब्द आपके है- आप ईडन गार्डेन की बातें नहीं भूले होंगे वे शायद वारांगना के प्रति हैं ? ___ चंदन एक बार कनक की आँखें और एक बार नत राजकुमार को देख रहा था। दोनो के चित्र सत्य का फैसला कर रहे थे। ____ तारा ने दो नौकरों को बारी-बारी से दरवाजे पर बैठे रहने के लिये तैनात कर दिया । कह दिया कि बाहरी लोग उससे पूछकर भीतर आ। शोरगुल सुनकर वह ऊपर चली गई, देखा, कनक जैसे एकांत में अप्सरा बैठी हुई हो । उसके चेहरे की उदास, चिंतित चेष्य से तारा के हृदय मे उसके प्रति स्नेह का स्रवण खुल गया। उसने युवकों की तरफ देखा। राजकुमार मुँह मोड़कर पड़ा हुआ परिस्थिति से पूर्ण परिचित करा रहा था। मामी को गंभीर मुद्रा से देखते हुए देखकर चंदन ने अकुंठित खर से कह डाला-"महाराज दुष्यंत को इस समय दिमाग की गर्मी से विस्मरण हो रहा है, असारथली के यहाँ का गुलाब-जल चाहिए।" कनक मुस्किराने लगी। ताय हँसने लगी। ___ "तुम यहाँ आकर आराम कये," कनक से कहकर, तारा ने चंदन से कहा-"छोटे साहब, जरा तकलीफ कीजिए, इस पलँग को उठा- कर उस कमरे में डाल दीजिए, दूसरे को अब इस वक्त न बुलाना ही ठीक है। कनक को लेकर वारा दूसरे कमरे में चली गई। "उठो जी, पलँग बिछाओ," चंदन ने राजकुमार को खोदकर कहा। राजकुमार पड़ा रहा। हँसते हुए पलँग उठाकर चंदन ने बरालवाले कमरे में डाल दिया। विस्तर बिछाने लगा। तारा ने विस्तर छीन लिया । खुद बिछाने लगी। कनक की इच्छा हुई कि तारा से बिस्तर लेकर बिछा दे, पर इच्छा को कार्य का रूप न दे सकी, खड़ी ही रह गई, तारा के प्रति एक श्रद्धा का भाव लिए, और इसी गुरुता से उसे मालूम हुआ जैसे उसका मेरुदङ झुककर टूट जायगा। . तारा ने चंदन से कहा-'यही दो घड़े पानी भी ले आइए।" चंदन चला गया। सारा कनक को बैठाकर बैठ गई और राजकुमार की बातें साधत पूछने लगी। चंदन ने कहा, आगे एक स्टेशन चलकर गाड़ी पर चढ़ना है। चंदन पानी ले आया, तो तारा ने कहा--"एक काम और है, आप लोग भी पानी भरकर जल्द नहा लीजिए, और आप जरा बीचे मुन्नी से कह दीजिए कि वह हरपालसिंह को बुला लावे, अम्मा शायद अब अप्सरा रोटियाँ सेंकती होंगी, आज खुद ही पकाने लगीं, कहा, अब चलते वक्त, रोटियों से हैरान क्यों करें ?" ____ चंदन चला गया। तारा फिर कनक से बातचीत करने लगी। तारा के प्रति पहले ही व्यवहार से कनक आकर्षित हो चुकी थी। धीरे-धीरे वह देखने लगी। संसार में उसके साथ पूरी सहानुभूति रखनेवाली केवल तारा है। कनक ने पहलेपहल तारा को जब दीदी कहा, उम समय कनक के हृदय पर रक्खा हुआ जैसे तमाम बोझ उतर गया। दीदी की एक स्नेह-सिक्त दृष्टि से उसकी थकावट, कुल अशांति मिट गई। पारिवारिक तथा समाज के सुख से अपरिचित कनक ने स्नेह का यथार्थ मूल्य उसी समय सममा । उसकी बाधाएँ आप-ही-आप दूर हो गई। अब जैसे भूली हुई वह एकाएक राज-पथ पर आ गई हो। राजकुमार