पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/३३३

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( ३०५) लिपि पुरानी है, परंतु उसी शासन-काल का मलवल्लीवाला जो शिलालेख है, उसकी लिपि वही है जो सन् २०० ई० में प्रचलित थी। यह मलवल्लीवाला शिलालेख भी उसी प्रकार के अक्षरों में लिखा है, जिस प्रकार के अक्षरों में राजा चंडसाति का कोडवली- वाला शिलालेख है। सातवाहनों की शाखा में इस चंडसाति के बाद केवल एक ही और राजा हुआ था (दे० एपिग्राफिया इंडिका, खंड १८, पृ० ३१८ ) और उसके लेख में जो तिथि मिलती है, उसका हिसाब लगाकर मि० कृष्णशास्त्री ने उसे दिसंबर सन् २१० ईस्थिर किया है। और यह तिथि पुराणों में दी हुई उसकी तिथि के बहुत ही पास पड़ती है (पुराणों के अनुसार इसका समय सन् २२८ ई. आता है। देखो बिहार-उड़ीसा रिसर्च सोसाइटी का जरनल, सन् १९३०, पृ० २७६ ) । राजा हारितीपुत्र विष्णु-कंद चुटुकुलानंद शातकर्णि और उसके दौहित्र हारिती- पुत्र शिव-त्कंद वर्मन् (वैजयंतीपति)' की वंशावली प्रो० रैप्सन ने बहुत ही ध्यान और विचारपूर्वक, इस वंश के तीन शिलालेखों और पहले कदंब राजा के एक लेख के आधार पर, फिर से ठीक करके तैयार की थी। जिस सामग्री के आधार पर उन्होंने यह परंतु डा. भगवानलाल इंद्रजी का मत है कि वह कुछ और बाद का है। प्रो० रैप्सन ने C. A. D. पृ. २३ ( भूमिका ) में कहा है कि राजा हारितीपुत्र का समय अधिक से अधिक सन् ईसवी की तीसरी शताब्दी के श्रारंभ में रखा जा सकता है, इससे और पहले किसी तरह रखा ही नहीं जा सकता । १E.C. खंड ७, पृ० २५२ । २. C. A. D. पृ० ५३ से ५५ ( भूमिका )।