पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/१६७

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( १३७ ) इन पर के लेख मसौदे के रूप में हैं जो बाकी सादे अंश पर एक दान के संबंध में खोदे जाने के लिये तैयार किए गए थे। पर इनमें किसी दान का उल्लेख नहीं है। ये मध्य-प्रदेश के बालाघाट जिले में पाए गए थे। E. I. १६; २६६ । देवसेन--(ट) अजंता के गुहा-मंदिर का शिलालेख नं० १३ (घटोत्कच गुहा) राजा देवसेन क मंत्री हस्तिभोज का लिखवाया हुआ और देवसेन वाकाटक' के शासन-काल में खुदवाया हुआ (वाकाटके राजति देवसेने)। यह मंत्री दक्षिणी ब्राह्मण था जिसकी वंशावली उसमें दी गई है। यह गुहा-मंदिर उसने बौद्ध-धर्म के लिये उत्सर्ग किया था। A. S. W. I. ४,१३८ । हरिपेण-- (ठ) अजंता का शिलालेख (बुहलर का तीसरा लेख ) जो गुहा-मंदिर नं० ५६ में है। यह देवसेन के पुत्र हरि- पेण के शासन-काल का है। देवसेन ने अपने पुत्र हरिपेण के लिये राजसिंहासन का परित्याग कर दिया था। यह देवसेन प्रवरसेन द्वितीय के एक पुत्र का, जिसका नाम नहीं मिलता, पुत्र था। इस शिलालेख के पहले भाग में श्लोक १ से १८ तक वंश का इतिहास (क्षितिपानुपूर्वी ) है। वाकाटक राजवंश के राजाओं की यह आनुपूर्वी या राजसिंहासन पर बैठनेवाले राजाओं का क्रम विंध्यशक्ति से प्रारंभ होता है। दूसरे भाग श्लोक १६ से ३२ तक में स्वयं उस मंदिर का उल्लेख है जिसका आशय यह है कि मंत्री बराहदेव ने, जो देवसेन के मंत्री हस्ति- १. बुहलके ने भूल से इसे कुछ परवर्ती काल का बतलाया है ।