के प्रथम दर्शन से लेकर अब तक का पूरा इतिहास, अपने चित्त के विक्षेप की सारी कथा, राजकुमार से कुछ कह न सकने की लज्जा सरल सलज मंद स्वर से कहती रही। __राजकुमार बरालवाले कमरे में जाग रहा था, अपनी पूरी शक्ति से, इस आई हुई अड़चन को पार कर जाने के लिये, चिंताओं की छलॉग मार रहा था। कभी-कभी उठती हुई कल हास्य-ध्वनि से चौंककर अपने वैराग्य की मात्रा बढ़ाकर चुप हो.जाता।। वंदन अपना काम पूरा कर आ गया। पलंग पर बैठकर कहा- उठो, तुम्हें एक मजेदार बात सुनाऊँ। राजकुमार जागता था ही, उठकर बैठ गया। "सुनो, कान में कहूँगा" चंदन ने धीरे से कहा। राजकुमार ने चंदन की तरफ सर बढ़ाया। चंदन ने पहले इधर-उधर देखा, फिर राजकुमार के कान के पास मॅह ले गया। राजकुमार सुनने के लिये जब खूब एकाग्र हो गया, तो चुपके से कहा, "नहायोगे नहीं ? विरक्ति से राजकुमार लेटने लगा। चंदन ने हाथ पकड़ लिया- "वस अब, उधर देखो, मुकदमा दायर है, अब पुकार होती ही है।" अप्सरा १२३ "रहने भी दो, मैं नहीं नहाऊँगा।" राजकुमार लेट रहा। एक बराल चंदन भी लेट गया-'मैं तो प्रातः स्नान कर चुका हूँ।" नीचे हरपालसिंह खड़ा था । मुन्नी दीदी दीदी पुकारती हुई ऊपर चढ़ गई। कमरे से निकलकर तारा ने हरपालसिंह को ऊपर बुलाया। चंदन और राजकुमार उठकर बैठ गए ! उसी पलँग पर तारा ने हरपालसिंह को भी बैठाया। हरपालसिंह चंदन और राजकुमार को पहचानता था। "कहिए बाबू, कल आप बच गए।" रामकुमार से कहता और शारे करता हुआ बैठ गया। फिर राजकुमार की दाहनी बाँह पकड़- कर मुस्किराते हुए कहा..."बड़े कस हैं।" राजकुमार बैठा रहा । तारा स्नेह की दृष्टि से राजकुमार को देख रही थी, जैसे उस दृष्टि से कह रही हो, आपकी बातें मालूम हो गई। दृष्टि का कौतुक बतला रहा था, तुम्हारा अपराध है। तारा का मौन फैसला समझकर चंदन चुपचाप मुस्किय रहा था। रात की खबर अब तक तीन कोस से ज्यादा फासले सक फैल चुकी थी। हरपालसिंह को भी खबर मिली थी। चंदन के भग पाने का उसने निश्चय कर लिया था। पर बाईजी के भगाने का कारण वह नहीं समझ सका। कमरे में इधर-उधर नजर दौड़ाई, पर बाईजी को न देखकर वह कुछ व्यप्र-सा हो रहा था। जैसी व्यग्रता किसी सत्य की श्रृंखला न मिलने पर होती है। ____ इसी समय तारा ने धीमे स्वर से कहा-"भैया, तुम सब हाल जानते ही हो, बल्कि सारी कामयावी तुम्हीं से हुई, अब थोड़ा-सा सहारा और कर दो, तो खेवा पार हो जाय।" हरपालसिंह ने फटाफट तंबाकू माड़कर अंतर्दृष्टि होते हुए फाँककर जीम से नीचे के होंठ में दबाते हुए सीना तानकर सर के साथ बंद पलकें एक तरफ मरोड़ते हुए कहा हूँ--" तंबाकू की माड़ से चंदन को छींक आ गई। किसी को छींक हे सर शुभ वातालाप के समय शंका न हो. इस विचार से सचेत हरपालसिह ने एक बार सबको देखा, फिर छहा-प्रसगुन नहीं है, तंबाकू की झार से छोक आई