( १११) चौकोर मीनार के रूप में होते हैं और उस मीनार पर कुछ उभार होता है । कुशनों के उपरांत नए ढंग का यह शिखर अवश्य ही भार-शिव काल में बनना आरंभ हुआ था; और इसी शैली को हम नागर शिखर कह सकते हैं । ६ ४७. गुप्तों के समय में आकर पत्थर के मंदिरों में यह शिखर-शैली पुरानी और परित्यक्त हो जाती है । पर हाँ, गुप्त काल में ईंटों और चूने के जो मंदिर आदि बनते थे, उनमें इस नागर शैली की अवश्य प्रधानता रहती थी। मध्य-कालीन स्थापत्य में स्तंभ और शिखर का चौकोर और गोल बनावट का अर्थात् नागर और वेसर शैलियों का संमिश्रण पाया जाता है और नागर शैली की कुछ प्रधानता रहती है। ४८. चित्र-कला की भी एक नागर शैली थी। देखने में तो उसका भी नाग काल से ही संबंध सूचित होता है, पर अभी तक हम लोग उसे पूरी तरह से पहचान नहीं नागर चित्र-कला सकते हैं। और अजंता में अस्तरकारी पर बने हुए जो हमारे पुराने चित्र बने हैं, यदि उनमें किसी समम आगे चलकर इस शैली का कुछ विशिष्ट रूप से स्पष्टीकरण हो जाय और उसका पता चल जाय तो मुझे कुछ भी आश्चर्य न होगा। अजंता सन् २५० ईसवी के लगभग नाग साम्राज्य में सम्मिलित हुआ था। १. मिलाश्रो कोंच नामक स्थान के ईंटों के बने हुए गुप्त मंदिर के संबंध में कनिंघम का लेख A. S. R. १६, प्लेट १७, पृ. ५२ ।
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