आँधी/२-मधुआ

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मधुआ

आज सात दिन हो गये पीने की कौन कहे छूना तक नहीं ! आज सातवाँ दिन है सरकार।

तुम झूठे हो । अभी तो तुम्हरे कपड़े से महक आ रही है। वह, वह तो कई दिन हुए । सात दिन से ऊपर-~-कई दिन हुए- अँधेरे में बोतल उगलने लगा था। कपड़े पर गिर जाने से नशा भी न आया। और आपको करने का क्या कहूँ सच मानिए सात दिन -ठीक सात दिन से एक बूंद भी नहीं।

ठाकुर सरदारसिंह हसने लगे। लखनऊ में लड़का पढता था। ठाकुर साहब भी कभी-कभी वहीं पा जाते । उनको कहानी सुनने का चसका था। खोजने पर यही शराबी मिला । वह रात को दोपहर में कभी-कभी सबेरे भी पा जाता। अपनी लच्छेदार कानी सनाकर ठाकुर का मनोविनोद करता।

ठाकुर ने हँसते हुए कहा-तो अाज पियोगे न |

झूठ कैसे कहूँ। आज तो जितना मिलेगा सारा पिऊँगा । सात दिन चने-चबेने पर बिताये हैं किस लिए ।

अद्भुत ! सात दिन पेट काटकर आज अच्छा भोजन न करके तुम्हें पीने की सूझी है ! यह भी

सरकार ! मौज बहार की एक घड़ी एक लम्वे दुखपूर्ण जीवन से अच्छी है। उसकी खुमारी में रूखे दिन काट लिये जा सकते हैं।

अच्छा, आज दिन भर तुमने क्या क्या किया है ? [ ३७ ] मैंने?-अच्छा सुनिये -सवेरे कुहरा पड़ता था मेरे धुआँसे कम्बल सा वह भी सूर्य के चारों ओर लिया था। हम दोनों मुंह छिपाये पड़े थे।

ठाकुर साहब ने हंस कर कहा-अछा तो इस मुंह छिपाने का कोई कारण?

सात दिन से एक बूंद भी गले न उतरी थी। भला मैं कैसे मुंह दिखा सकता था। और जब बारह बजे धूप निकली तो फिर लाचारी थी । उठा हाथ मुंह धोने में जो दुख हुआ सरकार वह क्या कहने की बात है ! पास में पैसे बचे थे । चना चबाने से दांत भाग रहे थे। कटी कटी लग रही थी । पराठेवाले के यहा पहुंचा धीरे धीरे खाता रहा और अपने को सकता भी रहा । फिर गोमती किनारे चला गया !धूमते घूमते अंधेरा हो गया बंदे पड़ने लगी तब कहीं भाग के और आप के पास आ गया।

अच्छा जो उस दिन तुमने गड़रियेवाली कानी सुनाई थी जिसमें आसफुद्दौला ने उसकी लड़की का आंचल भुने हुए भुग के दानों के बदले मोतियों से भर दिया था! वह क्या सच है।

सच ! अरे वह गरीब लड़की भूख से उसे चबा कर थू थू करने लगी। रोने लगी। ऐसी निर्दयी दिल्लगी बड़े लोग कर ही बैठते हैं ।सुना है श्री रामचद्र ने भी हनुमानजी से ऐसी ही

ठाकुर साहब उठाकर हसने लगे। पेट पकड़ कर हँसते हंसते लोट गये । सांस बटोरत हुए सम्हल कर बोले-और बड़प्पन कहते किसे हैं ? कंगाल तो कंगाल । गधी लड़की । भला उसने कभी मोती देखे ये चबाने लगी होगी । मैं सच कहता हूँ आज तक तुम ने जितनी कहानियां सुनाई सब में बड़ी टीस थी । साहलादों के दुखड़े रंग महल की आभागिनी बेगमों के निष्फल प्रेम करुण कथा और पीड़ा"से भरी हुई कहानियाँ ही तुम्हें आदी हैं पर ऐसी हँसानेवाली कहानी और सुनाश्री तो मैं अपने सामने ही बढ़िया शराब पिला सकता हूँ। [ ३८ ] सरकार । बूढों से सुने हुए वे नवाबी के सोने से दिन अमीरों की रग रेलिया दुखिया की दर्द भरी आहें रगमहलों म घुल घुल कर मरने वाली वेगम अपने आप सिर म चक्कर काटती रहती हैं । मैं उनकी पीड़ा से रोने लगता हूँ | अमीर कंगाल हो जाते हैं । बड़े बडो के घमंड चर हो कर धूल म मिल जाते हैं | तब भी दुनिया बड़ी पागल है। में उसके पागलपन को भुलाने के लिए शराब पीने लगता हूँ- सरकार ।नहीं तो यह बुरी बला कौन अपने गले लगाता।