है।" ___ नारा ने कहा- भैया, आज शाम को अपनी गाड़ी ले आओ और चार जन और साथ चले चलो, अगले स्टेशन में छोड़ पाओ, छेटे साहब वाईजी को भी बचाकर साथ ले आए हैं न, नहीं तो वहाँ उनका उन बदमाशों से छुटकारा न होता, बाईजी ने बचाने के लिये कहा, फिर संकट में भैया आदमी ही आदमी का साथ देता है, भला कैसे छोड़कर पाते ? ___ हरपालसिंह ने डंडा सँभालकर मुट्टी से जमीन में दबाते हुए एक पीक वहीं थूककर कहा-“यह तो छत्री का धर्म है । गोसाइजी ने लिखा है- खुकुल रोति सदा चलि आई; प्रान नायँ पै बचन न जाई।" फिर राजकुमार का कल्ला दबाते हुए कहा-"आप तो अँगरेजी पढ़े हो, हम तो बस थोड़ी-बाड़ी हिंदी पढ़े ठहरे, है न ठीक बात ___ राजकुमार ने जहाँ तक गंभीर होते बना, वहाँ तक गंभीर होकर कहा-"आप ठीक कहते हैं।" तारा ने कहा- तो भैया, शाम को आ जाओ, कुछ रात बीते चलना है।' ___ बस चैल घरकर आए कि हम जोतकर चले, कुछ और काम तो ____ "नहीं भैया, और कुछ नहीं।" ___ हरपालसिंह ने उठकर ताय के पैर छुए और खटाखट जीने से उतर- कर बाहर श्रा, आल्हा अलापना शुरू कर दिया-“दूध लजाबैं ना माता को, चहै तन धजी-धजी उड़ जाय; जोते बैरी हम ना राखें, हमरो क्षत्री धरम नसाय ।" गाते हुए चला गया। "रज्जू बाबू, गलती आपकी है।" तारा ने सहज स्वर में कहा। असरा ____"लो, मैं नहीं कहता था कि मुकदमा दायर है, फैसला छोटी अदालत का ही रहा। चंदन ने हँसते हुए कहा। ___ राजकुमार कुछ न बाला । उसका गांभोयं तारा को अच्छा नहीं लगा। कहा-"यह सब वाहियात है, क्यों रज्जू बाबू, मेरी बात नहीं मानागे ? देखो, मैं तुम्हें यह संबंध करने के लिय कहती हूँ" ____ "अगर यह प्रस्ताव है, तो मैं इसका अनुमोदन और समर्थन करता हूँ", चंदन ने हँसते हुए कहा । चंदन की हँसी राजकुमार के अंगों में तीर की तरह चुभ रही थी। "और अब आज से वह मेरी छोटी बहन है," ताय ने जोर देते हुए ____ "तो मेरी कौन हुई ?" चंदन ने शब्दों को दबाते हुए पूछा । तारा अप्रतिम हो गई। पर सँभलकर कहा-'यह दिल्लगी का वक्त नहीं है। चंदन चुपचाप लेट गया। दूसरी तरफ़ से राजकुमार को खोदकर फिसफिसाते हुए कहा- आप कर क्या रही हैं ?" ___“यार, तुम्हारा लड़कपन नहीं छूटा अभी ।" राजकुमार ने डॉट दिया। ___ चंदन भीतर-ही-भीतर हँसते-हँसते फूल गया, तारा नीचे उतर गई। एक बार तारा को झाँककर राजकुमार से कहा- तुम्हारा जवानपन बलवला रहा है, यह तो देख ही रहा हूँ।" ___ तारा नोबे से लाटा और एक साड़ो लेकर आ रही थी। राजकुमार के कमरे में आकर कहा-"नहा डालो रज्जू बाबू, देर हो रही है, भोजन तैयार हो गया होगा।" __“आज नहाने को इच्छा नहीं है।" व्यथं तबियत खराब करने से क्या फायदा ?" हँसती हुई न नहाने से यह बला टन थोड़े ही सकती है " 'उठो, अघोर-पंथ से घिनवाकर लोगों को भगाओगे क्या ? जैसा पाला साबन और एसेंस-पंथियों से पड़ा है, तुम्हारे अघोर-पंथ के भूत उतार दिए जायेंगे। चंदन ने पड़े हुए कहा। और आप, आप भी जल्दी कीजिए।" हँसती हुई तारा ने चंदन से कहा।

