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तिलिस्माती मुँदरी/8

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तिलिस्माती मुँदरी
श्रीधर पाठक

इलाहाबाद: पंडित गिरिधर पाठक, पृष्ठ ५४ से – ६२ तक

 

अध्याय ८

राजा की लड़की मीनार में जहां कि काली लौंडी उस के हाथ पैर बांध कर उसे पड़ा छोड़ गई थी सिपाही का जो न मिली उसका किस्सा यों है-जिस वक्त वह बेबसी की हालत में कोठड़ी के अन्दर पड़ी हुई थी उसे उस सूराख़ में जिसमें से कि वह दयादेई की खिड़की को देखा करती थी दो बड़ी २ आंखें चमकती हुई दिखाई दीं। पहले तो वह डर गई लेकिन पीछे से वह फ़ौरन समझ गई कि दीवार पर बाहर जो बेल लिपटी हुई थी उसकी एक शाख पर बैठा हुआ, वह उल्लू जो कि मीनार की चोटी पर निगहबानी के लिये मुक़र्रिर था, सूराख़ से भीतर को देख रहा है। उसे उस वक्त अपनी तिलिस्माती अंगूठी की याद आई और जिस हाथ की उंगली में वह उस्को पहने हुए थी वह हाथ किसी तरह उल्लू की तरफ़ करके अंगूठी को उसकी नज़र के सामने कर दिया और उससे कहने लगी-“ऐ उल्लू, इस अंगूठी के लिहाज़ से इस वक्त मेरो मदद कर"-उल्लू ने जैसे ही अंगूठी को देखा और उसकी बात को सुना वह लड़की की खिदमत में अन्दर हाज़िर हुआ और बोला "क्या हुक्म है?" लड़की ने कहा- "मेरे हाथों और पैरों को खोल दे, अगर खोल सके तो"-उल्लू कपड़े के बन्धनों को जिनसे कि वह जकड़ी हुई थी खोल नहीं सकता था लेकिन उसने अपनी नुकीली चोंच और पैने पंजों से उन्हें फाड़ डाला, उसके ऐसा करने से मजबूरन लड़की को कुछ ज़ख़्म आ गई जिस से उसकी चादर के

टुकड़ों पर खून के दाग़ पड़ गये जिनको कि उस सिपाही ने देखा था जो मीनार पर लड़की को पकड़ने के लिये चढ़ा था। जैसे ही उसके बन्धन अलग हुए वह मीनार से उतर जाने का कोई वसीला ढूढ़ने लगी, लेकिन कुछ नज़र न आया सिड्ढी को तो लौंडी ले ही गई थी-क्या वह वहां से नीचे ज़मीन पर कूद सकती थी? नहीं, नहीं मीनार बहुत ऊंची थी, कूदना अपनी जान को मौत के हवाले करना था-वह यकायक उल्लू की तरफ़ मुखातिब होकर पुकारने लगी “ऐ उल्लू , ऐ उल्लू , क्या तू मुझे किसी तरकीब से यहां से नीचे पहुंचा सकता है, पेश्तर इसके कि मेरे दुश्मन फिर यहां आ सके?” वह उल्लू बड़ी ज़ात का था जो क़रीब क़रीब उक़ाब या गीध के क़द की होती है, मगर वह इतना मज़बूत न था कि उस लड़की के बोझ को अधर में सम्हाल सके, वरना वह उसे अपनी पीठ पर सवार करा के अकेला ही नीचे उतार देता, इस लिये वह बोला-"ऐ प्यारी लड़की ज़रा ठहर जा, मैं अपनी बीबी को बुला लाऊं जो कि इसी खंडहर में रात के जागने की थकावट दूर करने को इस वक्त सो रही है मैं उम्मेद करता हूं कि मैं और वह दोनों मिल कर तुझ को अपने डैनों के सहारे आसानी से नीचे पहुंचा देंगे"-यों कह कर वह छज्जे पर जा बैठा और वहां से ऐसे ज़ोर से चीखा कि तमाम खंडहर गूंज उठा और थोड़ी ही देर में एक मोटी ताज़ी उल्लन परों को फटफटाती हुई छज्जे पर आन पहुंची और कहने लगी-"क्या मामला है, ऐ शौहर, जो आप ने मुझ को इस वक्त दिन में जगाया है?" उल्लू ने जवाब में अपनी चोंच से उस अंगूठी की तरफ़ इशारा किया जो राजा की बेटी अपनी उंगली में पहने हुए थी, लड़की भी उस वक्त छज्जे पर आ गई थी। वह उससे बोला-"अब वक्त खाना

