पृष्ठ:अजातशत्रु.djvu/१३१

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मदूसरा। मच्छा स्वाद लेने के लिये बनी है उसे व्यर्थ हिलाना डुलाना। भरे यहाँ सो जब राजा ने एक लम्बी चौड़ी भासा सुनाई, उसी (समय " यथार्य है भीमाम् । कहकर विनीत होकर गईन मुमा ली-यस इति भी । नहीं तो राजसमा में पैठने फोन देता है।" । जीवक-"सुम लोग जैसे पाटुकारों का भी कैसा प्रथम जीवन है।" १ पसन्तक-"और भाप जैसे लोगों का उत्तम १ कोई माने । पाहे न माने रॉग भड़ाये जाते हैं। मनुष्यता का ठीका लिये फिरते हैं।" ___जीवक-"मध्छा भाई तुम्हारा कहना ठीक है, जामो किसी प्रकार से पिंड भी छूटे। पसम्वफ-" पावसी देवी ने कहा है कि 'भार्य जीवक से कह देना कि प्रजात का कोई अनिष्ट न होने पावेगा, केवल शिक्षा के लिये ही यह आयोजन है। और माताजी से विनती से कह देगे कि पद्मावती बहुत शीघ्र उनका दशन भावस्वी में फरंगी।" 'जीवक-"अय्छा तो क्या युट होना अवश्य है ?" । यसन्तक-"हाँ जी, प्रमेनजित भी प्रस्तुत है। महाराज मुदयन से मन्त्रणा ठीक हो गई है। पाक्रमण हुमा ही पाइता है । महा- | राज पिम्बसार की मेवा ठीक रखना भव वहाँ हम लोग मायादी चाहते हैं, पत्तल परसा रहे-समझन न ? मोवक-"अरे पेटू । युर में वो कौवे गिर पेट मरते हैं।