( २५०) था, बल्कि कोसला, मेकला और आंध्र में वाकाटकों पर आक्रमण करके वाकाटक सम्राट को बिलकुल लाचार भी कर सकता था। उन दिनों पल्लवों के हाथ में बहुत कुछ सुरक्षित और महत्त्वपूर्ण प्रदेश था ओर वे वाकाटकों की एक शाखा में से ही थे और इसलिये वे वाकाटक सम्राट के अधीन भी थे और उससे मेल भी रखते थे। उससे पहलेवाले वाकाटक सम्राट ने जो चार अश्वमेध यज्ञ किए थे, उनके कारण वाकाटकों का भारत की चारों दिशाओं में अधिकार हो गया था। परंतु समुद्रगुप्त दक्षिणवालों को दबाने का उतना प्रयत्न नहीं करता था, जितना उन्हें शांत और संतुष्ट रखने का प्रयत्न करता था। वह वहाँ के शासकों को पकड़कर छोड़ दिया करता था; और केवल कोसला और मेकला को छोड़कर जो वाकाटक साम्राज्य के अंतर्मुक्त अंग तथा प्रदेश थे, उसने दक्षिण के और किसी प्रदेश को अपने राज्य में नहीं मिलाया था। कलिंग में उसने अपना एक नया करद और सामंत राज्य स्थापित किया था और इसीलिये यह जान पड़ता है कि दक्षिण में उसका अधिकार बहुत जल्दी जल्दी बढ़ा होगा। साथ ही दक्षिणी भारत उसके लिये बहुत अधिक लाभदायक भी था । सारा उत्तरी भारत सोने से भर गया था और संभवतः यह सारा सोना दक्षिणी भारत से ही यहाँ आया था। समुद्रगुप्त सिर्फ सोने के ही सिक्के तैयार कराता था और कुछ दिनों बाद अपने एक अश्वमेध यज्ञ के समय उसने सोने के इतने अधिक सिक्क तैयार कराए थे, जो खूब उदारतापूर्वक बाँटे गए थे और इतने अधिक बाँटे गए थे, जितने पहले कभी नहीं बाँटे गए थे। ६१३४. यह बात नहीं मानी जा सकती कि इलाहाबाद वाले शिलालेख में दक्षिणी भारत के राजाओं और सरदारों के जो नाम
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