चन्द्रकांता सन्तति १/1.2

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चन्द्रकांता सन्तति
द्वारा देवकीनन्दन खत्री

[ १४ ]पेयार ही निकले,जो सोचा था वही हु।खैर या हर्च है, इन्द्रचीतसिंह को गिरफार कर लेना जरा टेढ़ी खीर है।।

शिवदत्त॰।(पास पहुँच कर)मेरा श्राधा कलेजा तो ठण्डा हुआसंगर अफसोस तुम दोनों भाई हाधे न आएँ।

इन्द्रजीत।जी इस भरोसे न रहिएगा कि इन्द्रजीतसिंह को फँसा लिया, उनकी तरफ बुरा निगाह से देखना भी काम रखता है!

ग्रन्थकर्ता०।भला इसमें भी कोई शक है!!

दूसरा बयान।

।इस जगह पर थोडा सा हाल महाराज शिवदत्त की भी बयान करना मुनासिब मालूम होता है।महाराज शिवदत्ते को हर तरह से कु अर रेन्द्रसिंह के मुकाले में हार मानना पटी।लाचार उस शहर छोड़ दियाऔरअपने कई पुन खैखाह को साथ ल चुनार के दक्खिने का तरफ रवाना हूं।

चुनार से थोड़े ही दूर दक्खन लम्बा चौडा घना जगल है। यह विन्ध्य के पहाड़ जंगल का सिलसिला राव सरोज सुगुजा श्रौर सिंगरोल होता दुःश्रा सैकड़ों की तक चला गया है जिसमें बड़े बड़े पहाड धटया दरें शीर खोह पाते हैं।बीच बीच में दो दो चार चार कोस क फासल पर गाँव भी अवाद है।वही कहा पहाड़ो पर पुराने जमान के टूटे फूटे अलीशान किले अभी तक दिखाई पड़ते हैं।चुनार से आठ केस दक्खन अहरौरा के पास पहाई पर पुरान जमाने के एक वदि किले का निशान व्याज भी देखने से चित्त का भाव बदल जाता हैं।गौर करने से मालूम होता है कि जब यह किला दुरुस्त होगा तो तीन कोख से ज्यादं लम्बी चौडी जमीन इसने घेरं होगी,खीर में यह किला काशी के मशहूर राजा चेतसिंह के अधिकार में थी। इन्ही जगलों में अपना रानी और कई खैरखाही को मय उनकी श्रीरतो और बाल बच्चो के साथ लिए [ १५ ] घूमते फिरते महाराज शिवदत्त ने चुनार से लगभग पचास कोस दूर जाकर एक हरी भरी सुहावनी पहाडी के ऊपर के एक पुराने टूटे हुए,मजबूत किले में डेरा डाला और उसका नाम शिवदत्तगढ़ रखा जिसमें उस वक्त भी कई कमर और दालान रहने लायक थे।यह छोटी पहाडी अपने चारे तरफ के ऊँचे ऊँचे पहाड़ों के बीच में इस तरह छिपी और दत्री हुई थी वि यकायक किसी का यहाँ पहुँचना श्रौर कुछ पता लगाना मुश्किल था।।इस वक्त महाराज शिवदत्त के साथ सिर्फ वास आदमी थे जिन तीन मुसलमान ऐयार भी थे जो शायद नाजिम और अहमद के रिश्ते शरों में में से झीर यह समझ कर महाराज शिवदत्त के साथ हो गए।कि इनके शामिल रहने से कभी न कभी राजा वीरेन्द्रसिंह से बदला ले का मौका मिल ही जायगा, दूसरे सिवाय शिवदत्त के श्रौर केाई इर लायक नजर भी न झात्ती था जो इन बेईमान को ऐयारी के लिए अपने मा राता।नेचे लिखे नाम से ये तीनों ऐयार पुकारे जाते थे-चाकर अला,ईटावक्श और यारग्रल!इन सत्र ऐयारों श्रौर साथियों ने मुपए,पैसे से भी जहाँ तक बन पड़ा महाराज शिवदत्त की मदद की।

राजा वारेन्द्रसिंह की तरफ से शिवदत्त का दिल साफ न हुआ मगर मेंका न मिलने के स व मुद्दत तक उसे चुपचाप बैठे रहना पड़ा।अपनी चालाकी और होशियारी से वह् पहाटी भिल्ल कोल और पवार इत्यादि जाति के श्रादमिर्यों का राजा बन बैठा और उनसे मालगुजार में गल्ला मी शहद श्रीर,बहुत मी जगली चीजें वसूल करने और उन्हीं लोगों के मारफत दर में भैरवा और विया कर रुपए,बटोरने लगा।उन्हीं लोगो से शियार रके थे।बहुत फौज भी उस वन लधापहाति के लोग भै होशियार हो गए और खुद्द शहर मेंर मला वर्ग इंच रुपए इक्ट्ठा करने लगे । शिवदत्तगढ़ भा अच्छी तरह अबाद आ गया।

दूध बो रह ऐयारी ने भी अपने कुल साथ को जो [ १६ ]________________

पहिला हिस्सा चुनार से इनके साथ आए थे ऐयारी के फन में खुत्र होशियार किया । इस बीच में एक लडका और उसके बाद एक लटकी भी महाराज शिवदत्त के घर पैदा हुई । मौका पाकर अपने बहुत से आदमियों और ऐयारो को साथ ले वह शिवदत्तगढ़ के बाहर निकला थौर राजा बीरेन्द्रसिंह से बदला लेने की फिक्र में कई महीने तक धूमता रहा | बस महाराज शिवदत्त का इतना ही मुख्तसर हाल लिख कर हम इस बयान को समाप्त करते हैं और फिर इन्द्रजीतसिंह के किस्से को छेड़ते हैं ।। इन्द्रजीतसिंह के गिरक्तार होने के बाद उन बनावटी शेरों ने भी अपनी हालत बदली और असली सूरत के ऐयार बन बैठे जिनमें यारअली बाकरअली और खुदाबख्श मुखिया थे । महाराज शिवदत्त बहुत ही खुश हुआ श्रौर समझा कि अब मेरा जमाना फिरा, ईश्वर चाहे तो फिर चुनार की गद्दी पाऊँगा और अपने दुश्मनों से पूरा बदला लूगा । | इन्द्रजीतमिह को कैद कर वह शिवदत्तगढ़ ले गया | सभों को ताज्य इशा कि कु अर इन्द्रजीतसिंह ने गिरफ़ार होते समय कुछ उत्पात न मचाया, किसी पर गुस्सा न निकाला किसी पर हब न उठाया, यहां तक कि अॉखों से उन्होंने रञ्ज अफसोस या क्रोध भी जाहिर न होने दिया । {इकीकत में यह ताज्जुब की बात थी भी कि वहादुर वीरेन्द्रसिंह का शेरदिल नड़की ऐसी हालत में चुप रह जाय और विना हुनत किए बेड पहिर कुले, मगर नहा इसका कोई सबब जरूर है जो आगे चल कर मालूम होगा । तीसरा बयान धः चुनारगढ़ किले के अन्दर एक कमरे में महाराज सुरेन्द्रसिंह, वीरेन्द्र ५ रिह, जीतसिंह, तेजसिंह, देवीसिंह, इन्द्रजीतसिंह और नन्दसिह इँटे। दए धीरे धीरे कुछ बातें कर रहे हैं । जति० । भैरो ने बड़ी होशियारी का काम किया कि अपने को इन्द्र। दीवसिंह को सुरत बना शिवदत्त के ऐयारों के हाथ फँसाया । ३