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पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/३३५

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( ३०७ ) चाहिए-छोटी शाखा अर्थात् साम्राज्य-भोगी सातवाहनों की छोटी शाखा। ६ १५६. पुराणों के अनुसार इस चुटु कुल का अंत वाकाटक- काल में अर्थात् सन् २५० ई० के लगभग हुआ था और उससे पहले १०० अथवा १५ वर्षों तक उनका रुद्रदामन् और सात- अस्तित्व रहा। इससे हम कह सकते हैं वाहनों पर उसका प्रभाव कि इस कुल का आरंभ सन् १५० ई० के लगभग हुआ होगा; और यह वह समय था जब कि रुद्रदामन की शक्ति के उदय के कारण सातवाहनों को सबसे अधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा था। राजकीय संघटन के विचार से रुद्रदामन् की जो स्थिति थी, उसका ठीक ठीक महत्त्व अभी तक भारतीय इतिहास ज्ञाताओं ने नहीं समझा है। उसे बहुत बड़ी शक्ति केवल अपनी उस कानूनी हैसियत के कारण प्राप्त हुई थी जो हैसियत किसी शक-शासक को न तो उससे पहले ही और न उसके बाद ही इस देश में हासिल हुई थी । उसका पिता पूर्ण रूप से अधिकार-च्युत कर दिया गया था और राज्य से हटा दिया गया था । परंतु काठियावाड़ ( सुराष्ट्र) और उसके आस-पास के समस्त हिंदू-समाज के द्वारा रुद्रदामन् राजा निर्वाचित हुआ था (सर्ववर्णे- रभिगम्य रक्षणार्थ (म्) पतित्वे वृतेन )। जिन सौराष्ट्रों ने उसे राजा निर्वाचित किया था, वे अर्थशास्त्र के अनुसार प्रजातंत्री थे। निर्वाचित होने पर रुद्रदामन को शपथपूर्वक एक प्रतिज्ञा करनी पड़ी थी, जिसकी घोषणा और पुष्टि उसने अपने जूनागढ़वाले शिलालेख १.११. १२५ ।