पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/७९

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( ५३ ) के संबंध में भी कही जाती है जो किसी समय शिव का बहुत बड़ा मंदिर था जिसमें बहुत बड़ा मंदिर था जिसमें बहुत से नाग (सर्प) राजाओं की मूर्तियाँ हैं। यह मंदिर विंध्य की पहाड़ी पर इलाहा- बाद से पश्चिम और दक्षिण-पश्चिम प्रायः पचीस मील की दूरी पर मौघाट नामक स्थान में था। यह स्थान भरहुत' नामक प्रांत में है जो भारभुक्ति का अपभ्रंश है और जिसका अर्थ है-भारों का प्रांत । आजकल इस देश में भर नाम के जो आदिम निवासी बसते हैं, उनके संबंध में इस बात का कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं मिलता कि मिर्जापुर या इलाहाबाद के जिले में अथवा इनके आस-पास के स्थानों में ऐतिहासिक काल में कभी उनका शासन था। यदि यह मान लिया जाय कि यह दंत-कथा भार-शिव राजवंश के संबंध में है तो इसका सारा अभिप्राय स्पष्ट हो जाता है। भर देउल की वास्तु-कला और मूर्तियों आदि का संबंध मुख्यतः नागों से है। और किटो ( Kittoo) ने लिखा है कि उसके समय यह करकोट नाग का मंदिर कहलाता था। और इन दोनों बातों से हमारे इस मत का समर्थन होता है कि इसमें का यह भर शब्द भार-शिव के लिये है। नागौढ़ और नागदेय भरहुत कहते सुना है। १. मैंने लोगों को भारहुत और भी मूलतः यह शब्द भारभुक्ति रहा होगा जिसका अर्थ है-भार प्रांत या भारों का प्रांत । २. मैं तीन बार इस कस्बे से होकर गुजरा हूँ। यह नागौढ़ और नागौद कहलाता है। नागौढ़ शब्द का अर्थ हो सकता है-नागों की अवधि या सीमा । मत्स्य पुराण ११३-१० में यह 'अवधि' शब्द इसी सीमा के अर्थ में प्रयुक्त हुश्रा है 1