( ४६ ) और त्रय नाग जिसके शासन-काल की अवधि का अभी तक पता नहीं चला है। हय नाग के सिक्के पर की लिपि सबसे अधिक प्राचीन है और वीरसेन के समय की लिपि से मेल खाती है 1 उसका समय वीरसेन के समय के ठीक उपरांत अर्थात् सन् २१० ई० के लगभग होना चाहिए। यहाँ इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि इन सभी राजाओं के सिक्कों पर समय भी दिए हुए हैं और ताड़ का वृक्ष भी है और प्रो० रैप्सन के अनुसार वीरसेन के सिक्के पर भी वही ताड़ का वृक्ष है । मैंने भी मिलाकर देखा है कि वीरसेन के शिलालेख में जो वृक्ष का चिह्न है, वह भी ऐसा ही है। वह वृक्ष बिलकुल वैसा ही है जैसा भार-शिवों के इन सिक्कों पर है। वीरसेन का समय तो सन् २१० ई० है ही; अब यदि हम बाद के चारों राजाओं का समय अस्सी वर्प भी मान लें तो उनका समय लगभग सन् २१० से २६० ई० तक होता है। ऐसा जान पड़ता है कि इन चारों में से कुछ राजाओं ने अधिक दिनों तक राज्य किया था; और जिस प्रकार गुप्त सम्राटों में छोटे लड़के राज्याधिकारी हुए थे, उसी प्रकार इनमें कुछ छोटे लड़के ही सिंहा- सन पर बैठे होंगे। वाकाटक और गुप्त वंशावलियों का ध्यान रखते हुए मैंने भव नाग का समय लगभग सन् ३०० ई० निश्चित किया है । भव नाग वास्तव में प्रवरसेन प्रथम का सम-कालीन था और प्रवरसेन प्रथम उधर समुद्रगुप्त का सम-कालीन था, यद्यपि समुद्रगुप्त के समय प्रवरसेन प्रथम की अवस्था कुछ अधिक थी।इस- लिये इन राजाओं के जो समय यहाँ निश्चित किए गए हैं, वे अप्रत्यक्ष रूप से भव नाग के समय को देखते हुए भी ठीक जान पड़ते हैं। सिक्कों पर दिए हुए लेखों और उनकी बनावट तथा उन पर की दूसरी बातों का ध्यान रखते हुए भार शिवों या मुख्य वंश के नव नागों की सूची इस प्रकार बनाई जा सकती है।
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