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पृष्ठ:अजातशत्रु.djvu/१२१

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भामरा। मलिका- मैं म्वर्गीय कोराल मेनापति की विधवा हूँ। जिसके भीवन से तुम्हारी बड़ी हानि थी। और उमे पड्यन्त्र के द्वाग मरवा कर तुमने फाशी फा रान्य हस्तगत किया है।" भजात.--" वह पढ़यन्त्र स्वयं कोशलनरेश का था। क्या यह आप नहीं जानती | महिका-"जानवी हूँ, और यह भी जानती हूँ कि मम मृस्पि एट इसी मिट्टी में मिलेंगे।" मात-"सय भी भाप ने उस अपम जीवन की रक्षा की। ऐसी शमा । आश्चर्य ! यह देव फसव्य । ____ मलिफा-" नहीं राजकुमार, यह शेषसा का नहीं मनुष्य का फर्तव्य है। उपकार, फरुणा, ममवेशना और पवित्रता मानव मय के लिये ही बने हैं।" भजात" जमा हो देवी 1 में जाता हूँ ! अब कोशल पर भाक्रमण नहीं करूँगा । इच्छा थी कि इसी ममय इस दुर्घल राष्ट्र को हम्तगत फलें, किन्तु नहीं, अप लौट जाता हूँ ! मलिफा-“आमा, गुरुजनों को ससुष्ट फरो।" (मनात माता है) प्रजातमाता पटपरियर्वन ।