तितली/2.1

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तितली - उपन्यास - जयशंकर प्रसाद  (1934) 
द्वारा जयशंकर प्रसाद

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द्वितीय खंड पूस की चांदनी गांव के निर्जन प्रांत में हल्के कुहासे के रूप में साकार हो रही थी। शीतल पवन जब घनी अमराइयों में हरहराहट उत्पन्न करता, तब स्पर्श न होने पर भी गाढ़े के कुरते पहनने वाले किसान अलावों की ओर खिसकने लगते। शैला खड़ी होकर एक ऐसे ही अलाव का दृश्य देख रही थी, जिसके चारों ओर छः-सात किसान बैठे हुए तमाखू पी रहे थे। गाढ़े की दोहर और कंबल उनमें से दो ही के पास थे। और सब कुरते और इकहरी चद्दरों में 'हू—हा' कर रहे थे। " शैला जब महुए की छाया से हटकर उन लोगों के सामने आई तो, वे लोग अपनी बातचीत बंद कर असमंजस में पड़े कि मेम साहब से क्या कहें। शैला को सभी पहचानते थे। उसने पूछा—यह अलाव किसका है? महंगू महतो का सरकार—एक सोलह बरस के लड़के ने कहा। दूर से आते हुए मधुबन ने पूछा-क्या है रामजस? मधु भइया, यही मेम साहब पूछ रही थीं। रामजस ने कहा। मधुबन ने शैला को नमस्कार करते हुए कहा—क्या कोई काम है? कहीं जाना हो तो मैं पहुंचा दूं। नहीं-नहीं मधुबन! मैं भी आग के पास बैठना चाहती हूं। मधुबन पुआल का छोटा-सा बंडल ले आया। शैला बैठ गई। मधुबन को वहां पाकर उसके मन में जो हिचक थी, वह निकल गई। ____महंगू के घर के सामने ही एक अलाव लगा था, महंगू वहां पर तमाखू-चिलम का प्रबंध रखता। दो-चार किसान, लड़के-बच्चे उस जगह प्राय: एकत्र रहते। महंगू की चिलम कभी ठंडी न होती। बुड्ढा पुराना किसान था। उस गांव के सब अच्छे टुकड़े उसकी जोत में थे। लड़के और पोते गृहस्थी करते थे, वह बैठा तमाखू पिया करता। उसने भी मेम साहब का नाम सुना था; शैला की दयालुता से परिचित था। उसकी सेवा और सत्कार के लिए मनही-मन कोई बात सोच रहा था। __ सहसा शैला ने मधुबन से पूछा–मधुबन! तुम जानते हो, बार्टली साहब की नीलकोठी यहां से कितनी दूर है? वह कल के लड़के हैं मेम साहब! उन्हें क्या मालूम कि बार्टली साहब कौन थे; मुझसे पूछिए। मेरा रोआं-रोआं उन्हीं लोगों के अन्न का पला हुआ है—महंगू ने कहा। अहा! तब तुम उन्हें जानते हो? बार्टली को जानता हूं। बड़े कठोर थे। दया तो उनके पास फटकती न थी—कहते-कहते [ ४१ ]________________

अलाव के प्रकाश में बुड्ढे के मुख पर धृणा की दो-तीन रेखाएं गहरी हो गईं। फिर वह संभल कर कहने लगा—पर उनकी बहन जेन माया-ममता की मूर्ति थी। कितने ही बार्टली के सताए हुए लोग उन्हीं के रुपए से छुटकारा पाते, जिसे वह छिपाकर देती थीं। और, मुझ पर तो उनकी बड़ी दया रहती थी। मैं उनकी नौकरी कर चुका हूं। मैं लड़कपन से ही उन्हीं की सेवा में रहता था। यह सब खेती-बाड़ी गृहस्थी उन्हीं की दी हुई है। उनके जाने के समय मैं कितना रोया था!