न चाहिये-एक हाथ से मेरी और दूसरे हाथ से मेरी बीबी की टांगें पकड़ ले, फिर फुरती से उस घने पत्तों वाली झाड़ी पर जो मीनार की जड़ के नज़दीक दिखाई देती है कूद पड़, हमारे डैनों के सबब से तू ज़ोर से गिरने न पावेगी" राजा की लड़की ने फ़ौरन वैसा ही किया-उल्लू और उल्लन की टांगों को ज़ोर से थाम कर छज्जे से झट कूद पड़ी और परों की बड़ी फटफटाहट के साथ झाड़ी की मुलायम शाखो पर बगैर ज़रा भी चोट लगे जा पड़ी, वहां पर उसने उनकी टांगे छोड़ दी और झाड़ी की टहनियों और शाखो को पकड़ती हुई नीचे ज़मीन पर उतर गई, और वहां चारों तरफ़ देखने लगी कि किस तरफ़ को जाना बिहतर होगा कि दुश्मन उसका पीछा न कर सकें। उसी वक्त उसे वह सिपाही जो उसे पकड़ने को खंडहर की तरफ़ आ रहे थे दिखाई दिये। लेकिन उसकी खुशनसीबी थी कि वह उसे देख न पाये; और जिधर से वह आ रहे थे उसकी दूसरी तरफ़ वह फ़ौरन निकल गई और उनकी नज़रों से बचती हुई बड़े ज़ोर से एक छोटी सी गली की मोड की तरफ जो उसे वहां से दिखाई दे रही थी बेतहाशा दौड़ी। उस गली के दोनों तरफ़ बाग़ो की चहारदीवारियां थीं; उस तंग गली में वह थोड़ी ही दूर आई थी कि बांई तरफ़ की दीवार में एक दरवाजे के पास जब पहुंची दरवाज़ा किसी ने आहिस्ता और होशियारी से खोला। उस वक्त वह एक अंजीर के पेड़ की आड़ में छिप गई, जो कि दीवार में उगा हुआ था। उसने देखा कि एक लौंडी उस दरवाजे से निकल कर और चारों तरफ़ ऊपर नीचे देख कर फुरती से गली के सिरे की तरफ़ चली गई-जैसे ही वह नज़र से ग़ायब हुई राजा की लड़की पेड़ की आड़ से बाहर निकल आई और दरवाज़े के पास पहुंच कर उसने देखा

कि वह पूरी तरह बंद नहीं है; उसने किवाड़ आहिस्ता से खोल लिये और भीतर को झांका तो देखा कि वहां एक बड़ा साबाग़ है जिसमें घने पेड़ लगे हुए हैं और वहां कोई शख़्स नहीं है। उसने सोचा कि इस वक्त यहां छिप जाना बनिस्बत उस गली में जाने के बिहतर होगा, क्योंकि क्या मालूम गली कहां को गई है। बस वह बाग़ के भीतर घुस गई और दरवाज़े को वैसा ही अधखुला छोड़ कर सब से नज़दीक के पेड़ों की कुंज में छिपने को लपकी। वहां पहुंची ही थी कि उसको उस दरवाजे के बंद होने की आवाज़ सुनाई दी और उस तरफ़ को झांकने से मालूम हुआ कि वही लौंडी बाहर से वापस आ कर उसको बंद कर रही है और फिर मकान की तरफ कि जिसकी छत बाग़ के दूसरे सिरे पर दिखाई दे रही थी जा रही है। उसने देखा कि यहां कोई खतरा नहीं है, लेकिन तो भी वह एक सर्व के पेड़ पर चढ़ गई जिसकी घनी डालियों में उसे कोई नहीं देख सकता था। और रात होने तक वहीं छिपी रहने का इरादा कर लिया और मन में कहने लगी कि “रात होने पर मैं कोतवाल के घर चली जाऊंगी, उसकी मिहर्बान बीबी और दयादेई मुझको ज़रूर अपनी पनाह में ले लेंगी, अगर ले सकेंगी तो। सिवा उनके यहां के मैं और कहां जा सकती हूं?"

दिन बहुत बड़ा मालूम पड़ा और मुशकिल से कटा, अख़ीर को रात आई; मगर राजा की लड़की का आधी रात से पेश्तर वहां से जाने का हियाव नहीं पड़ा, उसने ख़याल किया कि रात ज़ियादा गुज़र जाने पर कोतवाल के घर के रास्ते में किसी से भेट होने का कम डर होगा। इस लिये आधी रात के बाद वह दरख़ से उतरी और बाग़ का दरवाज़ा खोल कर जिस रास्ते आई थी उसी रास्ते खंडहर के पास