"अब बार-बार क्या नहाऊँ ? पिछली रात नहा तो चुका, और ऐसे-वैसे स्नान नहीं, स्त्री-रूपी नदी को छूकर पहला स्नान, सरोवर मे दूसरा, फिर डेढ़ घंटे तक श्रोस में तीसरा, और जो गीले कपड़ों में रहा, वह सब ब? खाते।" चंदन ने हँसते हुए कहा।

तारा हँसती रही। राजकुमार से एक बार और नहाने के लिये कहकर कनक के कमरे में चलो गई।

मकान के अंदर कुआँ था। महरी पानी भर रही थी। राजकुमार नहाने चला गया।

मुन्नो भोजन के लिये राजकुमार और चंदन को बुलाने आया था। कएँ पर राजकमार को नहाते देखकर बाहर चला गया।

अभी तक घर को लियों को कनक की खबर न थी। अकारण घृणा की शंका कर तारा ने किसी से कहा भी नहीं था। अधिक भय उसे रहस्य के खुल जाने का था। कनक को नहलाकर वह माता के पास जाकर एक थाली में भोजन परोसवा लाई। माता ने पूछा, यह किसका भोजन है?

एक मेहमान आए हैं, फिर आपसे मिला दूंगी, संक्षेप में समाप्त कर ताप थाली लेकर चली गई।

कनक बैठी हुई तारा की सेवा, स्नेह, सहृदयता पर विचार कर रही थी। बातचीत से कनक को मालूम हो गया था कि तारा पढ़ी-लिखो है और मामूली अँगरेजी भी अच्छी जानती है। उसके इतिहास के प्रसंग पर जिन अँगरेजों के नाम आए थे, ताय ने उनका बड़ा सुंदर उचारण किया था, और अपनी तरफ से भी एकाध अगरेजी के शब्द कहे थे। "ताय का जीवन कितना सुखमय है"कनक सोच रही थी और जितनी ही उसकी आलोचना कर रही थी,अपने तमाम स्त्री-स्वभाव से उसके उतने ही निकट होती जा रही थी,जैसे लोहे को चुंबक देख पढ़ा हो। अप्सय १२० तारा ने जमीन पर आसन डालकर थाली रख दी और भोजन के लिये सस्नेह कनक का हाथ पकड़ उठाकर बैठा दिया । कनक के पास इस व्यवहार का, वश्यता स्वीकार के सिवा और कोई प्रतिदान न था । वह चुपचाप आसन पर बैठ गई, और भोजन करने लगी। वहीं तारा भी बैठ गई। . "दीदी, मैं अब आप ही के साथ रहूँगी।" तारा का हृदय भर पाया । कहा- मैंने पहले ही यह निश्चय कर लिया है। हम लोगों में पुराने खयालात के जो लोग हैं, उन्हें तुमसे कुछ दुराव रह सकता है, क्योंकि वे लोग उन्हीं खयालात के भीतर पले हैं, उनसे तुम्हें कुछ दुःख होगा, पर बहन, मनुष्यों के अज्ञान की मार मनुष्य ही तो सहते हैं, फिर स्त्री तो सिर्फ क्षमा और सहनशीलता के कारण पुरुष से बड़ी है। उसके यही गुण पुरुष की जलन को शीतल करते हैं।" कनक सोच रही थी कि उसकी दीदी इसीलिये मोम की प्रतिमा बन गई है। __तारा ने कहा-"मेरी अम्मा, छोटे साहब की मा, शायद वहाँ तुमसे कुछ नफरत करें, और अगर उनसे तुम्हारी मुलाकात होगी, तो मैं उनसे कुछ छिपाकर नहीं कह सकूँगी, और तुम्हारा वृत्तांत सुन कर वह जिस स्वभाव की हैं, तुम्हें छूने में तथा अच्छी