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पृष्ठ:अजातशत्रु.djvu/११६

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अजातशत्रु। लोग अनीश्वरवादी हो जायें और प्रति दिन नई समस्या इल' करते २ कुटिल कृत्वघ्न जीव अपनी मुर्खया की धूल उड़ावे-और' विश्व भर में इस पर एफ उन्मत्त अट्टहास हो। (विन माव से नाता है) पटपरिवर्तन । दृश्यसातवां स्थान-कोशल की सीमा । (मरिक्षका को फुटी में मदिनका और दोपकारायण) वीर्घकारायण-"नहीं, मैं कमी इसका अनुमोदन नहीं करा सकता । श्राप पाहे इसे बहुत धर्म सममें, फिन्तु साँप को जीवन दान देना कमी मी नोकहितकर नहीं है। ___ मल्लिका-"कारायण ! तुम्हारा रफ अमी पहुव खौल रहा। है। तुम्हारी प्रतिहिंसा की वर्भरता वेग पर है, किन्तोसोचो, विचारो कि जिमके हृदय में विश्वमैत्री के घरा करुणा का उद्रेक हुआ है से अपकार का स्मरण क्या कभी अपने कर्तव्य सं विचलित फर। सकता है " ____कारायण-"आप देवी हैं। उस सब जगत को मौर मण्ठल . से भिन्न नो फेवन फल्पना क आधार पर स्थित है, याने सोच