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पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/१५६

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(१२८ ) नाम विदिशा वृप से बदलकर किलकिला वृप हो गया था, जैसा कि वायुपुराण में कहा है । यथा- तच्छनेन च कालेन ततः किलकिला-वृपाः । ततः कि (के) लकिलेभ्याश्च विन्ध्यशक्तिर्भविष्यति ।। X X X X वृपान् वैदेशकांश्चापि भविष्यांश्च-निबोधत' । भागवत में इसी प्रकार परवर्ती नागों का वर्णन किया गया है और किलकिला के राजाओं का वर्णन भूननंदी से प्रारंभ करते हुए कहा गया है- किलकिलायां नृपतयो भूतनन्दोथ वंगिरिः । शिशुनन्दिश्च तद्भ्राता यशोनन्दिः प्रवीरकः२ ॥ पुराणों में प्रवीर का किलकिला वृपों के अंतर्गत अर्थात् पूर्वी बुंदेलखंड और बघेलखंड के भार-शिवों के साथ रखा है। जो यह कहा गया है कि किलकिला के राजाओं में से विध्यशक्ति एक राजा हुआ था, उसका अभिप्राय यह है कि वह किलकिला के राजाओं के माने हुए करद राजाओं में या उनके संघ के एक खास सदस्यों में से था। वाकाटकों के जो राजकीय लेख आदि हैं, उनमें विंध्यशक्ति का नाम छोड़ १. वायुपुराण, श्लोक ३५८--३६० । मिलायो ब्रह्मांड पुराण, श्लोक १७८, १७६ । २. श्लोक ३२, ३३. भागवत में इस बात का उल्लेख छोड़ दिया गया है कि यशानदी और प्रवीर के बीच में और राजा भी हुए थे।