तरह बातचीत करने में जरूर कुछ संकोच करेंगी। पर शीघ्र ही वह काशी जानेवाली हैं, अब वहीं रहेंगी। मैं अब के जाते ही उनके काशी-चास का प्रबंध करवाऊँगी।" कनक को हिंदू समाज से बड़ी घृणा हुई, यह सोचकर कि क्या वह मनुष्य नहीं है, अब तक मनुष्य कहलानेवाले समाज के बड़े बड़े अनेक लोगों के जैसे आचरण उसने देखे हैं, क्या वह उनसे किसी प्रकार भी पतित है । कनक ने भोजन बंद कर दिया । पूछा-"दीदी, क्या किसी जाव का आदमी तरक्की करके दूसरी बात में नहीं जा सकता १२ अप्सरा ____ "बहन, हिंदुओं में अब यह रिवाज नहीं है, मैं एक विश्वामित्र को जानती हूँ, ज्यादा हाल तुम्हें छोटे साहब बतला सकेंगे, वे यह सब मानते भी नहीं और कुछ पढ़ा भी है । वे कहते हैं, आदमी आदमी है, और ऊँचे शास्त्रों के अनुसार सब लोग एक ही परमात्मा से हुए हैं, यहाँ जिस तरह शिक्षा क्रम से बड़े-छोटे का अंदाजा लगाया जाता है, पहले इसी तरह शिक्षा, सभ्यता और व्यवसाय का क्रम रख- कर जातियाँ तैयार की गई थीं, वे और भी बहुत-सी बातें कहते हैं।" ___ कनक ने इस प्रसंग के पहले गुस्से से भोजन बंद कर दिया था, अब खुश होकर फिर खाने लगी। दिल-ही-दिल चंदन से मिलकर तमाम बातें पूछने की तैयारी कर रही थी। तास निविष्ठ चित्त से कनक का भोजन करना देख रही थी। जब से कनक मिली, ताय तभी से उसकी सब प्रकार से परीक्षा कर रही थी। कनक में बहुत बड़े-बड़े लक्षण उसने देखे। उसने किसी भी बड़े खानदान में इतने बड़े लक्षण नहीं देखे । उसकी चाल-चलन, उठना-बैठना, बोलना-बतलाना सब उसके बहुत बड़े खानदान में पैदा होने की सूचना दे रहे थे और उसके एक-एक इंगित में आकर्षण था। सत्रह साल की युवती की इतनी पवित्र चितवन उसने कभी नहीं दखी। सिर्फ एक दोष तारा को मिल रहा था, वह थी कनक की तीव्रता। मुन्नो बाहर से घूमकर पाया। राजकुमार नहाकर ऊपर चला गया था । उसने उँगली पकड़कर कहा, चलिए, खाना तैयार है। फिर उसी तरह चंदन की उँगली पकड़कर खींचा, उठिए । राजकुमार और चंदन भोजन करने चले गए। _____ तारा डब्बा ले आकर पान लगाने लगी। कनक भोजन समाप्त कर उठी । तारा ने पान दिया। पलँग पर आराम करने के लिये कहा और कह दिया कि तीसरे पहर उसके घर की त्रियाँ और उसकी माता मिलेंगी, अभी तक उनको कनक के आने के संबंध में विशेष कुछ मालूम नहीं है । साथ ही यह भी बतला दिया कि एक झूठ परिचय अप्सरा १२६ दे देने से नुकसान कुछ नहीं, बल्कि फायदा ज्यादा है, यों उन लोगों को पीछे से तमाम इतिहास मालूम हो ही जायगा। _____ कनक यह परिचय के छिपाने का मतलब कुछ-कुछ समझ रही थी। उसे अच्छा नहीं लगा । पर तारा की बात उसने मान ली । चुपचाप सिर हिलाकर सम्मति दी। तारा भी भोजन करने चली गई। कनक को इस व्यक्तिगत घृणा से एक जलन हो रही थी। वह समझने की कोशिश करके भी समझ नहीं पाती थी। एक सांत्वना