कोड स्वराज/अमेरिका और भारत में ज्ञान तक सार्वभौमिक पहुंच, डॉ.सैम पित्रोदा की टिप्पणियां

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कोड स्वराज
द्वारा कार्ल मालामुद

[ ४१ ]अमेरिका और भारत में ज्ञान तक सार्वभौमिक पहुंच, डॉ.सैम पित्रोदा की टिप्पणियां

14 जून, 2017, इंटरनेट आर्काइव, सैन फ्रांसिस्को

राजदूत वेंकटेशन अशोक, मेरे दोस्त, कार्ल, जिन्हें मैं अब कई सालों से जानता हूं और जिनके साथ मैंने भारत और अमेरिका में कभी-कभी काम किया है। हमारे मेजबाने श्री काहले. देवियो और सज्जनों। नमस्कार।

वास्तव में यह मेरे लिए विशेष सौभाग्य की बात है कि मैं, इस विशेष अवसर पर आपके साथ भारत और अमरीका के बीच ज्ञान के आदान-प्रदान पर बात करूं।

इस परियोजना में मेरी रुचि वास्तव में तब शुरू हुई थी, जब मैं डॉ. मनमोहन सिंह द्वारा संभवतः वर्ष 2006 के मध्य में स्थापित राष्ट्रीय ज्ञान आयोग (Knowledge Commission) की अध्यक्षता कर रहा था। उस समय हम, ऐसे संस्थानों और बुनियादी ढांचे के निर्माण में रुचि रखते थे जिनकी भारत को 21 वीं सदी में, ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था को चलाने के लिये आवश्यकता होती।

हमने अनिवार्य रूप से ऐसी ज्ञान तक अपनी सार्वभौमिक पहुंच पर ध्यान केंद्रित किया, जिसमें पुस्तकालय, नेटवर्क, अनुवाद, सकारात्मक कार्य (Affirmative Action) संबंधी कार्यक्रम, आरक्षण, ब्रॉडबैंड नेटवर्क आदि शामिल थे। हमने प्राथमिक विद्यालय से लेकर माध्यमिक विद्यालय, व्यावसायिक विश्वविद्यालयी शिक्षा, चिकित्सा शिक्षा, दूरस्थ शिक्षा, ओपन कोर्सवेयर, शिक्षकों के प्रशिक्षण जैसी सभी प्रकार की शिक्षा पर विचार किया।

तब हम ज्ञान के सृजन, ज्ञान के सृजकों, और ज्ञान के सृजन की विधि पर भी विचार करते थे। इसके साथ-साथ हुमने कृषि, स्वास्थ्य, और छोटे और मध्यम स्तर के उद्योगों में बौद्धिक संपदा (Intellectual Property), पेटेंट्स, कॉपीराइट, ट्रेडमार्क और ज्ञान के । अनुप्रयोग (Application) पर भी विचार किया। अंततः शासन में ज्ञान की भूमिका पर भी विचार किया। इस पहल के परिणामस्वरूप, हमने नेशनल नॉलेज नेटवर्क का निर्माण किया। हमने पर्यावरण, ऊर्जा, जल, शिक्षकों के प्रशिक्षण के लिए कई पोर्टल तैयार किए हैं। इसके पश्चात अंतत: हमने महात्मा गांधी पर एक विशाल पोर्टल तैयार किया।

जब मैं 10 साल का था तब मैने एक गांधीवादी स्कूल में दाखिला लिया था। हमें रोज़ाना के जीवन में गांधीवादी मूल्यों के बारे में बताया जाता था। ओड़िशा में रहने वाले एक गुजराती परिवार होने के नाते, मेरे माता-पिता का गुजरात से जुड़ने या यूं कहे कि गुजराती पहचान के एक मात्र साधन थे गांधी। हम गांधीजी को, अपने विचारों में और दैनिक कार्यों में हमेशा बनाए रखते थे। [ ४२ ]लगभग उसी समय, जब हम गांधी पोर्टल पर काम कर रहे थे, मैंने कार्ल के काम को देखा था, और हम एक दूसरे से जुड़ गए। कार्ल का यह मिशन था, सरकारी दस्तावेजों से मानकों को लेना और फिर उसे इंटरनेट पर ड़ालना। मैंने सोचा कि यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण पहल है, लेकिन हर बार कार्ल ने ऐसा करने की कोशिश की, उनपर सरकारों द्वारा कोर्ट केस किए गए।

