पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/११४

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() थे, क्योंकि उस पर वे विजय प्राप्त कर ही चुके थे; पर हिंदुओं की सामाजिक प्रथा से उन्हें बहुत डर लगता था। वे जनसाधा- रण के मन में निरंतर भय उत्पन्न करके और उन्हें बलपूर्वक धर्म- भ्रष्ट करके तथा अपने धर्म में मिलाकर प्राचार-भ्रष्ट करना चाहते थे। गर्गसंहिता में कहा गया है कि वे सिप्रा के एक चौथाई निवासियों को अपनी राजधानी अर्थात् बैक्ट्रिया में ले गए थे। उन्होंने कई बार एक साथ बहुत से लोगों की जो हत्याएँ कराई थीं, उनका उल्लेख गर्ग संहिता में भी है और पुराणों में भी।' वे लोग इस देश का बहुत सा धन अपने साथ बैक्ट्रिया लेते गए होंगे। वे धन के बहुत बड़े लोभी हुआ करते थे। उन्होंने बराबर हिंदुओं पर अत्राह्मण धर्म लादने का प्रयत्न किया था। सारांश यह कि उन दिनों हिंदू जीवन एक प्रकार से कुछ समय के लिये बिलकुल बंद ही हो गया था। उत्तर भारत के सनातनी साहित्य में ऐसा एक भी ग्रंथ नहीं मिलता जो सन् ७८ ई० से १८० ई० के बीच में लिखा गया हो। इस कारण हिंदुओं के लिये यह बहुत ही आवश्यक हो गया था कि इस प्रकार के राजनीतिक तथा सामाजिक संकट से अपने देश को बचाने का प्रयत्न करें । ६ भार-शिवों के कार्य और साम्राज्य ६ ३७. भार-शिवों ने गंगा-तट पर पहुँचकर अपने देश को इस राष्ट्रीय संकट (६३६ ) से मुक्त करने का भार अपने ऊपर लिया था। प्रत्येक युग और प्रत्येक देश भार-शिवों के समय का धर्म में जब कोई मानव समाज कोई बड़ा राष्ट्रीय कार्य आरंभ करता है, तब उसके सामने एक ऐसा मुख्य तत्त्व रहता है, जिससे उसके समस्त कार्य १ देखो अागे तोसरा भाग १४६ ख और ६१४७.