( २६६) इसी लिये सासानी राजा बहुत दुर्बल हो गया था। यदि समुद्रगुप्त चाहता तो सहज में सासानी राजा के राज्य पर आक्रमण कर सकता था और संभवतः उसका राज्य अपने साम्राज्य में मिला सकता था, क्योंकि युद्ध की कला में उन दिनों उसका सामना करनेवाला कोई नहीं था। परंतु समुद्रगुप्त के लिये पहले से ही धर्म-शास्त्र (जिसका शब्दार्थ होता है- सभ्यता का शासन ) बना हुआ मौजूद था और वह धर्म-शास्त्र के नियमों का उल्लंघन नहीं कर सकता था। उसने उसी धर्म का पालन किया था। उस धर्म ने पहले से ही हिंदू राजा के सार्वराष्ट्रीय कार्यों को भी और साम्राज्य संबंधी कार्यों को भी निर्धारित और सीमित कर रखा था। समुद्रगुप्त की विजयों के इतिहास से यह सूचित होता है कि उसके सब कार्य उसी शास्त्र से भली भाँति नियंत्रित होते थे और वह कभी स्वेच्छाचारी सेनापति नहीं वना था-उसने अपनी सैनिक शक्ति के मद से मत्त होकर कभी मर्यादा का उल्लंघन नहीं किया था।
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