उसके उस समय के जीवन के लक्ष्य मे तारा थी । तारा के मौन प्रभाव की कल्पना करते-करते उसकी आँख लग गई। राजकुमार और चंदन भोजन कर आ गए। चंदन को नींद लग रही थी। राजकुमार स्वभावतः गंभीर हो चला था। कोई बातचीत नहीं हुई । दोनो लेट रहे। कुछ दिन के रहते, अपना असबाब बंधवाकर तारा कनक को देखने गई। चंदन सो रहा था। राजकुमार एक किवाव बड़े गौर से पढ़ रहा था। कनक को देखा, सो रही थी। जगा दिया । घड़े से पानी डालकर मुंह धोने के लिये दिया। पान लगाने लगी। कनक मुँह धो चुकी । वारा ने पांन दिया। एक बार फिर समझा दिया कि अब घर की खियों से मिलना होगा, वह खूब सँभलकर बात- चीत करेगी। यह कहकर वह चंदन के पास गई । चंदन को जगा दिया और कह दिया कि अब सब लोग आ रही हैं, और वह छीटो के लिये तैयार होकर, हाथ-मुँह धोकर बैठे। तारा नीचे चली गई । चंदन भी हाथ मुँह धोने के लिये नीचे उतर गया । राजकुमार किताब में तल्लीत था। देखते-देखते कई औरतें बराबर के दूसरे मकान से निकलकर वारा के कमरे पर चढ़ने लगी। आगे-आगे तारा थी।. तारा के घर के लोग, उसके पिता और भाई, जो स्टेट में नौकर १३० अप्सय थे, चंदन की गिफ्तारी का हाल जानते थे। इससे भागनं पर निश्चय कर लिया था कि छोटी बाईजी को वही लेकर भागा है। इस समय इंतजाम से उन्हें सित न थी। श्रतः घर सिर्फ दोपहर को भोजन के लिये आए थे और चुपचाप तारा से पूछकर भोजन करके चले गए थे। घर की स्त्रियों से इसकी कोई चर्चा नहीं की। डर रहे थे कि इस तरह भेद खुल जायगा। वारा उसी दिन चली जायगी, इससे उन्हें कुछ प्रसन्नता हुई और कुछ चिंता भी । तारा के पिता ने ताय से कहा कि बड़े जोर-शोर की खोज हो रही है और शायद कलकत्ते के लिये आदमी रवाना किए जायें । उन्होंने यह भी बतलाया कि कई साहब आए थे, एक घबराए हुए हैं, शायद आज ही चले जायें। तारा दा- एक रोज़ और रहती। पर भेद के खुल जाने के डर से उसी रोज तैयार हो गई थी। उसने सोच लिया था कि वह किसी तरह विपत्ति से बच भी सकती है, पर एक बार भी अगर गढ़ में यह खबर पहुंच गई, तो उसके पिता का किसी प्रकार भी बचाव नहीं हो सकता। स्त्रियों को लेकर तारा कनक के कमरे में गई। दोनो पलँग के बिस्तर के नीचे से दरी निकालकर फर्श पर बिछाने लगी। उसकी भावज ने उसकी सहायता की। ____कनक को देखकर तारा की भावजे और बहनें एक दूसरी को खोदने लगीं। तारा की मा को उसे देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ । कनक की ऐसी दृष्टि थी, जिसकी तरफ देखकर किसी भी गृहस्थ की खियों को कोष होता ! उसकी दृष्टि में श्रद्धा न थी, थी संर्धा बिलकुल सीधी चितवन, उम्र में उससे बड़ी बड़ी त्रियाँ थीं, कम-से-कम तारा की मा तो थी ही, पर उसने किसी प्रकार भी अपना अदब नहीं जाहिर किया । देखती थी जैसे जंगल की हिरनी जल्द न्द की गई हो। तारा कुल मतलब समझती