(२५२) संबंध गंटूर जिले के दानों से है, और साथ ही उन अभिलेखों में वेंग राष्ट्र का भी उल्लेख आया है जो समुद्रगुप्त का वेंगी ही है और जो गोदावरी तथा कृष्णा के बीच में था। ६ १३५. साधारणतः यही समझा जाता है कि समुद्रगुप्त ने दक्षिण की ओर जो अभियान किया था, वह दिग्विजय करने के लिये किया था। पर वास्तव में यह बात नहीं है । वह तो वाकाटक शक्ति को दबाने के लिये एक सैनिक उद्योग थाः और इसकी आवश्यकता इसलिये पड़ी थी कि समुद्रगुप्त ने आर्यावर्त में जो पहला युद्ध किया था, उसमें गणपति नाग, अच्युतनंदी और नाग- सेन मारे गए थे। वाकाटक शक्ति का दूसरा केंद्र आंध्र-देश में था और वहाँ की राजधानी दशनपुर' से वाकाटकों की छोटी शाखा दक्षिण पर पल्लव सम्राटों (पल्लवेंद्र) के रूप में शासन करतीथी। और यह शाखा तामिल प्रदेश के सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण राज्य चोल को राजधानी कांची तक पहुंच गई थी जो सुदूर दक्षिण में था। दक्षिण पर आक्रमण करने का समुद्रगुप्त का एकमात्र उद्देश्य यही था कि पल्लवों की सेना का पराभव किया जाय । वह सोचता था कि वाकाटकों के सैनिक नेताओं (गणपति नाग आदि) को जो मैंने उत्तरी भारत में युद्ध में मार डाला है, यदि उसका १. देखो एपि० इ०, १, ३६७ जहाँ इसे अधिष्ठान या राजधानी कहा गया है। साथ ही देखो इं० ए० ५, १५४ में फ्लीट का लेख । परवर्ती शिलालेख में इसे फिर राजधानी (विजयदशनपुर ) कहा गया है। २. इनके लिये इनके गंग और कदंब दोनों ही वर्गों के सामंतों ने इसी उपाधि का प्रयोग किया है । एपि० इं० १४, १३१ और ८, ३२ ।
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