तितली/1.6

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तितली - उपन्यास - जयशंकर प्रसाद  (1934) 
द्वारा जयशंकर प्रसाद

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श्यामदुलारी आज न जाने कितनी बातें सोचकर बैठी थीं-लड़का ही तो है, उसे दो बात खरी-खोटी सुनाकर डांट-डपटकर न रखने से काम नहीं चलेगा-पर विलायत हो आया है। बैरिस्टरी पास कर चुका है। कहीं जवाब दे बैठा तो! अच्छा...आज वह मेम की छोकरी भी साथ आएगी। इस निर्लज्जता का कोई ठिकाना है! कहीं ऐसा न हो कि साहब की वह कोई निकल आवे! तब उसे कुछ कहना तो ठीक न होगा। अभी दो महीने पहले कलेक्टर साहब जब मिलने आए थे, तो उन्होंने कहा था- ‘रानी साहब, आपके ताल्लुके में नमूने के गांव बसाने का बंदोबस्त किया जाएगा। इसमें बड़ी-बड़ी खेतियां, किसानों के बैंक और सहकार की संस्थाएं खुलेंगी। सरकार भी मदद देगी।' तब उसको कुछ कहना ठीक न होगा। माधुरी की क्या राय है? वह तो कहती है- 'मां, जाने दो, भाई साहब को कुछ मत कहो?' तो क्या वह अपने मन से बिगड़ता चला जाएगा। सो नहीं हो सकता। अच्छा, जाने दो। माधुरी के मन में अनवरी की बात रह-रहकर मरोर उठती थी। इन्द्रदेव क्या यह घर [ २७ ]________________

संभाल सकेंगे? यदि नहीं, तो मैं क्यों बनाने की चेष्टा करूं। उसके मन में तेरह बरस के कृष्णमोहन का ध्यान आ गया। थियासोफिकल स्कूल में वह पढ़ता है। पिता बाबू श्यामलाल उसकी ओर से निश्चित थे। हां, उसके भविष्य की चिंता तो उसकी माता माधुरी को ही थी। तब भी वह जैसे अपने को धोखे में डालने के लिए कह बैठती-जैसा जिसके भाग्य में होगा, वही होकर रहेगा। अनवरी इस कुटुंब की मानसिक हलचल में दत्तचित्त होकर उसका अध्ययन कर रही थी। न जाने क्यों, तीनों चुप होकर मन-ही-मन सोच रही थीं। पलंग पर श्यामदुलारी मोटी-सी तकिया के सहारे बैठी थीं। चौकी पर चांदनी बिछी थी। माधुरी और अनवरी वहीं बैठी हुई एक-दूसरे का मुंह देख रही थीं। तीन-चार कुर्सियां पड़ी थीं। छोटी कोठी का यह बाहरी कमरा था। श्यामदुलारी यहीं पर सबसे बात करती, मिलती-जुलती थीं; क्योंकि उनका निज का प्रकोष्ठ तो देव-मंदिर के समान पवित्र, अस्पृश्य और दुर्गम्य था? बिना स्नान किए-कपड़ा बदले, वहां कौन जा सकता था! बाहर पैरों का शब्द सुनाई पड़ा। तीनों स्त्रियां सजग हो गईं, माधुरी अपनी साड़ी का किनारा संवारने लगी। अनवरी एक उंगली से कान के पास के बालों को ऊपर उठाने लगी और, श्यामदुलारी थोड़ा खांसने लगी। इन्द्रदेव शैला और चौबेजी के साथ, भीतर आए। माता को प्रणाम किया। श्यामदुलराि ने 'सुखी रहो' कहते हुए देखा कि वह गोरी मेम भी दोनों हाथों की पतली उंगलियों में बनारसी साड़ी का सुनहला अंचल दबाए नमस्कार कर रही है। अनवरी उठकर खड़ी हो गई। माधुरी चौकी पर ही थोड़ा खिसक गई। माता ने बैठने का संकेत किया। पर वह भीतर से शैला से बोलने के लिए उत्सुक थी। इन्द्रदेव ने कहा-मिस अनवरी! मां का दर्द अभी अच्छा नहीं हुआ। इसके लिए आप क्या कर रही हैं। क्यों मां, अभी दर्द में कमी तो नहीं है? है क्यों नहीं बेटा! तुमको देखकर दर्द दूर भाग जाता है। श्यामदुलारी ने मधुरता से कहा। - तब तो भाई साहब, आप यहीं मां के पास रहिए। दर्द पास न आवेगा। -माधुरी ने कहा। लेकिन बबिरिनिा! और लोग क्या करेंगे? कुंवर साहब यहीं घर में बैठे रहेंगे, तो जो लोग मिलने-जुलने वाले हैं, वे कहां जाएंगे! ____ -अनवरी ने व्यंग्य से कहा। यह बात श्यामदलारी को अच्छी न लगी। उन्होंने कहा-मैं तो चाहती हैं कि इन्द्र मेरी आखों से ओझल न हो। वह करता ही क्या है मिस अनवरी! शिकार खेलने में ज्यादा मन लगाता है। क्यों, विलायत में इसकी बड़ी चाल है न! अच्छा बेटा! यह मेम साहब कौन है? इनका तो तुमने परिचय ही नहीं दिया। मां, इंग्लैंड में यही मेरा सब प्रबंध करती थी। मेरे खाने-पीने का, पढ़ने-लिखने का, कभी जब अस्वस्थ हो जाता तो डॉक्टरों का, और रात-रात-भर जागकर नियमपूर्वक दवा देने का काम यही करती थी। इनका मैं चिर-ऋणी हूं। इनकी इच्छा हुई कि मैं भारतवर्ष [ २८ ]________________