सभी सरकारों का मानना है कि सरकारी मानक, चाहे वह सुरक्षा, अग्नि सेवा (Self-Employed Women 's Association of India), या बिल्डिंग कोड ही क्यों न हों, ये सभी सरकार की संपत्ति हैं। वे कहते हैं कि काले, इन सभी दस्तावेजों को इंटरनेट पर डालकर, बौद्धिक संपदा (Intellectual Property) के कानूनों का उल्लंघन कर रहे हैं।

जब मैंने इसके बारे में सुना, तो मैं और अधिक उत्तेजित हो गया, क्योंकि मेरे लिए, यह सत्याग्रह का एक गांधीवादी तरीका था। मैंने कहा, “कार्ल, हमें यह लड़ाई लड़ने की। आवश्यकता है। वे कानूनी तौर पर सही हो सकते हैं, लेकिन वे नैतिक तौर पर गलत हैं।”

[हर्षध्वनि]

वास्तव में ये सभी मानक लोक सुरक्षा और लोक हित के लिये हैं। फिर आप आम आदमी को इन मानकों तक पहुंचने की अनुमति क्यों नहीं देते हैं? मुझे अपने घर में बिजली की वायरिंग के मानकों को क्यों खरीदना पड़ता है? जबकि मुझे पता है कि खराब तारों से आगजनी का खतरा हो सकता है?

सरकार आपको ऐसा करने की अनुमति नहीं देती। कार्ल को अमेरिका, जर्मनी, भारत और आप कह सकते हैं पूरे विश्व में अदालती मुकदमों का सामना करना पड़ रहा है।

हमारा काम मुख्य रूप से इसके लिए नैतिक आधार पर लड़ाई लड़ना है कि यह सार्वजनिक जानकारी है और इसे सार्वजनिक किया जाना चाहिए, और किसी को भी सरकार के इन पुराने, अप्रचलित (obsolete) कानूनों को नहीं मानना चाहिए।

जब मैं, इंटरनेट और इंटरनेट के सामर्थ्य को देखता हूं, तो मुझे लगता है कि इंटरनेट द्वारा उपलब्ध अवसरों और ज्ञान के क्षेत्र में हमारी सोच बहुत पिछड़ी है। भारत में अनेक अवसर पर मैने कहा कि हमारे पास 19वीं शताब्दी की मानसिकता (mentality) है, 20वीं सदी की प्रक्रियाएं (processes) हैं, और 21वीं सदी के सूचना युग (information age) के सुअवसर हैं।


कार्ल, इन मानकों को जनता की नजर में लाने का प्रयास कर रहे हैं जिससे की क़ानून को बदला जा सके।

जहां भी आप देखते हैं, आप पाएंगे कि सभी प्रक्रियाएं पुरानी हैं। हम यह नहीं पाते हैं कि कोई भी इन पुरानी प्रक्रियाओं के विरुद्ध खड़ा होकर कह रहा हो कि “ इसे बदलना चाहिए [ ४३ ]

डॉ.सैम पित्रोदा की टिप्पणियां

और हमें नई प्रक्रियाओं की आवश्यकता है। कुछ बदलाव तो हो रहा है, लेकिन जिस गति से होनी चाहिए उस गति से नहीं हो रहा है।

जब हम ज्ञान अर्थव्यवस्था को देखते हैं तो हम अनुभव करते हैं कि ज्ञान वास्तव में भविष्य के लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है। आज, लोकतंत्र के तीन स्तंभ हैं: कार्यपालिका, न्यायपालिका, और विधायिका।

हम आश्वस्त हैं कि ज्ञान और सूचना भविष्य के लोकतंत्र की कुंजी है। यद्यपि इस संदेश को प्रभावी ढंग से बड़ी संख्या में लोगों को नहीं पहुंचाया गया है। आज, एक तरफ, हमारे पास वे सभी कानून हैं जो अभाव की अर्थव्यवस्था economy of scarcity) पर आधारित हैं, जबकि हम एक ऐसी दुनिया में रहते हैं जहां हमारे पास प्रचुरता की अर्थव्यवस्था (economy of abundance) है।

