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पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/४१८

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(३९०) सज्ञ बार-बार "राघव" शब्द का प्रयोग करता है । राघव राम के संबंध में जो अनुश्रुतियाँ बहुत दिनों से चली आ रही थीं, क्या समुद्रगुप्त ने अयोध्या से उन्हीं की पुनरावृत्ति करने का प्रयत्न नहीं किया था ? क्या कालिदास ने समुद्रगुप्त की विजय का रघु की दिग्विजय में समावेश नहीं किया था ? पुराण में जिस अंतिम साम्राज्य का उल्लेख है, उसी के संस्थापक की ओर यह संकेत घटता है। अर्थात् यह आक्षेप गुप्त-साम्राज्य के संस्थापक पर है, जिसका नाम इतिहास-लेखक ने अपने काल-क्रमिक इतिहास में छोड़ दिया है। उसके कहने का मतलब यही है कि स्मरण रखने के योग्य वही इतिहास है, जिसमें उत्तम कार्य और उपयुक्त सेवाएँ हों। जिन काव्यों के द्वारा दूसरे लोगों के अधिकार और स्वतंत्रताएँ पद-दलित होती हों, वे इस योग्य नहीं हैं कि इतिहास-लेखक उन्हें लिपि-बद्ध करे। यदि वह इतिहास- लेखक आज जीवित होता तो उसने कहा होता-"समुद्रगुप्त के पुत्र विक्रमादित्य को स्मरण रखो, परंतु समुद्रगुप्त को भूल जाओ। केवल सद्गुणों का ध्यान रखो, दुर्गुण या दोष की ओर किसी रूप में भी ध्यान मत दो।" समुद्रगुप्त ने भी सिकंदर की भाँति अपने देश की स्वतंत्रतावाली भावना की हत्या कर डाली थी। उसने उन मालवों और यौधेयों का विनाश कर डाला था, जो स्वतंत्रता को जन्म देनेवाले और उसकी वृद्धि करनेवाले थे। और उन्हीं की तरह के और भी बहुत से लोगों का उसने नाश कर ततो भृत्यांश्च पौरांश्च जिगीषन्ते तथा रिपून् । क्रमेणानेन जेष्यामो वयं पृथ्वी ससागराम् ।।५७।। समुद्रावरणं याति ||५८।। द्वीपान् समाक्रम्य हतारिचक्रः ।।७२।।