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चौथा भाग दक्षिणी भारत [ सन् १५०-३५० ई.] और उत्तर तथा दक्षिण का एकीकरण गायन्ति देवाः किल गीतकानि धन्यास्तु ये भारतभूमिभागे। स्वर्गापवर्गास्पदमार्गभूते भवन्ति भूयः पुरुषाः सुरत्वात् ।। [भारत-गीत ] विष्णुपुराण २, ३, २४ । सम्यक्-प्रजापालनमात्राधिगतराजप्रयोजनस्य । [अर्थात्-वह सम्राट, जिसका राज्य ग्रहण करने का प्रयोजन केवल यही है कि प्रजा का सम्यक् रूप से पालन हो । दक्षिणी भारत के गंग वंश के शिला-लेख ] - १५. आंध्र ( सातवाहन ) साम्राज्य के अधीनस्थ सदस्य या सामंत ६ १५२. यहाँ सुभीते की बात यह होगी कि हम दक्षिणी इतिहास का भी कुछ सिंहावलोकन कर लें जिससे हमें यह पता