उदाहरण के लिये, भारत में हम पर्याप्त मात्रा में खाद्य पदार्थ का उत्पादन करते हैं। बहुत ज्यादा समय पहले की बात नहीं है, जब दुनिया के लोग कहा करते थे कि भारत 60 करोड़ लोगों को नहीं खिला पाएगा। भारत को बास्केट केस (अन्न के लिए झोली पसारने वाला देश) माना जाता था। पर आज न केवल भारत 120 करोड़ लोगों को खाना खिला सकता है,बल्कि भारत के पास अतिरिक्त अनाज भी है। ऐसे समय में भी, लगभग 20 करोड़ लोग। भारत में भूखे हैं क्योंकि हमने माल संभार (logistics) के लिये सूचना प्रौद्योगिकी का सही इस्तेमाल नहीं किया ताकि सही समय पर सही लोगों को रसद प्राप्त हो जाय।

ये ऐसी चुनौतियां हैं जिनके लिए नई मानसिकता और नई सोच की आवश्यकता है।

यह सचमच मझे उस दिशा में ले जाता है, जहाँ मैं कछ समय से काम कर रहा हूं। मेरा मानना है कि दुनिया को अनिवार्य रूप से पुनः डिज़ाइन करने की आवश्यकता है।

कार्ल और मैं, लगभग दो वर्षों से इस पर बात करते आ रहे हैं। दुनिया को पिछली बार अमेरिका ने द्वितीय विश्व यद्ध के बाद डिज़ाइन किया गया था जब विश्व बैंक, आई.एम.एफ नाटो, डब्ल्यू.टी.ओ, जी.डी.पी, जी.एन.पी, वैयक्तिक आय, भुगतान संतुलन, व्यापार घाटा, आदि जैसे संकेतकों/सूचकों के आधार पर तैयार किया गया और देखा जाने लगा।

उस डिजाइन को तैयार किए जाने के कुछ ही वर्ष बाद, 20 साल की छोटी अवधि में ही दुनिया से उपनिवेशवाद समाप्त हो गया। चीन के शासक देंग ज़ियाओ पिंग ने कहा कि, “मैं पूँजिवाद और साम्यवाद को जोड़ रहा हूँ”। सोवियत संघ में गोर्बाचेव आए और वे सोवियत संघ की जरूरतों के एकदम विपरीत बोले। वे अपने प्रयोग में असफल रहे, लेकिन वे बहुत से छोटे छोटे देशों की ऊर्जा को रिलीज करने में सफल रहे।

सभी लोग लोकतंत्र, स्वतंत्र बाजार, पूंजीवाद, मानवाधिकारों की सम्मान की आकांक्षाओं के साथ आये, जो दुनिया के पुराने डिजाइन की बुनियादी मान्यताएं थीं। वह डिजाइन अमेरिका के लिए बहुत अच्छी तरह से काम किया है। यह ऐसी मान्यताएं हैं, जो विश्व के [ ४४ ]कई देशों के लिए वांछनीय मानक और व्यावहारिक नहीं हैं - एक शब्द में कहा जाय तो ये पुराना डिज़ाइन 'सार्वभौमिक' नहीं है।

सूचना (Information) हमें एक नया डिजाइन तैयार करने का अवसर प्रदान करती है जो मानव की जरूरतों पर, नए आर्थिक मापदण्डों पर, अर्थव्यवस्था के पुनर्जनन । (regeneration) पर, पर्यावरण पर, खपत के बजाय संरक्षण/संवर्धन पर, और अन्ततोगत्वा अहिंसा पर, ध्यान केंद्रित करती है।

[ताली]

और फिर यह कार्य भी गांधीवादी विचारों से संबंधित है। मेरा मानना है कि इतिहास की तुलना में, गांधीवादी विचार आज की दुनिया के लिए अधिक प्रासंगिक हैं।

इंटरनेट के माध्यम से, हम वास्तव में गांधीवादी विचारों के साथ बड़ी संख्या में युवाओं तक पहुंच सकते हैं। नई तकनीक और संभावनाओं के साथ, दुनिया में सभी चीजों के साथ, लड़ाई का कोई कारण ही नहीं है, क्योंकि अगले 20 सालों में बहुत कुछ परिवर्तन होने वाला है - मसलन, मनुष्य की औसत आयु, उत्पादन, भोजन, परिवहन, संचार, चिकित्सा,पर्यावरण, ऊर्जा, इन सभी में क्षेत्र में खासा परिवर्तन होने वाले हैं।

