( २४६) कौशांबी का युद्ध ६१३२. समुद्रगुप्त ने सबसे पहला काम तो यह किया था कि एक स्थान पर उसने जमकर युद्ध किया था जिसमें दो अथवा कदाचित् तीन राजाओं (अच्युत, नागसेन और गणपति नाग) को परास्त किया था; और इसी युद्ध से उसके राजनीतिक सौभाग्य ने पलटा खाया था और उसके साम्राज्य की नींव पड़ी थी। इस युद्ध का तात्कालिक परिणाम यह हुआ था कि कोट-वंश के राजा को (जिसका नाम श्लोक में नहीं दिया गया है) उसके सैनिकों ने पकड़ लिया था और उसने फिर से पुष्पपुर में प्रवेश किया था। इलाहाबाद वाले स्तंभ के अभिलेन की १३वीं और १४ वीं पंक्तियों में ७ वें श्लोक में इस घटना का इस प्रकार वर्णन किया गया है- उद्वेलोदित-बाहु-चीर्य-रभसाद् एकेन येन क्षणाद् उन्मूल्य आच्युत नागसेन ग...... दंडैरग्राहयत् ऐव कोट-कुलजम् पुष्प-श्राह्वये क्रीडता सूर्येन... तत......। ग के बाद के अक्षर मिट गए हैं, परंतु कदाचित् वह नाम गणपति होगा। क्योंकि अंत में जो “ग” बचा रह गया है, उसके विचार से भी और छंद के विचार से भी यही जान पड़ता है कि वह शब्द गणपति होगा। आगे चलकर २१ वीं पंक्ति में जो वर्गीकरण हुआ है और जो गद्य में है, उससे भी यही बात ठीक जान पड़ती है। उसमें नागसेन-अच्युत-वाले वर्ग का गणपति नाग से आरंभ हुआ है । यथा- गणपति-नाग-नागसेन-अच्युत-नंदी-बलवर्मा।
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