पाठ ही अधिक ठीक जान पड़ता है, क्योंकि वहाँ "और" या "च" शब्द भी आता है। भार-शिवों और वाकाटकों के इतिहास का जो विवरण शिलालेखों आदि में मिलता है (देखो -५) उसका भी इस मत से पूर्ण रूप से समर्थन होता है और इस विवरण से वह विवरण बिलकुल मिल जाता है। ६ २५. वाकाटक शिलालेखों के अनुसार राज-सिंहासन गौतमीपुत्र को, जो सम्राट् प्रवरसेन का पुत्र और रुद्रसेन प्रथम का पिता था, नहीं मिला था, बल्कि शिलालेखों द्वारा रुद्रसेन प्रथम को मिला था जो सम्राट पुराणों का समर्थन प्रवरसेन का पोता भी था और भारशिव महाराज भवनाग का नाती भी था। पर यहाँ रखते और वायु पुराण के "पुरिकाम् चनकान् च वै” का भी ध्यान रखते हुए यह पाठ भी हो सकता है-"भोक्ष्यन्ति च समा षष्ठिम् पुरीम् कांचनकान् च वै"। यह चनका वहीं स्थान हो सकता है जिसे श्राज- कल नचना कहते हैं । साधारणतः अक्षरों का इस प्रकार का विपर्यय प्रायः देखने में श्राता है। अजयगढ़ रियासत में नचना एक प्राचीन राजस्थानी है जहाँ वाकाटकों के शिलालेख और स्मृति-चिह्न अादि पाए गए हैं । ( A. S. R. २१ । ९५ ) जैन साहित्य में भी चनकापुर का उल्लेख है, जहाँ वह राजगृह का पुराना नाम बतलाया गया है (अभि- धान राजेंद्र ) । चनका का अर्थ होगा “प्रसिद्ध"। बहुत संभव है कि कांचनका और चनका एक ही स्थान के दो नाम हों। कालिका पुराण ( ३।१४।२।२१. वेंकटेश्वर प्रेस का संस्करण पृ० २६८ ) में नागों की राजधानी का नाम कांचनीपुरी कहा गया है; और कहा है कि वहाँ पहाड़ी पर एक गुप्त गढ़ी था (गिरिदुर्गावता )। साथ ही देखो नचना के संबंध में ६६० । १ फ्लीट कृत Gupta Inscriptions पृ० २३७, २४५ ।
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