ये सभी बदलाव हमारे समाज के पुनर्गठन का एकदम नया तरीका प्रदान करेगा।

दुनिया को नया स्वरूप देने के बारे में आज बहुत कम बातचीत होती है। हर कोई पुराने डिजाइन में ही फंस कर रह गए हैं। सभी का मानना है कि हमें अमेरिका की नकल करनी चाहिए, और हमें वही करना चाहिए जो 70 साल पहले अमेरिका ने किया था। मैं, उन लोगों में से एक हूं जो यह मानता हूं कि यह डिजाइन अब एकदम नहीं काम करता है।

मैं, यह सोचता हूं कि कार्ल, इंटरनेट आर्काइव, और अन्य सभी लोग एक प्रकार से सूचना को लोकतांत्रिक करने, लोगों को सशक्त बनाने, उन्हें अपने भविष्य पर अधिक अधिकार देने, उन्हें अपने लोकतंत्र में भाग लेने के लिए सहायता कर रहे है।

आज, कई देशों में, लोकतंत्र मौजूद है, फिर भी कोई कार्य करने के लिये बहुत ज्यादा आजादी नहीं है।

इंटरनेट आर्काइव और इंटरनेट, इन दस्तावेजों को, बड़ी संख्या में लोगों तक पहुंचा रहे हैं, इसे उपलब्ध करा रहे हैं कहीं भी, किसी भी समय पर, और वह भी मुफ्त में, जो वास्तव में दुनिया के भविष्य के लिए एकदम भिन्न आयाम प्रदान करता है।

मैं, संभावना को लेकर बहुत उत्साहित हूं। मैं भी इसमें शामिल होना चाहता हूं। मुझे खुशी है। कि आज मुझे यह अवसर प्राप्त हुआ है कि मैं, कार्ल के साथ हूं। [ ४५ ]

डॉ.सैम पित्रोदा की टिप्पणियां

कार्ल और मैं पिछले साल 2 अक्टूबर को भारत गए थे। हमारे गांधी आश्रम में एक बड़ा आयोजन था, जहां मैंने लगभग 100 लोगों की एक बैठक बुलाई थी।

हम सभी ने एक दिन इस बात पर विचार करते हुए बिताया कि हम गांधीवादी विचारों को कैसे बाहर ला सकते हैं? हम कैसे घरों, समुदायों, शहरों, राज्यों, देशों, और देशों के बीच अहिंसा की बाते फैला सकते हैं?

दर्भाग्य से, दनिया में, अहिंसा पर शायद ही कोई संस्था हैं। मेज पर शांति की चर्चा करने वाले सभी लोग मूल रूप से सैन्यबल से हैं। अहिंसा में उनकी कोई रुचि नहीं है। अहिंसा कभी भी सिखायी नहीं जाती है।

मैं शिकागो मे रहता हूं। मैं 53 वर्षों से शिकागो में रह रहा हूं। मैं, आपको बता दें कि सारी तकनीक और संपदा, सभी विशेषज्ञता के साथ, शिकागो 53 वर्षों में बिल्कुल भी नहीं बदला है। शिकागो में हर तरफ, पहले से कहीं ज्यादा गोलीबारी होती है।

इस सबके पीछे कोई भी कारण नहीं है।

आप यह जानकर हैरान होंगे कि अमेरिका में, आबादी के लगभग एक प्रतिशत लोग जेल में है। प्रति सैकड़ों के हिसाब से देखा जाय तो सबसे ज्यादा संख्या में कैदी अमेरिका में है। मुझे बताया गया है कि विश्व औसत के हिसाब से, प्रति हजार में एक व्यक्ति कैदी है जब कि अमेरिका में प्रति सौ व्यक्ति में से एक कैदी है, जो हमारी सोच से परे है।

मुझे लगता है कि सूचना प्रौद्योगिकी के माध्यम से जो भी आज हम करते हैं उसके ज्ञान को, बड़े स्तर पर प्रसार करने की आवश्यकता है। उन्हें सही साधन से लैस करें, और यहां हम। यही करने का प्रयास कर रहे हैं।

भारत से 5,00,000 किताबें लेना और इसे इंटरनेट आर्काइव पर ड़ालना एक बड़ा काम है। मुझे पता है कि गुजराती, बांगला, ओड़िया, तमिल, हिंदी में भारतीय भाषाओं में कई महान किताबें हैं, जो दुनिया के पाठकों को पढ़ने के लिए नहीं मिल पाती हैं।

