( ३१३) वह दान किया था और उसी ने उसे उत्कीर्ण भी कराया था। और दूसरे अभिलेख में जो यह कहा गया है कि जब कदंब राजा ने यह सुना कि शिवस्कंद वर्मन् ने पहले यह दान किया था, तब उसने बहुत ही प्रसन्नतापूर्वक और परितुष्ट होकर उसे फिर से दान कर दिया, उसका आशय यह है कि प्रपिता और पौत्र के नामों में कुछ गड़बड़ी हो गई थी और प्रपिता के नाम के स्थान पर भूल से पौत्र का नाम लिख दिया गया था 1 ६ १६२. मैंने वह प्लेट बहुत ध्यानपूर्वक पढ़ा है और चौथी पंक्ति में "शिव" शब्द के पहले मैंने देखा कि "कदंबानाम् राजा पढ़ना असंभव है। हाँ अंतिम पंक्ति में मलवल्ली का कदंब मुझे कदंबों के वैभव का अवश्य उल्लेख राजा, चुटु-राजाश्रों के मिला है और उसी पंक्ति से यह भी उपरांत पल्लव हुए थे सूचित होता है कि वह कदंगों का लिख- वाया हुआ दानपत्र है। उस लेख की चौथी पंक्ति से ही बादवाले दान का उल्लेख आरंभ होता है, और उसमें का जो अंश पढ़ा जा सकता है, वह इस प्रकार है-शिव ख (द) वमणा मानव्य स (गो) त्तेन हारितीपत्तेन वैजयंतीपति (न) (पंक्ति की समाप्ति)। "शिव' के पहले दो शब्द (रामा) ३. अथवा यह भी हो सकता है कि शिवस्कंद ने फिर से उस दान की स्वीकृति दी हो और उसका समर्थन किया हो, जैसा कि उस पल्लव दान के संबंध में हुश्रा था जो एपि० इं १, पृ० २ में प्रकाशित हुश्रा है और जिसमें पल्लव-सम्राट ने अपने पिता “बप्प" के किए हुए दान का समर्थन या पुष्टि की है 1
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