थी, पर कुछ कह नहीं सकती थी। कनक ने त्रियों से मिलने की सभ्यता का एक अक्षर भी नहीं पढ़ा था, उसे जरूरत भी नहीं थीं। वह प्रणाम करना तो जानती ही न थी खड़ी कमी तारा को देखती, कमी खियों को। तारा की माता प्रणाम अप्सरा करवाने, और ब्राह्मण कन्या या ब्राह्मण-बहू होने पर उसे प्रणाम करने की लालसा लिए ही खड़ी रह गई। तारा से पूछा, कौन है ? तारा ने कहा, अपनी ही बात । कनक को हार्दिक कष्ट था । जाहिर करने का कोई उपाय न था, इससे और कष्ट। ____ कनक का सेंदुर धुल गया था। पर उम्र से तारा की मा तथा औरों को विवाह हो जाने का ही निश्चय हो रहा था। कभी सोच रही थी कि शायद विधवा हो । पहनावे से फिर शंका होती थी। इन सब मानसिक प्रहारों से कनक का कलेजा जैसे सब तरफ से दबा जा रहा हो. कहीं साँस लेने की जगह भी न रह गई हो। कुछ देर तक यह दृश्य देखकर सारा ने माता से कहा, अम्मा, बैठ जात्रो। ___तारा की मा बैठ गई और स्त्रियाँ भी बैठ गई । तारा ने कनक को भी बैठा दिया। ___ कनक किसी तरह उनमें नहीं मिल रही थी। ताय की मा उसके प्रणाम न करने के अपराध को किसी तरह भी क्षमा नहीं करना चाहती थी, और उतनी बड़ी लड़की का विवाह होना उनके पास ६९ फ्री सदी निश्चय में दाखिल था। ___ प्रखर स्वर से कनक से पूछा- कहाँ रहती हो बधी?" कनक के दिमारा के तार एक साथ मनाना उठे । उत्तर देना चाहती थी, पर गुस्से से बोल न सकी। तारा ने सँभाल लिया-कलकच्चे में।" ____"यह गूंगी हैं क्या ?" तारा की मा ने दूसरा वार किया । और- और त्रियाँ एक दूसरी को खोदकर हँस रही थीं। उन्हें ज्यादा खुशी कनक के तंग किए जाने पर इसलिये थी कि वह इन सबसे सुंदरी थी, और एक-एक बार जिसकी तरफ भी उसने देखा था, सबने पहले ऑखें मुका ली थीं और दोबारा आँखों के प्यालों में ऊपर तक जाहर भर उसकी तरफ उँडेला था। उसके इतने सौंदर्य के प्रभाव से उतने समय के लिये वीतराग होकर और सौंदर्य को मन-ही-मन क्रस्विर की संपत्ति कयर दे रही थीं। . . . १३. अप्सरा “जी नहीं, गूंगी तो नहीं हूँ।" कनक ने अपनी समझ में बहुत मुलायम करके कहा ! पर तारा की मा के लिये इससे तेज दूसरा उत्तर था ही नहीं, और घर आई हुई से पराजय होने पर भी हमेशा विजय की गुंजायश बनी रहती है । इस प्राकृतिक अनुभूति से स्वतः प्ररित स्वर का मध्यम से धैवत-निषाद तक चढ़ाकर भोएँ तीन जगह से सिकोड़कर, जैसे बहुत दूर की कोई वस्तु देख रही हों-मनुष्य नही, फिर आक्रमण किया-"अकेले इहाँ कैसे आई ?" तारा को इस हद तक आशा न थी। बड़ा बुरा लगा। उसने उसी वक्त बात बना लो-स्टेशन आ रही थीं, अपने मामा के यहाँ से; छोटे साहब से मुलाकात हो गई, तो साथ ले लिया, कहा, एक साथ चलेंगे, मुझे बताया है कि वह भी चलेंगी।" ____"अरे वही कहा न कि अकेले घूमना-विवाह हो गया है कि नहीं ?" तारा की माता के मुख पर