( ११ ) ६६. वासुदेव अंतिम कुशन सम्राट् था और जैसा कि मथुरावाले लेख से प्रकट होता है, उसने कुशन संवत् ६८ तक राज्य किया था। या तो वासुदेव के कुशन साम्राज्य का अंत शासन-काल के अंतिम वर्षों में (सन् १६५ ई०) और या उसकी मृत्यु (सन् १७६ ई० ) पर कुशन साम्राज्य का अंत हो गया था। इस कुशन वंश के शासन के अंत के साथ ही साथ अश्वमेधी भार-शिवों की शक्ति का उत्थान हुआ था। जिस समय उनका उत्थान हुआ था, उस समय उन्हें सबसे पहले कुशन साम्राज्य का ही मुकाबला करना पड़ा था और उसी साम्राज्य को उन्हें तोड़ना पड़ा। २. भार-शिव कौन थे $ १०. जब प्रायः सौ वर्षों तक कुशनों का शासन रह चुका, उसके बाद भार-शिव वंश का एक हिंदू राजा गंगा के पवित्र जल से अभिपिक्त होकर हिंदू सम्राट के भार-शिव और पौरा- पद पर प्रतिष्ठित हुआ था। इस कथन का णिक उल्लेख एक महत्त्वपूर्ण अभिप्राय यह है कि बीच में सौ वर्षों तक हिंदू साम्राज्य का क्रम भंग रहने के उपरांत वह भार-शिव राजा फिर से विधिवत् अभि- षिक्त होकर शासक बना था। इस संबंध में हम उस पौराणिक वचन का उल्लेख कर देना चाहते हैं जो भारतवर्ष के तत्कालीन विदेशी राजाओं के विषय में है और जिसका अभिप्राय यह है कि वे लोग अभिषिक्त राजा नहीं होते थे । वह वचन इस प्रकार है- १. ल्यूडर्स सूची नं० ७६ Epigraphia Indica दसवाँ खंड; परिशिष्ट । तब
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