( २६०) था। यहाँ जो "समस्त द्वीप" कहा गया है, उससे भारतवर्ष के अथवा भारती प्रजा के समस्त उपनिवेशों से अभिप्राय है (देखो ६१४६ क)। डा०विसेंट स्मिथ का विचार है कि लंका के राजा मेघवर्ण का राजदूत समुद्रगुप्त की सेवा में बोध-गया में सिंहली यात्रियों के लिये एक बौद्ध-मठ या बिहार बनवाने की अनुमति प्राप्त करने के लिये आया था; और समुद्रगुप्त ने अपने शिलालेख में इसी बात की ओर संकेत करते हुए यह कहा है कि उसने भी उपहार भेजा था। परंतु ये दोनों बातें एक दूसरी से बिलकुल स्वतंत्र जान पड़ती हैं। शिलालेख में केवल लंका या सिंहल के ही राजा का उल्लेख नहीं है, बल्कि समस्त द्वीपों के शासकों का उल्लेख है। यह बात प्रायः सभी लोग अच्छी तरह जानते हैं कि और भी ऐसे कई भारतीय उपनिवेश थे जिनके साथ भारतवर्ष का आवागमन का संबंध था। चंपा ( कंबोडिया ) में ईसवी तीसरी शताब्दी का एक ऐसा संस्कृत शिलालेख मिला है जो श्रीमार कौंडिन्य के वंश के किसी राजा का है और जिसमें लोक-प्रिय वसंततिलका छंद अपने पूर्व रूप में है और उसकी भाषा तथा शैली वाकाटक तथा गुप्त-अभिलेखों की सी है। चंपा के उक्त शिलालेख से यह प्रमाणित हो जाता है कि भारतीय उपनिवेशों का भार-शिव और वाकाटक भारत के साथ संबंध १. Early History of India, पृ० ३०४-३०५ । २. डा० आर० सी० मजुमदार-कृत Champa (चंपा) नामक ग्रंथ का अभिलेख, सं० १ । साथ ही मिलाश्रो रायल एशियाटिक सोसा- इटी का जरनल, १६१२, पृ० ६७७ जिसमं बतलाया गया है कि चीनी यात्री फान-ये (मृत्यु सन् ४४५ ई०) ने लिखा था कि (गुप्त) भारत का विस्तार काबुल से बरमा या अनाम तक है।
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