—कहते-कहते बुड्ढे की आखों से पुराने आंसू बहने लगे। शैला ने बात सुनने के लिए फिर कहा—तो तुम उनके पास नौकरी कर चुके हो? अच्छा तो वही नील-कोठी अरे मेम साहब, वह नील-कोठी अब काहे को है, वह तो है भुतही कोठी! अब उधर कोई जाता भी नहीं, गिर रही है। जेन के कई बच्चे वहीं मर गए हैं। वह अपने भाई से बारबार कहती कि मैं देश जाऊंगी: पर बार्टली ने जाने न दिया। जब वह मरे, तभी जेन को यहां से जाने का अवसर मिला। मुझसे कहा था कि महंगू, जब बाबा होगा, तो तुमको बुलाऊंगी उसे खेलाने के लिए, आ जाना; मैं दूसरे पर भरोसा नहीं करूंगी। मुझे ऐसा ही मानती थीं। चली गईं, तब से उनका कोई पक्का समाचार नहीं मिला। पीछे एक साहब से, —जब वह यहां का बंदोबस्त करने आया था, सुना—कि जेन का पति स्मिथ साहब बड़ा पाजी है, उसने जेन का सब रुपया उड़ा डाला। वह बेचारी बड़ी दुःखी हैं। मैं यहां से क्या करता मेम साहब! शैला चुपचाप सुन रही थी। उसके मन में आंधी उठ रही थी; किंतु मुख पर धैर्य की शीतलता थी। उसने कहा—महंगू, मैं तुम्हारी मालकिन को जानती हूं। क्या अभी जीती हैं मेम साहब?—बुड्ढे ने बड़े उल्लास से पूछा। उसके हाथ का हुक्का छूटते-छूटते बचा। नहीं, वह तो मर गईं। उनकी एक लड़की है। अहा! कितनी बड़ी होगी वह! मैं एक बार देख तो पाता? अच्छा, जब समय आवेगा तो तुम देख लोगे। पहले यह तो बताओ कि मैं नील-कोठी देखना चाहती हूं; इस समय कोई वहां मेरे साथ चल सकता है? सब किसान एक-दूसरे का मुंह देखने लगे। भूतही कोठी में इस रात को कौन जाएगा। महंगू ने कहा—मैं बूढ़ा हूं, रात को सूझता कम है। मधुबन ने कहा—मेम साहब, मैं चल सकता हूं। साहस पाकर लड़के रामजस ने कहा—मैं भी चलूंगा भइया। मधुबन ने कहा—तुम्हारी इच्छा! कंधे पर अपनी लाठी रखे, मधुबन आगे, उसके पीछे शैला तब रामजस; तीनों उस चांदनी में पगडंडी से चलने लगे। चुपचाप कुछ दूर निकल जाने पर शैला ने पूछा–मधुबन, खेती से तुम्हारा काम चल जाता है? तुम्हारे घर पर और कौन है? मेम साहब! काम तो किसी तरह चलता ही है। दो-तीन बीघे की खेती ही क्या? बहन है बेचारी; न जाने कैसे सब जुटा लेती है। आज-कल तो नहीं, हां जब मटर हो जाएगी, गांवों में कोल्हू चलने ही लगे हैं, तब फिर कोई चिंता नहीं। तुम शिकार नहीं करते? [ ४२ ]________________

कभी-कभी मछली पर बंसी डाल देता हूं। और कौन शिकार करूं? बहन तुम्हारी यहीं रहती है? हां मेम साहब, उसी ने मुझे पाला है—कहते हुए मधुबन ने कहा—देखिए, यह गड्ढा है। संभलकर आइए। अब हम लोग कच्ची सड़क पर आ गए हैं। __ अच्छा मधुबन। तुमने यह तो कहा ही नहीं कि तितली कहां है, दिखाई नहीं पड़ी। उस दिन जब रामनाथ उसको लिवा ले गया, तब से तो उसका पता न लगा। उसका क्या हाल सब कठोर हैं, निर्दयी हैं—मन-ही-मन कहते हुए अन्यमनस्क भाव से मधुबन ने अपना कंधा हिला दिया? क्या मधुबन! कहते क्यों नहीं। __उसी दिन से वह बेचारी पड़ी है। उधर सुना है कि तहसीलदार ने बेदखली कराने का पूरा प्रबंध कर लिया है! मेम साहब, गरीब की कोई सुनता है? आप ही कहिए न! किसी ब्याह में रमुआ ने दस रुपए लिये। वह हल चलाता मर गया। जिसका ब्याह हुआ उस दस रुपए से, वह भी उन्हीं रुपयों में हल चलाने लगा। उसके भी लड़के यदि हल चलाने के डर से घबराकर कलकत्ता भाग जाएं, तो