अहिल्याबाई होलकर

विकिस्रोत से
(अहिल्याबाई होल्कर से अनुप्रेषित)

[ भूमिका ]

भूमिका ।

संसार में जितने प्रसिद्ध स्थान तथा नगर हैं उनकी ख्याति के कुछ न कुछ विशेष कारण अवश्य होते हैं । जहां प्राचीन इतिहास हम को पूर्व वैभव का ज्ञान कराता है, वहां प्राचीन स्थान अथवा नगर पूर्व शिल्प तथा अभ्युदय को बतलाते हैं। क्या कारण है कि आज सहस्रों वर्ष के परिवर्तन होने पर भी राम की अयोध्या, कृष्ण की मथुरा, बुद्ध की कपिलवस्तु नगरी का नाम स्मरण करते ही मस्तक नभ जाता है, हृदय तल्लीन हो जाता है और शरीर में रोमांच हो आते हैं? इस में विशेषता यही है कि उपरोक्त स्थानों में इन जगतप्रख्यात महात्माओं ने जन्म लेकर उनकी कीर्ति को चिरस्थायिनी किया है। यही गुप्त रहस्य प्रत्येक प्रख्यात नगर अथवा स्थान के संबंध में कार्य करता हुआ पाया जाता है। ये प्राचीन नगर ही हैं जिनसे आज किसी जाति के अभ्युदय का पता चल सकता है। नगर की रचना तथा उनके शेषांग ही पूर्व मनुष्यों के चरित्र का बोध कराते हैं। बहुत सा काल व्यतीत हो गया, सैकड़ों परिवर्तन हो गए, परंतु आज ये नगर ही हम को प्राचीन सभ्यता का परिचय दे रहे हैं। शोक है कि इन नगरों तथा उनके देवताओं में वाचा शक्ति नहीं है, नहीं तो वे अपने परिवर्तन तथा कष्टों को पूर्ण इतिहास हमको कह सुनाते। बहुत से नगर ऐसे हैं जो नाना प्रकार के परिवर्तन सह कर अब नामशेष हो चुके हैं। [ भूमिका ]भारतवर्ष में चरित्रनायक अथवा, चरित्रनायिका होने के पात्र कोई हुए ही नहीं हैं, यह बात नहीं है। इस देश में भी अनेक स्त्री पुरुप चरित्रनायक या चरित्रनायिका होने के उपयुक्त पात्र हो चुके हैं, परंतु यदि आज अवलोकन किया जाय तो जो सच्चे मार्ग-दर्शक, धर्मवीर और नीतिज्ञ थे, उनका जीवन वृतांत उपलब्ध ही नहीं होता है, विशेष कर हिंदी साहित्य में तो केवल कहानियां मात्र ही रह गई हैं। आज यदि हमारे पूर्व महानुभायों की जीवनियां पाश्चिमात्य अथवा अनेक दूसरे विद्वानों को न प्राप्त होती तो इतना भी हमको देखना दुर्लभ था।

आज कल तो सब मनुष्य प्रति दिन यही चाहते हैं कि हम को सुख प्राप्त हो, शांति के गहरे समुद्र में हम गोता लगावें, हम को बल, आरोग्य, कीर्ति, सम्पत्ति यथेच्छ रूप से प्राप्त हो, परंतु बल, सुख, शांति, सम्पत्ति मिलने के असली मार्ग से अपरिचित रह कर वे विपरीत ही पथ को स्वीकार करके उस पर आरूढ हो जाते हैं, जिसका परिणाम यह होता है कि वे सुरज के बदले उस दुःख और अशांति के गहरे कूप में जा फँसते हैं, जहां से सरलतापूर्वक निकलना असभव नहीं तो, दुसाध्य अवश्य हो जाता है।

अनेक महानुभावों ने, साधु महात्माओं के तथा विद्वानों के प्रदर्शित मार्ग पर चल कर जिस सुख का, जिस अलौकिक शादि का, जिस परमानंद को दिव्य अनुभव किया है, उन सब के उपदेशों का यही ताप्तर्य है कि धर्म बल सब बलों से [ भूमिका ]श्रेष्ट है, इससे इस लोक में सब प्रकार के सुख और कार्ति प्राप्त होते हैं, और परलोक में भी शांति मिलती है।

आज हम जिस चरित्रनायिका का जीवनचरित्र अपने सहृदय पाठकों के कर-कमलों में रखते हैं, उनका भी यही सिद्धांत था कि धर्म-बल के समक्ष संसार में अन्य बल सदैव मनुष्य को चिंता में उलझा कर दुःख का कारण होता है। उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन अनेक हृदयविदारक कष्टों को पग पग पर सहन करके जन्म भर पूर्ण रूप से धर्म पर आरूढ़ रहते हुए समाप्त किया।

इंदौर राज्य के मूल-पुरुष मल्हारराव होलकर की पुत्र वधू श्रीमती देवी अहिल्याबाई का नाम आज भारत में चारों अर गूँज रहा है, और पाश्चिमात्य देशों के विद्वानों के हृदय पर अंकित हो रहा है। आपने अपने धर्मबल से तीस वर्ष पर्यंत राज्य किया था। आपके धर्म करने की ऐसी विलक्षण शैली थी कि संपूर्ण प्रजा सर्वदा आनंदित और सुखी रहती थी। आपकी राज्यप्रणाली को सुनकर संपूर्ण विद्वन्मडल आपकी मुक्त कंठ से कीर्ति गाते हैं।

