(२२१ ) ही वह मर गया था। उसकी मृत्यु अवश्य ही गंगा के उस पार उसके संबंधी लिच्छवियों के राज्य में हुई होगी। उसका पुत्र समुद्रगुप्त भी लिच्छवियों का अधीनस्थ और संबंधी ही था और उस समय उसे साकेत का अर्थात् आस-पास का अवध का प्रदेश मिला होगा, जहाँ अयोध्या में हम इसके बादवाले शासनों में गुप्त सम्राटों को अपने दूसरे और प्रिय राजनगर में निवास करते हुए पाते हैं। अयोध्या में भी उन दिनों संस्कृति का एक केद्र था । अयोध्या में ही वह कवि अश्वघोष हुआ था जो इससे ठीक पहलेवाले अब्दप्रवर्तक काल का कालिदास माना जाता है। वह बहुत बड़ा विद्वान् शिखरस्वामी भी अयोध्या का ही रहनेवाला था जो आगे चलकर रामगुप्त और चंद्रगुप्त द्वितीय का अमात्य या प्रधान मंत्री हुआ था । सनातनी परंपरा के अनुसार अयोध्या में ही रामचंद्र की राजधानी थी और इसीलिये समुद्रगुप्त ने अपने सबसे बड़े लड़के का नाम रामगुप्त रखा था; और यह एक ऐसा नाम था जो सारी पुरानी हिंदू सभ्यता को व्याप्त १. Gupta Inscriptions, पृ०६ । २. बिहार और उड़ीसा रिसर्च सोसाइटी का जरनल, खंड १८, पृ० ३७॥ ३. अरब ग्रंथकार अबू सालेह ने लोकप्रिय रम-पाल (रव्वाल) नाम अपने ग्रंथ में दिया है । ( वि० उ० रि० सो० का जनरल, १८ पृ० २१ ) और इसका मिलान हम गुप्तों की राजावलीवाले उन नामों से कर सकते हैं जो कनिंघम को अयोध्या में मिली थी। उस नामा. वली के नामों के अंत में "गुप्त" के स्थान पर "पाल" शब्द मिलता चंद्रपाल श्रादि | A. S. R. खंड ११, पृ. ६६ । है। जैसे समुद्रपाल,
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