इसमें बाबाजी का क्या दोष है? कुछ नहीं शैला ने कहा। फिर आप तो जानती नहीं। यह तहसीलदार पहले मेरे यहां काम करता था। गोदाम वाले साहब से, एक बात पर उकसाकर, मेरे पिताजी को लड़ा दिया। मुकदमे में जब मेरा सब साफ हो गया, तो जाकर यह धामपुर की छावनी में नौकरी करने लगा। इसको दानव की तरह लड़ने का चसका है, सो भी अदालत का ही। नहीं तो किसी एक दिन इसकी लड़ने की साध मिटा देता। मैं किसी दिन इसकी नस तोड़ दूं, तो मुझे चैन मिले। इसके कलेजे में कतरनी-से कीड़े दिन-रात कलबलाया करते हैं। यह तहसीलदार तुम्हारे यहां... . अरे यह बात मैं क्रोध में कह गया मेम साहब; जो समय बीत गया, उसे सोच कर क्या करूंगा। अब तो मैं एक साधारण किसान हूं। शेरकोट का... ___चलते-चलते शैला ने कहा—क्या कहा, शेरकोट न! हां-तहसीलदार ने कहा था कि शेरकोट ही बैंक बनाने के लिए अच्छा स्थान है! कहां है वह? मधुबन गुर्रा उठा भूखे भेड़िए की तरह। उस ठंडी रात में उसे अपना क्रोध दमन करने से पसीना हो आया। बोला नहीं। शैला भी सामने एक ऊंचा-सा टीला देखकर अन्यमनस्क हो गई जो चांदनी रात में रहस्य के स्तूप-सा उदास बैठा था। रामजस सहसा पीछे से चिल्ला उठा—अब तो पहुंच गए मधुबन भइया! मधुबन ने गंभीरता से कहा हूं। शैला चुपचाप टूटी हुई सीढ़ियों से चढ़ने लगी। उस नीरस रजनी में पुरानी कोठी, बहुत दिनों के बाद तीन नए आगंतुकों को देखकर, जैसे व्यंग्य की हंसी हंसने लगी। अभी ये लोग दालान में पहुंचने भी न पाए थे कि एक सियार उसमें से निकल कर भागा। हां, भयभीत मनुष्य पहले ही आक्रमण करता है। रामजस ने डरकर उस पर डंडा चलाया। किंतु [ ४३ ]________________

वह निकल गया। शैला ने कहा—मैं भीतर चलूंगी। चलिए, पर अंधेरे में कोई जानवर. मधुबन चुप रहा। आगे उसके मन में शेरकोट में बैंक बनाने की बात आ गई। वह चुपचाप एक पत्थर पर बैठ गया। शैला भी भीतर न जाकर झील की ओर चली गई। पत्थरों की पुरानी चौकियां अभी वहां पड़ी थीं। उन्हीं में से एक पर बैठकर वह सूखती हुई झील को देखने लगी। देखते-देखते उसके मन में विषाद और करुणा का भाव जागृत होकर उसे उदास बनाने लगा। शैला को दृढ़ विश्वास हो गया कि जिस पत्थर पर वह बैठी है, उसी पर उसकी माता जेन आकर बैठती थी। अज्ञात अतीत को जानने की भावना उसे अंधकार में पूर्वपरिचितों के समीप ले जाने का प्रयत्न करने लगी। जीवन में यह विचित्र शृंखला है। जिस दिन से उसे बार्टली और जेन का संबंध इस भमि से विदित हआ. उसी दिन से उसकी मानस-लहरियों में हलचल हुई। पहले उसके हृदय ने तर्क-वितर्क किया। फिर बाल्यकाल की सुनी हुई बातों ने उसे विश्वास दिलाया कि उसकी माता जेन ने अपने जीवन के सुखी दिनों को यहीं बिताया है। अवश्य उसकी माता भारत के एक नील-व्यवसायी की कन्या थी। फिर जब उसके संबंध में यहां प्रमाण भी मिलता है, तब उसे संदेह करने का कोई कारण नहीं। अज्ञात नियति की प्रेरणा उसे किस सत्र से यहां खींच लाई है, यही उसके हृदय का प्रश्न था। वह सोचने लगी, यहां पर उसकी माता की कितनी सुखद स्मृतियां शून्य में विलीन हो