उन्हें यह भी पता नहीं है कि यह साहित्य सार्थक है। हर बार जब लोग साहित्य के बारे में। बात करते हैं, तो यह केवल अंग्रेजी साहित्य के बारे में ही होती है। तमिल साहित्य के बारे में तो कोई सोचता भी नहीं है।

दो महीने पहले, मैं अपने एक दोस्त से मिला। उन्होंने कहा कि उन्होंने तमिलनाडु के पुस्तकालय में एक किताब देखी, जो 600 वर्ष पुरानी थी, जहां उन्होंने बच्चे के पालन-पोषण पर एक अध्याय पढ़ा। उन्होंने कहा कि यदि मैं उस अध्याय का अनुवाद आज अंग्रेजी में करूं तो आज के सभी डाक्टर अचम्भित हो जायेंगे, लेकिन किसी तरह यह साहित्य खो गया है क्योंकि यह स्थानीय भाषा में है। [ ४६ ]
हमें मशीनी अनुवाद की क्षमताओं की आवश्यकता है जो इन विभिन्न भाषाओं में से बहुत अच्छी किताबें ला सकते हैं और इसे अंग्रेजी में अनुवाद कर सकते हैं। कार्ल ने कुछ ऐसा करने की कोशिश की है। उनहोंने भारतीय भाषाओं की कुछ पुस्तकों को इंटरनेट आर्काइव पर डाला है, जो एक बेहतरीन योगदान है। यह एक अच्छी शुरुआत है, और मुझे आशा है। कि अन्य भारतीय भाषाओं की अधिक से अधिक पुस्तकें, इंटरनेट आर्काइव पर उपलब्ध


कार्ल ने आपकी इस कड़ी मेहनत के लिए आपको धन्यवाद देता हूं, आप ने जो किया है। हम उसकी सराहना करते हैं। मेरा मानना है कि आप हमें इंटरनेट आर्काइव के बारे में थोड़ा और अधिक जानकारी देंगे। आपके द्वारा ड़ाली गई सभी पुस्तकें, और जो कुछ भी हो रहा है, उसके बारे में हमें थोड़ा और शिक्षित करेंगे।


मुझे यहां, इंटरनेट आर्काइव पर होने की खुशी हो रही है। यह वास्तव में एक मंदिर में आने की तरह है। यह मेरे लिए बहुत मायने रखता है, क्योंकि यह ज्ञान का मंदिर है। मुझे इसके बारे में पता नहीं था। मैंने इसके बारे में पढ़ा था। मैंने काल से इस बारे में सुना था, लेकिन मैं यहां आकर बहुत खुश हूं।


मैं आशा करता हूँ कि मैं यहां अनेक बार आऊं, और इसमें भाग लें और आप सबके साथ काम करू, और वास्तव में यहां क्या हो रहा है, इसके बारे में थोड़ा सीखें। इसके साथ ही साथ, एक बार फिर, मैं यहां आने के लिए आप सभी को धन्यवाद देना चाहता हूं।


मैं पैनल पर अपने सहयोगियों को धन्यवाद देना चाहता हूं। मैं कुछ प्रमुख लोगों के नामों का उल्लेख करना चाहता हूं, क्योंकि वे मेरे करीबी दोस्त और परिवार हैं, और यहां मौजूद हैं। मुझे खुशी है कि इसकी शुरुआत मैं, यहां उपस्थित अपनी पोती, आरिया से करता हूँ।


[ताली]


यह पहला अवसर है जब उसने मुझे व्याख्यान देते हुए सुना है। वह हमेशा मुझसे कुछ पूछती रहती है। इस बार भी उसने मुझसे कहा, “ दादा” (पिताजी के पिताजी अर्थात । पितामह को कहते हैं, “आप किस बारे में बात करने जा रहे हैं?” मैंने कहा, “मुझे पता नहीं। ”


उसने पुछा, “क्या आपने नोट तैयार किए हैं?” मैंने कहा, “नहीं”


[हंसी]


उसने कहा, “क्या आप भारत में अपने टेलीफोन संबंधी कार्य पर बात करने जा रहे हैं?” मैंने कहा, “नहीं।”


तब उसने फिर से पूछा और कहा, “लेकिन फिर आप किस बारे में बात करने जा रहे हैं?” मुझे खुशी है कि वह यहां मौजूद है। [ ४७ ]

