तितली/1.4

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तितली - उपन्यास - जयशंकर प्रसाद  (1934) 
द्वारा जयशंकर प्रसाद

[ २० ]इन्द्रदेव की माता श्यामदुलारी पुराने अभिजात - कुल की विधवा हैं । प्राय : बीमार रहा करती हैं । किंतु मुख -मंडल पर गर्व की दीप्ति , आज्ञा देने की तत्परता और छिपी हुई सरल दया भी अंकित है ? वह सरकार हैं । उनके आस -पास अनावश्यक गृहस्थी के नाम पर जुटाई गई अगणित सामग्री का बिखरा रहना आवश्यक है। आठ से कम दासियों से उनका काम चल ही नहीं सकता । दो पुजारी और ठाकुरजी का संभार अलग । इन सबके आज्ञा- पालन के लिए कहारों का पूरा दल । बहंगी पर गंगाजल और भोजन का सामान ढोते हुए कहारों का आना -जाना श्यामदुलारी की आंखें सदैव देखना चाहती थीं । बेटा विलायत से लौट आया है । एक दिन उनसे मिलकर उनकी चरण - रज लेकर वह छावनी में चला आया और यहीं रहने लगा । लोग कहते हैं कि इन्द्रदेव के कानों में जब यह समाचार किसी मतलब से पहुंचा दिया गया कि चरण छूकर आपके चले आने पर माताजी ने फिर से स्नान किया , तो फिर वह मकान पर न ठहर सके । किंतु श्यामदुलारी की प्रकृति ही ऐसी है। उसने ऐसा किया हो , तो कोई आश्चर्य नहीं । तब भी श्यामदुलारी को तो यही विश्वास दिलाया गया कि — साथ में मेम नहीं आई है! श्यामदुलारी अपने बेटे को संभालना चाहती थीं । बेटी माधुरी से पूछकर यही निश्चित हुआ कि सब लोग छावनी पर ही कुछ दिन चलकर रहें । वहीं इन्द्रदेव को सुधार लिया जाएगा । माधुरी घर की प्रबंधकी है। वह दक्ष, चिड़चिड़े स्वभाव की सुंदरी युवती है। माता श्यामदुलारी भी उसके अनुशासन को मानती हैं और भीतर - ही - भीतर दबती भी हैं । माधुरी का पति उसकी खोज - खबर नहीं लेता । उसे लेने की आवश्यकता ही क्या ? माधुरी धनी घर की लाड़ली बेटी है। इसलिए बाबू श्यामलाल को इस अवसर से लाभ उठाने की पूरी सुविधा है। श्यामदुलारी, बेटी और दामाद दोनों को प्रसन्न रखने की चेष्टा में लगी रहती हैं । बहत बुलाने पर कभी साल- भर में बाबू श्यामलाल कलकत्ता से दो -तीन दिन के लिए चले आते हैं । उनका व्यवसाय न नष्ट हो जाए, इसलिए जल्द चले जाते हैं — अर्थात् रेस की टीप , बगीचों के जुए, स्टीमरों की पार्टियां और भी कितने ही ऐसे काम हैं , जिनमें चूक जाने से बड़ी हानि उठाने की संभावना है । माधुरी शासन करने की क्षमता रखती है । भाई इन्द्रदेव पढ़ते थे; इसलिए माता की रुग्णावस्था में घर - गृहस्थी का बोझ दूसरा कौन संभालता ? ___ माधुरी की अभिभावकता में माता श्यामदुलारी सोती हैं सपना देखती हैं । इसलिए माधुरी भी साथ ही आई हैं । चौकी पर मोटे - से गद्दे पर तकिया सहारे बैठी वह कुछ हिसाब देख रही थी । पेट्रोल -लैंप के तीव्र प्रकाश में उसकी उठी हुई नाक की छाया दीवार पर बहुत लंबी- सी दिखाई पड़ती है। मलिया बड़ी नटखट छोकरी है। वह पान का डिब्बा लिये हुए, उस छाया को देखकर, जोर से हंसना चाहती है; पर माधुरी के डर से अपने होठों को दांत से दबाए चुपचाप खड़ी है । मिस अनवरी की छाया से वह चौंक उठी । उसने चुलबुलेपन से कहा — मेम साहब , सलाम ! [ २१ ]माधुरी ने सिर उठाकर देखा और कहा—आइए, हम लोग बड़ी देर से आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं। मां का दर्द तो बहुत बढ़ गया है। ___ माधुरी के पास ही बैठते हुए अनवरी ने—बीबी, तुमको देखने के लिए जी ललचाया रहता है, मां को तो देगी ही कहकर उसके हाथों को दबा दिया। माधुरी ने झेंपकर कहा-आहा तुम तो मेम और साहब दोनों ही हो न? अच्छा, यह तो बताओ, तुम्हारे ठहरने का क्या प्रबंध करूं? आज रात को तो मोटर से शहर लौट जाने न दूंगी। अभी मां पूजा कर रही हैं, एक घंटे में खाली होगी, फिर घंटों उनको देखने में लग जाएगा। बजेगा दो और जाना है तीस मील! आज रात को तुमको रहना ही होगा। . अनवरी ने मुस्कुराते हुए कहा—सो तो बीबी, तुम्हारी भाभी ने मुझे न्योता ही दिया माधुरी क्षण-भर के लिए चुप हो गई। फिर बोली—अनवरी, ऐसी दिल्लगी न करो, यह बात मुझे ही नहीं, घर भर को खटक रही है। लेकिन भाई साहब तो कहते हैं कि वह हमारी दोस्त है! हां—बीबी, दोस्ती नहीं तो क्या दुश्मनी से कोई इतना बड़ा... माधुरी ने भीतर के कमरे की ओर देखते हुए उसके मुंह पर हाथ रख दिया, और धीरेधीरे कहने लगी—प्यारी अनवरी! क्या इस चुडैल से छुटकारा पाने का कोई उपाय नहीं? हम लोग क्या करें? कोई बस नहीं चलता। धीरे-धीरे सब हो जाएगा। लेकिन तुम्हें बुरा न लगे, तो मैं एक बात पूछ लूं। क्या? कुंवर साहब इससे ब्याह कर लें, तो तुम्हारा क्या? ऐसा न कहो अनवरी! तुम्हारी मां तो फिर तुमको ही... उंह तुम क्या बक रही हो! अच्छा तो मैं कुछ दिन यहां रहूं तो... तो रहो न मेरी रानी।