ठाकुर साहब ऊघने लगे थे । अगीठी म कोयला दहक रहा था। शराबी सरदी से ठिठुरा जा रहा था। वह हाथ सेंकने लगा। सहसा नींद से चौंक कर ठाकुर साहब ने कहा- अच्छा जाओ मुझे नींद लग रही है। वह देखो एक रुपया पड़ा है उठा लो। लल्लू को भेजते जाओ।

शराबी रुपया उठा कर धीरे से खिसका । लल्लू था ठाकुर साहब का जमादार। उस खोजते हुए जब वह फाटक पर की बगलवाली कोठरी के पास पहुँचा तो उसे सुकुमार कंठ से सिसकने का श सुनाई पड़ा। वह खड़ा होकर सुनने लगा।

तो सूअर रोता क्या हैं ? कुवर साहब ने दो ही लातें लगाई हैं। कुछ गोली तो नहा मार दी ? -कर्कश स्वर से लल्लू बोल रहा था कित उत्तर म सिसकियों के साथ एकाध हिचकी ही सुनाई पड़ जाती थी। अब और भी कठोरता से लल्लू ने का-मधुश्रा | जा सो रह। नखरा न कर नहीं तो उठूँगा तो खाल उधेड़ दूँगा । समझा न ?

शराबी चुपचाप सुन रहा था। बालक की सिसकी और बढने लगी। फिर उसे सुनाई पड़ा- ले अब भागता है कि नहीं ? क्यों मार खाने पर तुला है ?

भयभीत बालक बाहर चला आ रहा था । शराबी ने उसके छोटे से सुपर गोरे मुँह को देखा । आँसू की बूंदे ढलक रही थीं। बड़े दुलारे से उसका मुँह पोंछते हुए उसे लेकर वह फाटक के बाहर से चला [ ३९ ] पाया । दस बज रहे थे। कड़ाके की सर्दी थी। दोनों चुपचाप चलने लगे । शराबी की मौन सहानुभूति को उस छोटे से सरल हृदय न स्वीकार कर लिया । वह चुप हो गया। अभी वह एक तंग गली पर रुका ही था कि बालक के फिर से सिसकने की उसे बाहर लगी। वह भिड़क कर बोल उठा- अब क्या रोता है रे छोकरे ? मैंने दिन भर से कुछ खाया नहीं। कुछ खाया नहीं इतने बड़े अमीर के यहा रहता है और दिन भर तुझे खाने को नहीं मिला?

यही कहने तो मैं गया था जमादार के पास मार तो रोज ही खाता हूँ। आज तो खाना ही नहीं मिला । कुअर साहब का ओवरकोट लिये खेल मे दिन भर साथ रहा । सात बजे लौटा तो और भी नौ बजे तक कुछ काम करना पड़ा । आटा रख नहा सका था । रोटी बनती तो केसे ! जमादार से कहने गया था । भूख की बात कहते कहते बालक के ऊपर उसकी दीनता और भूख ने एक साथ ही जैसे आक्रमण कर दिया वह फिर हिचकिया लेने लगा।

शराबी उसका हाथ पकड़ कर घसीटता हुमा गली म ले चला। एक गदी कोठरी का दरवाजा ढकेलकर बालक को लिए हुए वह भीतर पहुचा । टटोलते हुए सलाई से मिट्टी की ढेबरी जलाकर वह फटे कंबल के नीचे से कुछ खोजने लगा। एक पराठे का टुकड़ा मिला ! शराबी उसे बालक के हाथ में देकर बोला--तब तक तू इसे चबा मैं तेरा गढा भरने के लिए कुछ और ले आऊ-सुनता है रे छोकरे । रोना मत रोयेगा तो खूब पीटगा । मुझसे रोने से बड़ा बैर है । पाजी कहीं का मुझे भी रुलाने का

