कामना/3.5

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कामना  (1927) 
द्वारा जयशंकर प्रसाद
[ ११५ ]

पाँचवाँ दृश्य

स्थान-फूलों के द्वीप में एक नागरिक का घर

पिता-बेटा, इतनी देर हुई, अभी तक सोते रहोगे, क्या आज खेतों मे हल न जायगा?

लड़का-(आँख मलता हुआ) पहले एक प्याली मदिरा, फिर दूसरी बात, ओह, देह-भर में बड़ी पीड़ा है।

पिता-लड़के। तुझे लज्जा नहीं आती। मुझसे मदिरा माँगता है?

लड़का-तो माँ से कह दो, दे जाय।

(माता का प्रवेश)

माता-क्यों, आज भी सबेरा हो गया, अभी सुनार के यहाँ नहीं गये, हल पकड़े खड़े हो? इससे तो अच्छा होता कि बैलों के बदले तुम्हीं इसमें जुतते। आज के उत्सव मे चार स्त्रियों के सामने क्या पहनकर जाऊँगी?

पिता-तो अच्छी बात है, सोने का गहना बैठ-कर खाना, और चबाना मेरी सूखी हड्डियाँ! लड़के [ ११६ ] को चौपट कर डाला। वह मुझसे मदिरा माँगता है, और तुम माँगती हो आभूषण।

लड़का-(लेटा हुआ) तुम दोनों कैसे मूर्ख बकवादी हो। एक प्याली देने मे इतनी देर, इतना झंझट।

माता-तुझ-सा निखटू पति मेरे ही भाग्य में-बदा था। मैं यदि-

पिता-हाँ, हाँ, कहो, 'यदि' क्या? यही न कि दूसरे की स्त्री होती, तो गहनों से लद जाती; परंतु उसके साथ पापों से भी-

लड़का-देखो, मुझे एक प्याला दे दो, और एक-एक तुम लोग-बस, झगड़ा मिट जायगा। जो बैल होंगे, आप ही कुछ देर में खेत पर पहुँच जायँगे।

पिता-कुलांगार! यह धृष्टता मुझसे सही न जायगी।

लड़का-तो लो, मैं जाता हूँ। युद्ध में सैनिक बनकर आनंद करूँगा। तुम दोनों के नित्य के झगड़े से तो छुट्टी मिल जायगी। (उठता है)

माता-यह बाप है कि हत्यारा? एक प्याला मदिरा नहीं दे देता। लड़के को मरने के लिए युद्ध में [ ११७ ] भेजना चाहता है। जान पड़ता है, इसने दूसरे बाल-बच्चे-स्त्री आदि बना लिये हैं। अब हम लोगो की आवश्यकता नहीं रही। एक को तो युद्ध मे भेन ही दिया, दूसरे को भी-

पिता-वह तेरे लिए सुवर्ण लाने गया है। पिशाचिनी। तू माँ है, तुझे आभूषणों की इतनी आवश्यकता।

लड़का-अच्छा, तो फिर जाता हूँ। (उठता और गिर पड़ता है)

पिता-तूही दे दे, इस खेतिहर गँवार को जाने दे।

(पिता क्रोध से चला जाता है)

माता-अच्छा लो, पर फिर न माँगना। (देती है)

लड़का-(लेता हुआ) नहीं, आँख खुलने तक नही। अभी एक नींद सो लेने दे। हाँ री माँ। तू कुछ गाना नही जानती, वह तो-आह। (लेटता है)

माता-कैसा सीधा लड़का है। (हँसती है) मुझसे गाने के लिए कहता है। (जाती है)