देलूंगी।

  • इसी से चली आई हैं न! अच्छा बेटा! इनको कोई कष्ट तो नहीं? हम लोग इनके शिष्टाचार से अपरिचित हैं। चौबेजी! आप ही न मेम साहब के लिए...ओ इनका नाम क्या है, यह पूछना तो मैं भूल ही गई।

मेरा नाम 'शैला' है मां जी! शैला की बोली घंटी की तरह गूंज उठी! श्यामदुलारी के मन में ममता उमड़ आई। उन्होंने कहा-चौबेजी! देखिए, इनको कोई कष्ट न होने पावे। इन्द्रदेव तो लड़का है, वह कभी काहे को इनकी सुविधा की खोज-खबर लेता होगा। जी सरकार! मेम साहब बड़ी चतुर हैं। वह तो कुंवर साहब का प्रबंध स्वयं आदेश देकर कराती रहती हैं। हम लोग तो अभी सीख रहे हैं। बड़े सरकार के समय में जो व्यवस्था थी, उसी से तो अब काम नहीं चल सकता! इन्द्रदेव घबरा गए थे। उन्हें कभी चौबे, कभी अनवरी पर क्रोध आता; पर वह बहाली देते रहे। __ माधुरी ने कहा-अच्छा तो भाई साहब! अभी शहर चलने की इच्छा नहीं है क्या? अब तो यहां कड़ी देहाती सर्दी पड़ेगी। नहीं, अभी तो यहीं रहूंगा। क्यों मां, यहां कोई कष्ट तो नहीं है?—इन्द्रदेव ने पूछा। अनवरी ने कहा-इस छोटी कोठी में साफ हवा कम आती है। और तो कोई...हां, बीबीरानी, मैं यह तो कहना भूल ही गई थी कि मुझे आज शहर चले जाना चाहिए। कई रोगियों को आज ही तक के लिए दवा दे आई हूं। मोटर तो मिल जाएगी न? ठहरिए, आप तो न जाने क्यों घबराई हैं। अभी तो मां की दवा...माधुरी की बात पूरी न होने पाई कि अनवरी ने कहा-दवा खाएगी तो नहीं, यही लगाने की दवा है। लगाते रहिए, मुझे रोक कर क्या कीजिएगा। हां, यहां साफ हवा मिलनी चाहिए, इसके लिए आप सोचिए। __चौबेजी बीच में बोल उठे-तो बड़ी सरकार उस कोठी में रहें, खुले हुए कमरे और दालान उसमें तो हैं ही। बोलने के लिए तो बोल गए; पर चौबेजी कई बातें सोचकर दांत से अपनी जीभ दबाने लगे। उनकी इच्छा तो हुई कि अपने कान भी पकड़ लें; पर साहस न हुआ। इन्द्रदेव चुप रहे। शैला ने कहा-मां जी! बड़ी कोठी में चलिए। यहां न रहिए। -वह बेचारी मूल गई कि श्यामदुलारी उसके साथ कैसे रहेंगी! श्यामदुलारी ने इन्द्रदेव का चेहरा देखा। वह उतरा हुआ तो नहीं था; किंतु उस पर उत्साह भी न था। माधुरी ने शैला को स्वयं कहते हुए जब सुना, तो वह बोली-अच्छा तो है मां! मेम साहब और अनवरी बीबी इसमें आ जाएंगी। हम लोग वहीं चलकर रहें। अनवरी ने कहा-मुझे एक दिन में लौट आने दीजिए। श्यामदुलारी ने देखा कि काम तो हो चला है, अब इस बात को यहीं रोक देना चाहिए। वह बोली-बेटा! कलेक्टर साहब ने नमूने का गांव बसाने का जो नक्शा भेजा था, उसे तुमने देखा? नहीं मां, अभी तो नहीं-शैला के पास वह है। इन्हें गांवों से बड़ा प्रेम है। मैंने इन्हीं के ऊपर यह भार छोड़ दिया है। इसके लिए यही एक योजना तैयार करने में लगी हैं। [ २९ ]श्यामदुलरि सावधान हो गईं। शैला ने कहा-मां जी, अभी तो मैं गांवों में जाकर यहां की बातें समझने लगी हूं। फिर भी बहुत-सी बातें अभी नहीं समझ सकी हूं। किसी दिन आपको अवकाश रहे, तो मैं नक्शा ले आऊं?

