(१६८) भार-शिव काल में जो फिर से सिक्के बनने लगे थे और कुशनों के इतिहास तथा जालंधर राज्य की स्थापना के संबंध में जो बातें बतलाई गई हैं, उनका ध्यान रखते हुए इस बात में कोई संदेह नहीं रह जाता कि वाकाटक-साम्राज्य में मादक देश भी संमिलित था। ८१. यही बात राजपूताने और गुजरात की रियासतों के संबंध में भी कही जा सकती है। समुद्रगुप्त के शिलालेख में पश्चिमी और पूर्वी मालवा के जिन प्रजातंत्री राजपूताना और गुजरात समाजों की सूची दी है, उनमें आमीरों का वहाँ कोई क्षत्रप नहीं था नाम सबसे पहले आया है और मालव- आर्जुनायन - यौद्धय - माद्रकवाले वर्ग में मालवों का नाम सबसे पहले आया है। मालव से माद्रक तक का मि० • एलन के इस सिद्धात के संबंध में यह बात ध्यान में रखने की है कि कोई हिंदू कभी अपने पिता और माता का विवाह करने का विचार भी न करेगा। चंद्रगुप्त प्रथम के इन सिक्कों पर यह अंकित है कि चंद्रगुप्त अपनी पत्नी के साथ प्यार कर रहा है और इस प्रकार के सिक्के स्वयं चंद्रगुप्त प्रथम के बनवाए हुए हो सकते हैं । जैसा कि ऊपर बतलाया जा चुका है, अपने पाटलिपुत्र वाले सिक्कों से पहले चंद्रगुप्त प्रथम ने जो सिक्के बनवाए थे, उनके चित्र कनिंघमकृत Coins of Ancient India प्लेट ७ के अंक १-२ पर दिए हुए हैं। ये सिक्के उस समय बनवाए गए थे जिस समय वह भार-शिव वाकाटक साम्राज्य के अधीन था । इन सिक्कों पर त्रिशूल अंकित है जो भार-शिवों का चिह्न था । कनिंघम का मत है कि उस पर रुद्रगुप्तस लिखा है (पृ० ८१)। पर इसका पहला अक्षर च है और इसका समर्थन इस बात से होता है कि उस च के ऊपर अनुस्वार है। अंतिम अक्षर स नहीं बल्कि स्य है ।
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