शराबी गली के बाहर भागा। उसके हाथ में एक रुपया था।[ ४० ] बारह आने का एक देशी अद्धा और दो भाने की चाय दो आने की पकौड़ी नहीं-नहीं बालू मटर अच्छा न सही। चारों आने का मांस ही ले लगा पर यह छोकरा ! इसका गढा जो भरना होगा यह कितना खायगा और क्या खायगा । श्रोह ! आज तक तो कभी मैंने दूसरों के खाने का सोच विचार किया ही नीं। तो क्या ले चलूँ ? पहल एक श्रद्धा ही ले ले। इतना सोचते सोचते उसकी आखों पर बिजली के प्रकाश की झलक पड़ी। उसने अपने को मिठाई की दूकान पर खड़ा पाया । वह शराब का श्रद्धा लेना भूल कर मिठाई पूरी खरीदने लगा। नमकीन लेना भी न भूला । पूरा एक रुपये का सामान लेकर वह दूकान से हटा । जद पहुँचने के लिए एक तरह से दौड़ने लगा । अपनी कोठरी म पहुँच कर उसने दोनों की पांत बालक के सामने सजा दी । उनकी सुगध से बालक के गले म एक तरावट पहुची । वह मुस्कराने लगा।

शराबी ने मिट्टी की गगरी से पानी उड़ेलते हुए कहा- नटखट कहीं का हसता है सोंधी बास नाक म पहुँची न ! ले खूब ठूस कर खा ले और फिर रोया की पीटा।

दोनों ने बहुत दिन पर मिलनेवाले दो मित्रों की तरह साथ बठ कर भरपेट खाया । सीली जगह में सोते हुए बालक ने शराबी का पुराना बड़ा कोट ओढ़ लिया था । जब उसे नींद था गई तो शराबी भी कम्बल तान कर बड़बड़ाने लगा-सोचा था आज सात दिन पर भर पेट पीकर सोऊँगा लेकिन यह छोटा-सा रोना पाजी न जाने कहा से आ धमका !

एक चितापूर्ण आलोक म आज पहले पहल शराबी ने श्राख खोल कर कोठरी म बिखरी हुई दारिद्रय की विभूति को देखा और देखा उस घुटनों से जुडी लगाये हुए निरीह बालक को उसने तिलमिलाकर मन ही मन प्रश्न किया-किस ने ऐसे सुकुमार फूलों को कष्ट देने के लिए निर्दयता की दृष्टि की ? आह री नियति ! तब इसको लेकर मुझे घर [ ४१ ] भारी बनना पड़ेगा क्या ? दुर्भाग्य | जिसे मैंने कभी सोचा भी न था। मेरी इतनी माया-ममता--जिस पर आज तक केवल बोतल का ही पूरा अधिकार था-इस का पक्ष क्यों लेने लगी ? इस छोटे से पाजी ने मेरे जीवन के लिए कौन सा इन्द्रजाल रचने का बीड़ा उठाया है । तब क्या करू १ कोई काम करू ? केसे दोनों का पेट चलेगा! नहीं भगा दूंगा' इसे— आँँख तो खोले।

बालक अँगड़ाई ले रहा था। वह उठ बैठा । शराबी ने कहा- उठ कुछ खा ले। अभी रात का बचा हुआ है और अपनी राह देख ।तेरा नाम क्या है रे ?

बालक ने सहज हँसी हस कर कहा-मधुश्रा । भला हाथ मह भी न धोऊँ । खाने लगें । और जाऊँगा कहा ?

आह ! कहा बताऊ इसे कि चला जाय ! कह दूँ कि भाड़ में जा कितु वह आज तक दुख की भनी मे जलता ही तो रहा है। तो यह चुपचाप घर से झमाकर सोचता हुया निकना-ले पाजी अब यहा लौटगा ही नहीं । तू ही इस कोठरी में रह !