चौबे जी ने एक बार माधुरी की ओर देखा और माधुरी ने अनवरी को। तीनों का भीतर-ही-भीतर एक दल-सा बंध गया। इधर मां, बेटे की ओर होने लगी-और शैला, जो व्यवधान था, उसकी खाई में पुल बनाने लगी।

श्यामदुलारी का हृदय, बेटे का काम की बातों में मन लगाते देखकर, मिठास से भरने लगा। उन्होंने कहा-अच्छा; तो मैं अब पूजा करने जाती हूं। बीबी! मिस अनवरी को जाने दो, कल आ जाएंगी। हां, एक बात तो मैं भूल ही गई थी-मिस अनवरी, आप आने लगिए, तो कृष्णमोहन को छुट्टी दिलाकर साथ लिवाते आइएगा।

श्यामदुलारी ने माधुरी को भी प्रसन्न करने का उपाय निकाल ही लिया! अनवरी ने कहा-बहुत अच्छा।

शैला ने कहा-मैं आपके पास आकर कभी-कभी बैठा करूं, इसके लिए क्या आप मुझे आज्ञा देगी मां जी!

क्यों नहीं; आपका घर है, चाहे जब चली आया करें। मुझे तो अपने देश की कहानी आपने सुनाई ही नहीं!

नहीं; मैं इसलिए आज्ञा मांगती थी कि मेरे आने से आपको कष्ट न हो। मुझे अलग कुर्सी पर बैठाया कीजिए। मैं आपको छुऊंगी नहीं शैला ने बड़ी सरलता से कहा।

श्यामदुलरि ने हंसकर कहा-वाह! यह तो मेरे सिर पर अच्छा कलंक है। क्या मैं किसी को छूती नहीं? आप आइए, मुझे आपकी बातें बड़ी मीठी लगती हैं।