की खुली जगह में पहुंच गई। वहां से अंधेरे में टटोलती हुई कोतवाल के बाग़ की चहार दीवारी की तरफ़ चली और चाहती थी कि किसी तरकीब के दीवार को लांघ जावे और बग़ैर आहट के कोतवाल के मकान के अन्दर पहुंच जावे कि उसे उसके पुराने दोस्त उल्लू उल्लन पंख फटफटाते उस के सिर के ऊपर सितारों को कमजोर रोशनी में दिखाई दिये। उसने उनको पुकारा और पूछा कि कहीं उन्होंने उसका तोता या दोनों कौए तो नहीं देखे हैं-उल्लू दीवार पर बैठ कर बोला-"हां हां, वह तीनों इसी खंडहर में बसेरा कर रहे हैं, और दिन भर चारों तरफ़ तेरी तलाश में उड़ते फिरे थे" लड़की ने मिन्नत की-"ओह, मझे उन के पास ले चलो" उल्लू तुरन्त खंहडर के अन्दर उड़ गया और तोते को अपने पीछे पंख फटफटाते हुए साथ लेकर फ़ौरन फिर हाज़िर हुआ। तोता बड़े जोश के साथ चीख मार कर राजा की लड़की की गोद में उड़ कर जा बैठा और बोला-"ऐ मेरी प्यारी बच्ची, क्या सचमुच तू मुझ को फिर मिल गई, मैं ने तो समझ लिया था कि तू किसी बड़ी मुसीबत में फंस गई है और अब न मिलेगी!” लड़की ने उसको सारा किस्सा सुना दिया कि वह खंडहर से किस तरह भाग गई थी और कहा कि “अब मैं कोतवाल के बाग़ के अन्दर पहुंचने की कोशिश कर रही हूं, मगर तोते ने उसे रोक दिया और बतला दिया कि बजाय उसके वह लोग दयादेई को पकड़ ले गये हैं। यह सुन कर राजा की लड़की को बहुत अफ़सोस और फ़िक्र हुआ और कहने लगी कि "मैं दयादेई के बचाने के लिये अभी अपने तई अफ़सरों के हवाले कर दूंगी," और अपना इरादा पूरा करने को फ़ौरन वहां से चल दी, क्योंकि वह इस बात का खयाल बरदाश्त नहीं कर सकती थी कि

दयादेई और दयादेई की मां की इस मुसीबत का बाइस वही थी। मगर तोते ने उससे कहा-"अच्छा, मेरी प्यारी, अगर तू इस तरह अपने को ज़ाया करने पर आमादा है, तो मैं भी तेरे साथ चलता हूं, मगर मुझे कौओं से कह आने दे कि वह दोनों इसी खंडहर के आस पास रहें ताकि अगर जरूरत पड़े तो मिल सके। कौओं को इस तरह हिदायत करके तोता लड़की के लबादे के अन्दर आ दबका और वह उसी वक्त वहां से चल दी और नज़दीक की गली के रास्ते सीधी कोतवाल के मकान के दरवाजे पर पहुंची और जोर से उले खटखटाने लगी-कुछ देर बाद एक बुढ़िया लौंडी ने खिड़की से अपना सिर निकाल कर पूछा-"कौन है?"-"मैं हूं चांदनी, मुझे भीतर आने दो"-यह जवाब पाकर लौंडी ने दरवाज़ा खोल दिया और राजा की लड़की के कहने से उसे ज़नाने कमरे में ले गई। वह लौंडी दयादेई की दाई थी, राजा की लड़की को देखते ही वह फूट फूट कर रोने लगी और दयादेई पर जो मुसीबत गुज़री थी सुनाने लगी, लेकिन राजा की लड़की ने कहा कि "मुझको सब मालूम है, लेकिन मेरे सबब से वह इस बिपत को न भोगने पावेगी, मैं अपने को पकड़वाने के लिये आई हूं"-और कहा कि "मुझे दयादेई की मां के पास ले चल"-जब उसके पास पहुंची उस के सीने से लिपट गई और बोली कि "मैं अपने को पकड़वाने और दयादेई को छुड़वाने के लिए आई हूं"। कोतवाल की बीबी उसके बोसे लेने लगी और उसे गले से लगा के रोने लगी, लेकिन उसने राजा की लड़की को अपने इरादे से रोका नहीं, क्योंकि दूसरी कोई सूरत उसकी लड़की के रिहाई पाने की न थी, लेकिन उस वक्त राजा की लड़की कि जिसे दिन भर कुछ खाने को नहीं मिला था और जो कि मिहनत और तक-

