पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/४३४

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( ४००) 1 और आराल या आराला का अर्थ होता है-वृत्त की अवधा या आरा; और यह शब्द संस्कृत अराल से निकला है। ये चिह्नित इंटें वास्तव में मेहराबी ईंटें हैं। जान पड़ता है कि आरा का अर्थ है- मेहराब में लगने वाली गावदुम ईंट या पत्थर; और घोड़े की नाल के आकार की मेहराब का हिंदू वास्तुकला में पारिभाषिक नाम "अाराला" था। दर्व आराल या तो मेहराब की आकृति का सूचक नाम था और या उस स्थान का सूचक था जिसमें नाग- मूर्तियों के फन रहते थे। एक ईंट की चिकनी सतह पर एक बड़े अक्षर "भा" के अंदर एक छोटा सा स्पष्ट "भू' बना हुआ है इस बड़े अक्षर "भा" के बाद एक छोटा सा "रा" है और तब अनुस्वार-युक्त “य" है । सब मिलाकर “भूभारायम्" पढ़ा जाता है, जिसका अर्थ होता है-"भूभारा में।" दूसरी ईंट में ऊपर की ओर बाएँ कोने पर "आ" और दाहिने कोने पर "रा" है। उनमे मंदिर का ठीक रास्ता बतलाने के लिये तीर के निशान बने हैं। इन इंटों का आकार वैसा ही है, जैसा मेहराब में लगाई जानेवाली गावदुम इंटों का होता है। इनमें से एक ईट की नाप तो ७°xx६ है ( यह एक तरफ से टूटी हुई है। इस समय ६' है; परंतु मूलतः कदाचित् दूसरी ओर की तरह ' ही रही होगी) और इसकी मोटाई २५ है; और जिस मसाले से यह बनी है, वह बहुत मजबूत है। दूसरी ईंट ८' x (७', टूटी हुई है) है। जान पड़ता है कि ये ईंटें पहाड़ी के नीचे बनी थीं और भूभारा के लिये थीं; और जिस पहाड़ी पर यह मंदिर बना था, जान पड़ता है कि उसका नाम भूभारा था। कदाचित् कई अलग-अलग इमारतों के लिये बहुत सी ईंटें एक साथ ही बनी थीं और जिस स्थान की इमारत के लिये जो ईंटें बनी थीं, उस स्थान का नाम उन इंटों पर अंकित कर दिया गया था।