शराबी घर से निकला। गोमती किनारे पहुंचने पर उसे स्मरण हुश्रा कि वह कितनी ही बातें सोचता आ रहा था पर कुछ भी सोच न सका। हाथ मुँह धोने में लगा ।। उजली धूप निकल आई थी। वह चुपचाप गोमती की धारा को देख रहा था। वूप की गरमी से सुखी होकर वह चिन्ता मुलाने का प्रयन कर रहा था कि किसी ने पुकारा-

भले आदमी रहे कहाँ १ सालों पर दिखाई पड़े। तुमको खोजते खोजते मैं थक गया। शराबी ने चौंक कर देखा। वह कोई जान पहचान का तो मालूम होता था पर कौन है यह ठीक ठीक न जान सका।

उसने फिर कहा-तुम्हीं से कह रहे हैं । सुनते हो उठा ले जाओ अपनी सान धरने की कल नहीं तो सड़क पर फेंक दूंगा । एक ही तो [ ४२ ]कोठरी जिसका मैं दो रुपये किराया देता हूँ उसम क्या मुझे अपना कुछ रखने के लिए नहीं है ?

ओहो । रामजी तुम हो भाई मैं भूल गया था । तो चलो श्राज ही उसे उठा लाता हूँ। कहते हुए शराबी ने सोचा--अच्छी रती उसी को बेचकर कुछ दिनों तक काम चलेगा।

गोमती नहा कर रामजी पास ही अपने घर पर पहुचा । शराबी की कल देते हुए उसने कहा-ले जाश्रो किसी तरह मेरा इस से पिण्ड छूटे।

बहुत दिनों पर श्राज उसको कल ढोना पड़ा। किसी तरह अपनी कोठरी म पहुँच कर उसने देखा कि बालक चुपचाप बैठा है । बड़बड़ाते हुए उसने पूछा- क्यों र तू ने कुछ खा लिया कि नहीं?

भर पेट खा चुका हूँ और वह देखो तुम्हार लिए भी रख दिया है। कह कर उसने अपनी स्वाभाविक मधुर हँसी से उस रूखी कोठरी को तर कर दिया । शराबी एक क्षण भर चुप रहा । फिर चुपचाप जल पान करने लगा। मन ही मन सोच रहा था- यह भाग्य का संकेत नही तो और क्या है ? चल फिर सान देने का काम चलता करू । दोनों का पेट भरेगा। वही पुराना चरखा फिर सिर पड़ा। नहीं तो दो बातें किस्सा कहानी इधर उधर की कहकर अपना काम चला ही लेता था। पर अब तो बिना कुछ किये घर नहीं चलने का । जल पीकर बोला- क्यों र मधुआ अब तू कहाँ जायगा ?

कहीं नहीं।

यह लो तो फिर क्या यहा जमा गड़ी है कि मैं खोद खोद कर तुझे मिठाई खिलाता रहूँगा।

तब कोई काम करना चाहिए ।

करेगा। [ ४३ ] जो कहो।

अच्छा तो आज से मेरे साथ साथ घूमना पड़गा । य कल तेरे लिए लाया हूँ | चल आज स तुझे सान देना सिखाऊगा। कहा रहूँगा इसका कुछ ठीक न ।। पेड़ के नीचे रात बिता सकेगा न |

कहीं भी रह सकूँगा पर उस ठाकुर की नौकरी न कर सकेंगा । -शराबी ने एक बार स्थिर दृष्टि से उसे देखा । बालक की आंखें दृढ निश्चय की सौगध खा रही थीं।

शराबी ने मन ही मन कहा-बैठे बैठाये यह इत्या कहा से लगी। अब तो शराब न पीने की मुझ भी सौगध लेनी पड़ी। वह साथ ले जानेवाली वस्तुओं को वटोरने लगा। एक गर का और दूसरा कल का दो बोझ हुए।

शराबी ने पूछा- किसे उठाएगा ?

जिसे कहो।

अच्छा तेरा बाप जो मुझको पकड़े तो?

कोई नहीं पकड़ेगा चलो भी । मेरे पाप कमी मर गये ।

शराबी आश्चय से उसका मुँह देखता हुआ कल उठा कर खड़ा हो गया। बालक ने गठरी लादी। दोनों कोठरी छोड़ कर चल पड़े।