लीफ़ उठाने के बाइस निहायत थक गई थी, फ़र्श पर ग़श में आकर गिर पड़ी। कोतवाल की बीबी ने उसे चारपाई पर लिटा दिया और जब वह होश में आई उसने थोड़ा खाने को मांगा जो कि उसको दिया गया, उस के बाद वह सो गई और सुबह को खूब दिन निकल आने पर उठी। खाने के बाद कोतवाल की बीबी उसे अपने शौहर के पास ले गई और उससे उसके ऊंचे इरादे का बयान किया जिसकी कि कोतवाल ने बड़ी तारीफ़ की। तब उसकी बीबी से बहुत रंज और अफ़सोस के साथ रुख़सत होकर राजा की लड़की कोतवाल के हमराह गुलामों के कैदखाने को रवाना हुई। वहां वह दोनों फ़ौरन गुलामों के दारोगा के पास पहुंचाये गये और कोतवाल उस से अपने आने की ग़रज़ बयान करने लगा। लेकिन उसी वक्त राजा का वज़ीर जो गुलामों का मुआइना करने को आया था वहां आ पहुंचा और दारोगा ने कोतवाल से कहा कि "जो कुछ अर्ज़ करना हो, वज़ीर से करो"। वज़ीर उसका काई दोस्त न था, उसने जब सब हाल सुन लिया, कहा कि दयादेई को छोड़ देना बिलकुल नामुकिन है, क्योंकि ख़िराज इकट्ठा करने में इतनी मुशकिल पड़ रही है कि राजा ने हुक्म दिया है कि लौंडी और गुलाम बनाने लायक जो कोई लड़कियां और लड़के मिलें सब को पकड़ लेना चाहिये, इस लिए दयादेई और यह लड़की दोनों को लौंडियों में शामिल होना पड़ेगा। कोतवाल ने बहुत मिन्नत की और धमकियां भी दी और ग़म और गुस्से में अपनी डाढ़ी नोच डाली लेकिन वजीर पर कुछ असर न हुआ। तब कोतवाल वहां से सीधा राजा के महलों को गया और फ़ार्यद की कि उसकी बेटी को वज़ीर ने लौंडियों में दाख़िल कर दिया है, लेकिन राजा ने जवाब दिया कि क्या

किया जाय कुछ बस नहीं है, ख़िराज के वास्ते काफ़ी रुपया इकट्ठा करना ज़रूरी है और वह लौंडी और गुलामों के ज़रिये ही से हो सकता है।

दोनों लड़कियों को इस मुसीबत में सिर्फ़ यह एक तसल्ली का बाइस था कि दोनों एक ही कोठड़ी में रक्खी गई थीं। कोठड़ी बहुत छोटी थी और उसमें सिर्फ़ एक खिड़की थी जिसमें होकर तोता आ जा सकता था। इस खिड़की से तोता शहर की ख़बरें दर्याफ़्त करने को गया और दयादेई की एक चिट्ठी उसको मां के पास ले गया। जब वह शहर से लौटा तो राजा की लड़की से उसने कहा कि दयादेई के छुड़ाने के वास्ते कोतवाल काफ़ी रुपया इकट्ठा न कर सका और एक दो दिन में सारे लौंडी गुलाम कश्मीरी लशकर में भेज दिये जायेंगे और वहां से उन्हें दुशमन की फ़ौज के साथ फ़ौरन कश्मीर को रवाना होना होगा। इस लिये राजा की लड़की को कश्मीर की खुंखार रानी के पंजे में फिर फसने का ख़ौफ़ है। "मगर,” तोता बोला "मुसीबत से छुटकारा पाने की एक सूरत है, या उमेद है-मुझे अपनी अंगूठी दे दे मैं उसे लेकर कौओं को तेरे नाना के पास भेजता हूं वह उससे सब हाल कह देंगे और वह बड़ा अक्लमन्द है, अगर कुछ हो सकेगा तो ज़रूर करेगा। लेकिन बग़ैर तिलिस्माती अंगूठी के वह कुछ नहीं कर सकेगा। क्योंकि उसके ज़रिये से वह आस्मान के तमाम परिन्दों पर हुक्म चला सकता है। राजा की लड़की ने अंगूठी तोते को दें दी-उसे लेकर वह खंडहर में पहुंचा और वहां दोनों कोओं को बुला कर अंगूठी एक के सपुर्द की और हुक्म दिया कि वह उसे लेकर जितनी जल्दी हो सके गंगोत्री के नज़दीक उस बुड्ढे योगी के पास जावे और उसको देकर उससे सारा हाल बयान करे। दूसरे

कौए से उसने कहा कि वह अभी खंडहर ही में रहे और जब फ़ौज लाहौर से रवाना हो उसके साथ साथ उड़े। दोनों कौओं को हुक्म देने के बाद तोता राजा की लड़की के पास वापस आया।

दूसरे रोज़ सुबह को सब लौंडी गुलाम कश्मीरी लशकर को भेज दिये गये और वहां पर सिपहसालार के सपुर्द कर दिये गये और फ़ौज का फ़ौरन कूच हो गया। वह दोनों लड़कियां एक बांसों की खुली डोली में साथ बैठाई गई। तोता उनके साथ रहा, लेकिन अंगूठी के न होने से राजा की लड़की से अब वह बात नहीं कर सकता था, और इसका दोनों का बड़ा अफ़सोस था।