चन्द्रकांता सन्तति 3/10.8

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चंद्रकांता संतति भाग 3  (1896) 
द्वारा देवकीनंदन खत्री

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दारोगा जिस समय इन्द्रदेव के सामने से उठा तो बिना इधर-उधर देखे सीधा अपने कमरे में चला गया और चादर से मुँह ढांप कर पलंग पर सो रहा। घण्टे भर रात गई होगी जब मायारानी यह पूछने के लिए कि इन्द्रदेव ने आपको क्यों बुलाया था बाबाजी के कमरे में आई, मगर जब बाबाजी को चादर से मुँह छिपाए पड़े देखा तो उसे आश्चर्य हुआ। वह उनके पास गई और चादर हटा कर देखा तो बाबाजी को जागते पाया। इस समय बाबाजी का चेहरा जर्द हो रहा था और ऐसा मालूम पड़ता था कि उनके शरीर में खून का नाम भी नहीं है या महीनों से बीमार हैं।

बाबाजी की ऐसी अवस्था देख कर मायारानी सन्न हो गई और बाबाजी का मुँह देखने लगी।

दारोगा--इस समय जाओ सो रहो, मेरी तबीयत ठीक नहीं है।

मायारानी-मैं केवल इतना ही पूछने के लिए आई थी कि इन्द्रदेव ने आपको क्यों बुलाया था और क्या कहा?

दारोगा कुछ नहीं, उसने केवल धीरज दिया और कहा कि चार-पांच दिन ठहरो मैं तुम लोगों का बन्दोबस्त कर देता हूँ। तब तक नागर भी गिरफ्तार होकर आ जाती है, लोग उसे पकड़ने के लिए गये हैं।

मायारानी-मगर आपकी अवस्था तो कुछ और कह रही है।

दारोगा-बस, इस समय और कुछ न पूछो। मैं अभी कह चुका हूँ कि मेरी तबीयत ठीक नहीं है, मैं इस समय बात भी मुश्किल से कर सकता हूँ।

मायारानी और कुछ भी न पूछ सकी, उलटे पैर कर अपने कमरे में चली गई और पलंग पर लेट के सोचने-विचारने लगी, मगर थकावट, माँदगी और चिन्ता ने उसे अधिक देर तक चैतन्य न रहने दिया और शीघ्र ही वह नींद की गोद में जाकर खर्राटे लेने लगी। [ ११६ ] रात बीत गई। सवेरा होने पर दारोगा ने दरियाफ्त किया तो मालूम हुआ कि इन्द्रदेव यहां नहीं हैं। एक आदमी ने कहा कि तीन-चार दिन के बाद आने का वादा करके कहीं चले गये हैं और यह कह गए हैं कि आप और मायारानी तब तक यहां से जाने का इरादा न करें। अब बाबाजी को मालूम हुआ कि दुनिया में उनका साथी कोई भी नहीं है और उनके बुरे कर्मों पर ध्यान देकर कोई भी उनकी मदद नहीं कर सकता। उन्हें अपने कर्मों का फल अवश्य भोगना ही होगा।