गईं। आह! उसके दुःख से भरे वे अंतिम दिन कितने प्यार से इन स्थलों को स्मरण करते रहे होंगे। इसी झील में छोटी-सी नाव पर उस अतीतकाल में वह कितनी बार घूमकर इसी कोठी में लौटकर चली आई होगी। उसे कल्पना की एकाग्रता ने माता के पैरों की चाप तक सनवा दी। उसे मालम हआ कि उस खंडहर की सीढ़ियों पर सचमच कोई चढ़ रहा है। वह घूमकर खड़ी हो गई; किंतु रामजस और मधुबन के अतिरिक्त कोई नहीं दिखाई दिया। वह फिर बैठ गई और दोनों हाथों से अपना मुंह ढककर सिसकने लगी। ____ माता का प्यार उसकी स्मृति मात्र से ही उसे सहलाने लगा। उस भयावने खंडहर में माता का स्नेह जैसे बिखर रहा था। वह जीवन में पहली बार इस अनुभूति से परिचित हुई। उसे विश्वास हो गया कि यही उसका जन्म-जन्म का आवास है. आज तक वह जो सकी थी, वह सब विदेश की यात्रा थी। आखों के सामने दो घड़ी के मनोरंजन करने वाले दृश्य, सो भी उसमें कटुता की मात्रा ही अधिक थी, जो कष्ट झेलने वाली सहनशील मनोवृत्ति के निदर्शन थे। आज उसे वास्तविक विश्राम मिला। वह और भी बैठती; किंतु मधुबन ने कहा–रामजस, तुमको जाड़ा लग रहा है क्या? नहीं भइया, यही सोचता हूं कि कहीं एक चिलम... पागल, यहां से गांव में जाकर लौटने में घंटों लग जाएंगे। तो न सही—कहकर वह अपनी कमली मुट्टियों में दबाने लगा। शैला की एकाग्रता भंग हो गई। उसने पूछा–मधुबन, क्या हम लोगों को चलना चाहिए? रात बहुत हो चली, वह देखिए, सातों तारे इतने ऊपर चढ़ आए हैं। छावनी पहुंचतेपहुंचते हम लोगों को आधी रात हो जाएगी। तब चलो—कहकर शैला निस्तब्ध टीले से नीचे उतरने लगी। मधुबन और रामजस [ ४४ ]________________

उसके आगे और पीछे थे। वह यंत्र-चालित पुतली की तरह पथ अतिक्रम कर रही थी, और मन में सोच रही थी, अपने अतीत जीवन की घटनाएं। दुर्वृत्त पिता की अत्याचार-लीलाएं फिर माता जेन का छटपटाते हुए कष्टमय जीवन से छुट्टी पाना, उस प्रभाव की भीषणता में अनाथिनी होकर भिखमंगों और आवारों के दल में जाकर पेट भरने की आरंभिक शिक्षा, धीरे-धीरे उसका अभ्यास; फिर सहसा इन्द्रदेव से भेंट—संध्या के क्रमश: प्रकाशित होने वाले नक्षत्रों की तरह उसके शून्य, मलिन और उदास अंतस्तल के आकाश में प्रज्वलित होने लगे। वह सोचने लगी नियति दुस्तर समुद्र को पार कराती है, चिरकाल के अतीत को वर्तमान से क्षण-भर में जोड़ देती है, और अपरिचित मानवता-सिंधु में से उसी एक से परिचय करा देती है, जिससे जीवन की अग्रगामिनी धारा अपना पथ निर्दिष्ट करती है। कहां भारत, कहां मैं और कहां इन्द्रदेव! और फिर तितली! जिसके कारण मझे अपनी माता की उदारता के स्वर्गीय संगीत सुनने को मिले, यह पावन प्रदेश देखने को मिला! । उसके मन में अनेक दुराशाएं जाग उठीं। आज तक वह संतुष्ट थी। अभावपूर्ण जीवन इन्द्रदेव की कृतज्ञता में आबद्ध और संतुष्ट था। किंतु इस दृश्य ने उसे कर्मक्षेत्र में उतरते के लिए एक स्पर्धामय आमंत्रण दिया। उसका सरल जीवन जैसे चतुर और सजग होने के लिए व्यस्त हो उठा। वह कच्ची सड़क से धीरे-धीरे चली जा रही थी। पीछे से मोटर की आवाज सुन पड़ी। वह हटकर