शंका, संदेह, नफरत आदि भाव बादलों से पहाड़ी दृश्य की तरह बदल रहे थे। ____"अभी नहीं," कनक को अच्छी तरह देखते हुए ताय ने कहा। मुद्रा से माता ने आश्चर्य प्रकट किया। और और त्रियाँ असंकुचित हँसने लगी । कनक की मानसिक स्थिति बयान से बाहर हो गई। ___ चंदन वहीं दूसरे कमरे में पड़ा था। यह सब आलाप-परिचय सुन रहा था। उसे बड़ा बुरा लगा । त्रियों ही की तरह निर्लज हंसता हुआ कहने लगा--"अम्मा, बस इसी तरह समझिए, जैसे बिट्टन, जैसे मामा के यहाँ गई हैं, और रास्ते में मैं मिल गया हाऊँ और, मेर खानदान की कोई स्त्री हो, वहाँ टिका लू, फिर यहाँ ले आऊँ। हाँ बिट्टन में और इनमें यह फळ अवश्य है कि बिट्टन को चाहे तो काई भगा ले सकता है, इन्हें नहीं, क्योंकि यह बहुत काफी पढ़ी-लिखी हैं।" ___ तारा की माता पस्त हो गई। बिट्टन उन्हीं की लड़की है। उन १५ साल की, पर अमी विवाह नहीं हुआ। चंदन से विवाह करने के इरादे पर रोक रक्खा है। बिट्टन अपने मामा के यहाँ गई है। तारा को चंदन का जवाब बहुत पसंद आया और कनक के गाल अप्सरा १३३ तो मारे प्रसन्नता के लाल पड़ गए । राजकुमार उसी तरह निर्विकार चिन्त से किताब पढ़ने का ठाट दिखा रहा था। भीतर से सांच रहा था, किसी तरह कलकत्ता पहुंचे, ता बताऊँ। सब रंग फीका पड़ गया। ____"अभी पिसनहर के यहाँ पिसना देने जाना है" कहकर, काँखकर, वैसे ही त्रिभंगी दृष्टि से कनक को देखती हुई मुँह बनाकर तारा की माता उठीं और धीरे-धीरे नीचे उतर गई। जीने से एक दमन चंदन को भी घूरा । उनके जाने के बाद घर की और और त्रियों ने भी "महाजनो येन गतः स पन्या:" को अनुसरण किया । कनक बैठे-बैठे सबको देखती रहो । सब चली गई, वो तारा से पूछा, "दीदी, ये लोग कोई पढ़ी-लिखी नहीं थीं शायद ?" "नः, यहाँ तो बड़ा पाप समझा जाता है।" "श्राप तो पढ़ी-लिखी जान पड़ती हैं।" "मेरा लिखना-पढ़ना वहीं हुआ है। घर में कोई काम था ही नहीं। छोटे साहब के भाई साहब की इच्छा थी कि कुछ पड़ लू। उन्हों से तोन-चार साल में हिंदी और कुछ अँगरेजो पढ़ ली" . ___ कनक बैठी सोच रही थी और उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वे सब त्रियाँ जो अपने मकान में भी इतनी असभ्यता से पेश आई, किस अंश में उससे बड़ो थों। दीदी की सहृदयता और चंदन का स्नेह स्मरण कर रोमांचित हो उठती, पर राजकुमार की याद से उसे वैसी ही निराशा हो रही थी। उसके अविचल मौन से यह समझ गई कि अब वह उसे पनी-रूप से प्रण नहीं करेगा। इस चिंता से उसका चित्त न जाने कैसा हो जाता, जैसे पक्षी के उड़ने की सब दिशाएँ अंधकार से ढक गई हों और ऊपर धाकाश हो और नीचे समुद्र । अपने पेशे का जैसा अनुभव तथा उदाहरण वह लेकर आई थी, उसकी याद आते ही घृणा और प्रतिहिंसा की एक लपट बनकर जल उठती जो जलाने से दूसरों को दूर देखकर अपने ही तृण और काष्ट जला रही थी।