1 पृथिवीषेण द्वितीय देवसेन-भोगप्रिय (भोगेषु यथेष्टचेष्टाः) और रूपवान् राजा (इसने अपने डूबे हुए वंश 1 जिसने अपने पुत्र हरिपेण के लिए सिंहासन का का उद्धार किया था) 1 परित्याग कर दिया था। हरिपेण-इसने कुंतल, अवंती, कलिंग, कोशल, त्रिकूट, लाट और आंध्र देशों पर विजय प्राप्त की थी। इसी के मंत्री हस्तिभोज ने अजंता का गुहा- मंदिर नं. १६ बनवाया था और बौद्ध भिक्षुओं को अर्पित किया था। देवसेन और उसके पुत्र पृथिवीपेण द्वितीय के उत्तराधिकारी के संबंध में कुछ भ्रम उत्पन्न हो गया है और इसका कारण दो लेख हैं। पहला तो अजंता की १६ नं० वाली गुफा का शिलालेख है जो हरिपेण के शासन-काल में उत्कीर्ण हुआ था और दूसरा पृथिवीषेण द्वितीय का ताम्रपत्रवाला मसौदा है। परंतु इनके शब्दों को ठीक ठीक रूप में लाने पर भ्रम या गड़बड़ी दूर हो जाती है। और आगे चलकर परवर्ती वाकाटकों के इतिहास में मैंने इस विषय का विवेचन किया है ( १४१ )
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