इन्द्रदेव ने देखा कि उनके हृदय का बोझ टल गया-शैला ने मां के समीप पहंचने का अपना पथ बना लिया। उन्होंने इसे अपनी विजय समझी। वह मन-ही-मन प्रसन्न हो रहे थे कि शैला ने उठते हुए नमस्कार करके कहा-मां जी, मुझसे मूल हो सकती है, अपराध नहीं। तब भी, आप लोगों की स्नेह-छाया में मुझे सुख की अधिक आशाहै।

श्यामदुलारी का स्नेह-सिक्त हृदय भर उठा। एक दूर देश की बालिका कितना मधुर हृदय लिये उनके द्वार पर खड़ी है।

श्यामदुलारी स्नान करने चली गईं।

इन्द्रदेव के साथ शैला धीरे-धीरे बड़ी कोठी की ओर चली जा रही थी। मोटर के लिए चौबेजी गए थे, तब तक दालान में अनवरी से माधुरी कहने लगी-तुमने ठीक कहा था मिस अनवरी!

उसने माधुरी को अधिक खुलने का अवसर देते हुए कहा-मैंने क्या ठीक कहा था? यही, शैला के संबंध में...

अनवरी गंभीर बन गई। उसने कहा-बीबी रानी! तुम लोगों को इनसे कभी काम नहीं पड़ा है। ये सब जादूगर हैं। देखा न मां जी को कैसा अपनी ओर ढुलका लिया-मोम बन गई। क्या यूं ही सात समुद्र तेरह नदी पार करके यह आई है! और...

पर तुमने भी मिस अनवरी! शैला को अच्छा एक उखाड़ दिया! थोड़ा-सा तो वह सोचेगी, बंगले से हटना उसे अखरेगा। क्यों?-बीच ही में माधुरी ने कहा। [ ३० ]________________

वह भी घुटी हुई है, कैसा पी गई! बीबी को कसक तो होगी ही! बीबी रानी, मैं तुमसे फिर कहती हूं तुम अपनी देखो। आपके भाई साहब तो नदी की बाढ़ में बह रहे हैं। मैं कल तो न आ सकूँगी। हां, जल्दी आने की... नहीं-नहीं अनवरी! कल, कल तुमको अवश्य आना होगा। इस समय तुम्हारी सहायता की बड़ी आवश्यकता है। उस चुडैल को, जिस तरह हो, नीचा... माधुरी आगे कुछ न कह सकी, उसका क्रोध कपोलों पर लाल हो रहा था। ___ मानव-स्वभाव है; वह अपने सुख को विस्तृत करना चाहता है। और भी, केवल अपने सुख से ही सुखी नहीं होता, कभी-कभी दूसरों को दुखी करके, अपमानित करके, अपने मान को, सुख को प्रतिष्ठित करता है। माधुरी के मन में अनवरी के द्वारा जो आग जलाई गई है, वह कई रूप बदलकर उसके कोने-कोने में झलसाने लगी है उसके मनमें लोभ तो जाग ही उठा था। अधिकारच्यत होने की आशंका ने उसे और भी संदिग्ध और प्रयत्नशील बना दिया। उसके गौरव की चांदनी शैला की उषा में फीकी पड़ेगी ही, इसकी दृढ़ संभावना थी, और अब वह युद्ध के लिए तत्पर थी। चौबेजी को खींचने के लिए उसने मन-ही-मन सोच लिया! एक सम्मिलित कुटुंब में राष्ट्रनीति ने अधिकार जमा लिया। स्व-पक्ष और पर-पक्ष का सृजन होने लगा। - चौबेजी कम चतर न थे। माधरी को उन्होंने अधिक समीप समझा। ढले भी उसी ओर। मोटर लेकर जब वह आए, तो उन्होंने कहा—बीबी रानी। हम लोगों ने बड़े सरकार का समय और दरबार देखा है। अब यह सब नहीं देखा जाता। तुम्हीं बचाओगी तो यह राज बचेगा, नहीं तो गया। मैं अब उसके लिए चाय बनाना नहीं चाहता! मुझे जवाब मिल जाए, यही अच्छा है। ____ मोटर पर बैठते हुए अनवरी ने कहा—घबराइए मत चौबेजी, बीबी रानी आपके लिए कोई बात उठा न रखेंगी।