बाई के संपूर्ण गुणों का उल्लेख करना मुझ सरीखे अल्पज्ञ के लिये छोटे मुँह बड़ी बात कहने के समान है, परंतु साहित्यप्रेमी विद्वान् स्वजातीय भूषण स्वर्गवासी पंडित गणपति जानकी राम दुबे, बी० ए० के अधिक उत्साह दिलाने से मैंने यह काम अपने हाथ में ले लिया। इसमें यदि सहृदय पाठकों को अवलोकन करते समय कोई त्रुटि जान पड़े — और वे अवश्य होवेंगी, क्योंकि पुस्तक लिखने का यह कार्य मेरा प्रथम ही [ भूमिका ]
कार्य है— तो मुझ पर पूर्ण कृपाभाव रखते और क्षमा की दृष्टि से देखते हुए, वे उन्हें शुद्ध कर लेवें। दुबे जी साहब ने मेरा नाम पुस्तक लेखकों की नामावली में लिख "दैवी श्री अहिल्या बाई के जीवन चरित्र" के लिखने का भार सन् १९१४ ईसवी के जून मास में मुझे सौंपा— यद्यपि मैंने आप से विनय पूर्वक इस महत्वपूर्ण काम को हाथ में लेने से अपनी अयोग्यता बताई तथापि आपने अपने प्रेम और योग्यता का भार मुझ पर इस प्रकार सौंपा कि मुझे आपकी आज्ञा का पालन करना अपना कर्तव्य जान पड़ा। यथार्थ में कहा जाय तो संपूर्ण श्रेय इस पुस्तक का आप को ही है, क्योंकि अपने अपने निज भंडार से तथा अन्य स्थानों से कई पुस्तकें और उनके नाम और मराठी की अनेक पुस्तकों के नाम, बाई के जीवनचरित्र के सम्बन्ध में बतलाए, और समय समय पर आपने अपने ज्ञान तथा अनुभव से परामर्श दिया, इस कारण में आपका अत्यंत कृतज्ञ हूँ। और स्वदेशबांधव पंडित शिवप्रसाद गार्गव, बी०ए०, बी० एस-सी०, भूतत्व ज्ञाता ने भी मुझे इस पुस्तक के लिखने के लिये वारंवार उत्साह दिलाया, इस हेतु से मैं आपको भी इस पुस्तक का श्रेय देता हूँ।

अंत में मुझे इन लेखकों को हार्दिक धन्यवाद देने का सुअवसर प्राप्त हुआ हैं, जिन्होंने "देवी श्रीमती अहिल्याबाई" के संबंध में लिखा है। आज यह पुस्तक उन्हीं संपूर्ण सज्जनों के परिश्रम का फल है। इस पुस्तक के लिखने में मैंने निम्नलिखित पुस्तकों को अवलोकन किया हैं— [ भूमिका ]

(१) सैंटल इंडिया गेज़िटियर (६) भारत-भ्रमण
(२) सर मालकम (७) दास-बोध
(३) मिसेस जॉन वेली (८) तीर्थ-यात्रा
(४) रिप्रेजेंटेटिव्ह मैन आफ (९) होळकरांची कैफियत
सैंट्रल इंडिया (१०) इतिहास संग्रह
(५) चीफ्स एड रूलिग फेमि (११) अहिल्याबाई की जीवनी
लीस इन सैंट्रल इंडिया (१२) देवी श्री अहिल्याबाई


विनीत---
गोविंदराम केशवराम जोशी

[ विषय-सूची ]

विषय सूची ।

विषय पृष्ठ
पहला अध्याय- मल्हाराव होलकर ... ...
दूसरा अध्याय- देवी श्री अहिल्याबाई का जन्म ... २३
तीसरा अध्याय- खंडेराव और मल्हारराव का
स्वर्गवास............ ३२
चौथा अध्याय— मालीराव की राजगद्दी और पश्चात् मृत्यु ४२
पाँचवाँ अध्याय- दीवान गंगाधरराव और अहिल्याबाई ४६
छठा अध्याय-- दीवान गंगाधरराव और अहिल्याबाई ६०
सातवाँ अध्याय- अहिल्याबाई और तुकोजीराव
होलकर............ ६९
आठवाँ अध्याय- अहिल्याबाई का राज्य-शासन ... ७७
नवाँ अध्याय- अहिल्याबाई के शासनकाल में युद्ध .. ९०
दसवाँ अध्याय— स्वरूप-वर्णन तथा दिनचर्या . ९८
ग्यारहवाँ अध्याय- अहिल्याबाई का धार्मिक जीवन... १०३
बारहवाँ अध्याय- मुक्ताबाई का सहगमन... .. १२४
तेरहवाँ अध्याय- अवातर-समाप्ति . .. १४०
चौदहवाँ अध्याय- आख्यायिका अर्थात् लोकमत .. १४८

______

[ चित्र ]

महारानी अहिल्याबाई।

प्रेस, लिमिटेड, प्रयाग।

This work is in the public domain in the United States because it was first published outside the United States (and not published in the U.S. within 30 days), and it was first published before 1989 without complying with U.S. copyright formalities (renewal and/or copyright notice) and it was in the public domain in its home country on the URAA date (January 1, 1996 for most countries).