चलने लगी। किंतु मोटर उसके पास आकर रुक गई। भीतर से अनवरी ने पुकारा —मिस शैला हैं क्या? हां। छावनी पर ही चल रही हैं न? आइए न। धन्यवाद। आप चलिए, मैं आती हूं। अन्यमनस्क भाव से शैला ने कह दिया। पर अनवरी सहज में छोड़ने वाली नहीं। उसने अपने पास बैठे हुए कृष्णमोहन से धीरे-से कहा —यह तुम्हारी मामी हैं; उन्हें जाकर बुला लो। शैला उस फुसफुसाहट को सुनने के लिए वहां ठहरी न थी। आगे बढ़कर कृष्णमोहन ने नमस्कार करके कहा—आइए न। शैला कृष्णमोहन का अनुरोध न टाल सकी। मोटर के प्रकाश में उसका प्यारा मुख अधिक आग्रहपूर्ण और विनीत दिखाई पड़ा। . शैला ने मधुबन से कहा—मधुबन, कल छावनी पर अवश्य आना। कृष्णमोहन के साथ शैला मोटर में बैठ गई। तहसीलदार ने कागजों पर बड़ी सरकार से हस्ताक्षर करा ही लिया; क्योंकि शैला की योजना के अनुसार किसानों का एक बैंक और एक होमियोपैथी का निःशुल्क औषधालय [ ४५ ]________________

सबसे पहले खुलना चाहिए। गांव का जो स्कूल है, उसे ही अधिक उन्नत बनाया जा सकता है। तीसरे दिन जहां बाजार लगता है, वहीं एक अच्छा-सा देहाती बाजार बसाना होगा, जिसमें करघे के कपड़े, अन्न, बिसाती-खाना और आवश्यक चीजें बिक सकें। गृहशिल्प को प्रोत्साहन देने के लिए वहीं से प्रयत्न किया जा सकता है। किसानों में खेतों के छोटे-छोटे टुकड़े बदलकर उनका एक जगह चक बनाना होगा, जिसमें खेती की सुविधा हो। इसके लिए जमींदार को अनेक तरह की सुविधाएं देनी होगी। यह सबसे पीछे होगा। बैंक पहले खुलना चाहिए। कलेक्टर ने इसके लिए विशेष आग्रह किया है। तहसीलदार के सुझाने पर शैला ने शेरकोट को ही बैंक के लिए अधिक उपयुक्त लिख दिया था; किंतु मधुबन के पिता की जमींदराि नीलाम खरीद हुई थी श्यामदुलारी के नाम। वह हिस्सा अभी तक उन्हीं के नाम से खेवट में था। इसलिए श्यामदुलारी ने थोड़ी-सी गर्व की हंसी हंसते हुए हस्ताक्षर करने पर कहा तहसीलदार! अब तो मुझे इससे छुट्टी दो। इन्द्र से ही जो कुछ हो, लिखवाया-पढ़वाया करो। तहसीलदार ने चश्मे में से माधुरी की ओर देखकर कहा—सरकार, यह मैं कैसे कह सकता हूं कि आप अपना अधिकार छोड़ दें। न मालूम क्या समझकर आपके नाम से बड़े सरकार ने यह हिस्सा खरीदा था। आप इसे जो चाहें कर सकती हैं। यदि आप किसी के नाम इसकी स्पष्ट लिखा-पड़ी न करें, तो यह कानून के अनुसार बीबीरानी का हो सकता है। छोटे सरकार से तो इसका कोई संबंध... श्यामदुलारी ने कड़ी निगाह से तहसीलदार को देखा। उसमें संकेत था उसे चुप करने के लिए; किंतु कूटनीति-चतुर व्यक्ति ने थोड़ी-सी संधि पाते ही, जो कुछ कहना था कह डाला! ___माधुरी इस आकस्मिक उद्घाटन से घबराकर दूसरी ओर देखने लगी थी? वह मन में सोच रही थी, मुझे क्या करना चाहिए? ___माधुरी के जीवन में प्रेम नहीं, सरलता नहीं, स्निग्धता भी उतनी न थी। स्त्री के लिए जिस कोमल स्पर्श की अत्यंत आवश्यकता होती है, वह श्यामलाल से कभी मिला नहीं। तो भी मन को किसी तरह संतोष चाहिए। पिता के घर का अधिकार ही उसके लिए मन बहलाने का खिलौना था। वह भी जानती थी कि यह वास्तविक नहीं, तो