डॉ.सैम पित्रोदा की टिप्पणियां

मेरी बेटी भी यहां है, और जब मैं सार्वजनिक सभा में भाषण देता हूं, तब मैं उसके बारे में। सोचता हूँ कि कैसे मैं उसे खुश करू। यदि मैं अच्छा भाषण नहीं देता, तो वह मुझे बताएगी कि, “पिताजी, यह अच्छा नहीं था।”

[हंसी]

मेरी पत्नी और मेरी बहु भी यहां है। मेरा एक करीबी दोस्त, भारतीय संसद के सदस्य, दिनेश त्रिवेदी, यहां अपने परिवार, उनकी पत्नी और उनके पुत्र के साथ मौजूद हैं।

[ताली]

मेरे एक और मित्र, रजत गुप्ता भी यहां हैं। यहां आने के लिए उनका धन्यवाद।

[ताली]

अंत में, मेरे एक और मित्र, निशीथ देसाई, और उनका पूरा परिवार मुंबई से यहां आया है। धन्यवाद, निशीथ भाई।

और यहां आने के लिए आप सभी का धन्यवाद, और हमें मेजबानी करने देने के लिए भी

धन्यवाद। [ ४८ ]
जून 2017, के कार्यक्रम के आयोजन और इस अवसर को चिह्नित करने के लिए, गांधी के पोस्टर भवन के बाहर स्थापित किए गए थे। डेविड ग्लेन रीनहार्ट द्वारा ली गई फोटो।
[ ४९ ]
समोसे, नान, आम की लस्सी और मुंबई से मंगाए गए अचार और मसालेदार ड्राय फ्रूट्स परोसे गये। डेविड ग्लेन रीनहार्ट द्वारा ली गई फोटो।
इंटरनेट आर्काइव में, दिनेश त्रिवेदी (बाएं) इस कार्यक्रम से, पहले अचार और समोसे का आनंद ले रहे हैं। डेविड ग्लेन रीनहार्ट द्वारा ली गई फोटो।
[ ५० ]
ब्रिवस्टर काले (Brewster Kahle) और सैम पित्रोदा इस आयोजन से पहले बातचीत करते हुए। डेविड ग्लेन रीनहार्ट द्वारा ली गई फोटो।
दिनेश त्रिवेदी और उनका परिवार भाषण को सुन रहे हैं। डेविड ग्लेन रीनहार्ट द्वारा ली गई फोटो।
[ ५१ ]
इंटरनेट आर्काइव में, कार्यक्रम के खत्म होने के बाद, आम की लस्सी का आनंद लेते हुए। डेविड ग्लेन रीनहार्ट द्वारा ली गई फोटो।
इंटरनेट आकइव में, माननीय राजदत वेंकटेशन अशोक, पूजा की घंटी के महत्व को समझाते हैं। डेविड ग्लेन रीनहार्ट द्वारा ली गई फोटो।
[ ५२ ]
इंटरनेट आर्काइव, जो ज्ञान का एक मंदिर है जो एक परिवर्तित चर्च में स्थित है, उसके लिये 20 पाउंड के पूजा की घंटी भेंट करने के कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए, राजदूत अशोक। एडेविड ग्लेन रीनहार्ट द्वारा ली गई फोटो।

यह कार्य भारत में सार्वजनिक डोमेन है क्योंकि यह भारत में निर्मित हुआ है और इसकी कॉपीराइट की अवधि समाप्त हो चुकी है। भारत के कॉपीराइट अधिनियम, 1957 के अनुसार लेखक की मृत्यु के पश्चात् के वर्ष (अर्थात् वर्ष 2024 के अनुसार, 1 जनवरी 1964 से पूर्व के) से गणना करके साठ वर्ष पूर्ण होने पर सभी दस्तावेज सार्वजनिक प्रभावक्षेत्र में आ जाते हैं।


यह कार्य संयुक्त राज्य अमेरिका में भी सार्वजनिक डोमेन में है क्योंकि यह भारत में 1996 में सार्वजनिक प्रभावक्षेत्र में आया था और संयुक्त राज्य अमेरिका में इसका कोई कॉपीराइट पंजीकरण नहीं है (यह भारत के वर्ष 1928 में बर्न समझौते में शामिल होने और 17 यूएससी 104ए की महत्त्वपूर्ण तिथि जनवरी 1, 1996 का संयुक्त प्रभाव है।