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पृष्ठ:अजातशत्रु.djvu/११२

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अजातशत्रु। कहते हैं, राज्य में विप्लव कहते हैं, समाज में उस्मृङ्गलसा कहवे हैं और धर्म में पाप कहते हैं । चाहे इन्हें नियमों का अपवाद कहो चाहे घडर-यही न ?" - (बलमा को पवेठ) पिम्मसार-"यह लो हम लोग तो वर्षसर की पात करते थे । तुम यहाँ फैसे पहुँच गई । राजमाता महादेवी को इस दरिद्र फुटीर में क्या श्रावश्यफसा हुई ?" । छलना-“मैं घबटर हूँ इसी लिये जहाँ मैं चाहती हूँ असम्भा वित रूप से चली आती हूँ और देस्यना चाहती हूँ कि इस प्रवाह में कितनी सामर्थ्य है। इसमें आवर्च उत्पन्न कर सकती हूँ कि नहीं।" वासवी-"छलना ! यहिन ! तुमको क्या हो गया है।" छलना-"प्रमाद-और क्या। अमी सन्तोप नहीं हुआ, इतने सपाय फरा चुकी हो, और भी कुछ शेप है ?" पासवी-"क्यों, प्रजात तो अच्छी तरह है ? कुराज तो है ?" छलना-"क्या चाहती हो. समुद्रदत्त फाशीमें मारा ही गया। कोशल और मगध में युद्ध का उपद्रव हो रहा है। मजास उसमें गया है। सामान्य भर में आता है। विम्बसार-"युद्ध में क्या हुआ ? अथवा-मुझे क्या ?" ' छलना शैलेन्द्र नाम के डाकूनि द्वन्द युर में अज्ञान करके नफर धोखा देकर कोशल के सेनापति को मारडाला। सेनापति के