भी जब कुछ नहीं मिलता तो मानव-हृदय कृत्रिम को ही वास्तविक बनाने की चेष्टा करता है। माधुरी भी अब तक यही कर रही थी। चौबेजी कब चूकने वाले थे! उन्होंने खांसकर कहना आरंभ किया—बड़े सरकार सब समझते थे। विलायत भेजकर जो कछ होने वाला था. वह सब अपनी दर-दष्टि से देख रहे थे। इसी से उन्होंने यह प्रबंध कर दिया था, तहसीलदार साहब ने इस समय उसको प्रकट कर दिया। यह अच्छा ही किया। आगे आपकी इच्छा। ___श्यामदुलारी ऊब रही थीं; क्योंकि सब कुछ जानते हुए भी वह नहीं चाहती थीं कि उनकी दोनों संतानों में भेद का बीजारोपण हो। इन स्वयंसेवक सम्मतिदाताओं से वह घबरा गईं। माधुरी ने इस क्षोभ को ताड़ लिया। उसने कहा—इस समय तो आपका काम हो ही [ ४६ ]________________

गया, अब आप लोग जाइए। तहसीलदार ने सिर झुकाकर विनयपूर्वक विदा ली। चौबेजी भी बाहर चले गए। __ श्यामदुलारी के मौन हो जाने से वहां का वातावरण कुंठित-सा हो गया। माधुरी जैसे कुछ कहने में संकुचित थी। कुछ देर तक यही अवस्था बनी रही। फिर सहसा माधरी ने कहा क्यों मां। क्या सोच रही हो? यह भला कौन-सी बात है इतनी सोचने-विचारने की! ये लोग तो ऐसी व्यर्थ की बातें निकालने में बड़े चतुर हैं ही। तुमको तो यह काम पहले ही कर डालना चाहिए। किंतु क्या कर डालना चाहिए, उसे साफ-साफ माधुरी ने भी अभी नहीं सोचा था। वह केवल मन बहलाने वाली कुछ बातें करना चाहती थी। किंतु श्यामदुलारी के सामने यह एक विचारणीय प्रश्न था। उन्होंने सिर उठाकर गहरी दृष्टि से देखते हुए पूछा—क्या? ___माधुरी क्षण-भर चुप रही, तो भी उसने साहस बटोरकर कहा भाई साहब का नाम उस पर भी चढ़वा दो, झगड़ा मिटे। श्यामदुलारी ने सिर झुका लिया। वह सोचने लगी। उनके सामने एक समस्या खड़ी हो गई थी। समस्याएं तो जीवन में बहुत-सी रहती हैं, किंतु वे दूसरों के स्वार्थों और रुचि तथा करुचि के द्वारा कभी-कभी जैसे सजीव होकर जीवन के साथ लड़ने के लिए कमर कसे हए दिखाई पड़ती हैं। ___ श्यामदुलारी के सामने उनका जीवन इन चतुर लोगों की कुशल कल्पना के द्वारा निस्सहाय वैधव्य के रूप में खड़ा हो गया। दूसरी ओर थी वास्तविकता से वंचित माधुरी के कृत्रिम भावी जीवन की दीर्घकालव्यापिनी दःख रेखा। एक क्षण में ही नारी-हदय ने अपनी जाति की स ने अपनी जाति की सहानुभूति से अपने को आपाद-मस्तक ढक लिया। माधुरी की ओर देखते हुए श्यामदुलारी की औखें छलछला उठीं। उन्हें मालूम हुआ कि माधुरी उस संपत्ति को इन्द्रदेव के नाम करने का घोर विरोध कर रही है। उसकी निस्सहाय अवस्था, उसके पति की हृदय-हीनता और कृष्णमोहन का भविष्य—सब उसकी ओर से श्यामदुलारी की वृद्धि को सहायता देने लगे। ____ माधुरी ने कहने को तो कह दिया! परंतु फिर उसने आंख नहीं उठाई। सिर झुकाकर नीचे की ओर देखने लगी। श्यामदुलारी ने कहा-माधुरी, अभी इसकी आवश्यकता नहीं है। तू सब बातों में टांग मत अड़ाया कर। मैं जैसा समझूगी, करूंगी। ____माधुरी इस मीठी झिड़की से मन-ही-मन प्रसन्न हुई। वह नहाने चली गई, सो भी रूठने का-सा अभिनय करते हुए। श्यामदुलारी मन-ही-मन हंसी।