( ३७०) ६१६१. गंग अभिलेखों में यह कहा गया है कि अविनीत कोंगणि ने एक कदंब राज-कुमारी के साथ विवाह किया था और जान पड़ता है कि इसका समर्थन काकुस्थवर्मन् के तालगुंड वाले शिलालेख से होता है, जिसमें कहा गया है काकुस्थवर्मन ने कई राजनीतिक विवाह कराए थे। कहा गया है कि अविनीत कोंगणि ने कृष्णवर्मन प्रथम की बहन के साथ विवाह किया था, और यह कृष्णवर्मन् काकुस्थ का पुत्र था' । इस प्रकार अविनीत कोंगणि का समय काकुस्थ के समय ( लगभग सन् ४०० ई०) की सहा- यता से निश्चित हो जाता है। तीसरे राजा अय्यवर्मन् को पल्लव सिंहवर्मन द्वितीय ने राजपद पर प्रतिष्ठित किया था, जिसका समय लगभग सन् ३३०-३४४ ई० है ( देखो ६ १८७), और माधव द्वितीय को पल्लव स्कंद वर्मन् तृतीय ( लगभग ३४४-३४६ ई०) ने, जो सिंहवर्मन का उत्तराधिकारी था, राज्य पर बैठाया था। इस प्रकार इन तीनों सम-कालीन वंशों से एक दूसरे का काल-निरूपण हो जाता है, और यह भी सिद्ध हो जाता है कि गंग काण्वायन वंश का संस्थापक सन् ३०० ई० से पहले नहीं हुआ होगा । अनुमान से उनका समय इस प्रकार होगा (जिसमें लेखों के प्रमाण के श्राधार पर और श्रागे ($$ १६०-१६१) दिए हुए इन राजाओं के काल-निरूपण के श्राधार पर यह बात मिथ्या सिद्ध होती है। १. मिलाश्रो Kadamba Kula, पहला नक्शा । २. इससे यह सिद्ध होता है कि जिन अभिलेखों पर प्रारंभिक शक संवत् ( सन् २४७ ई० श्रादि, मिलाश्रो कीलहान की सूची, एपिग्रा- फिया इंडिका ८, पृ० ४, पाद-टिप्पणी) दिए गए हैं, उनमें यद्यपि बहुत कुछ ठीक वंशावली दी गई है, परंतु फिर भी असली नहीं हो
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