पृष्ठ:अजातशत्रु.djvu/१३२

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प्रजातशत्रुन घसन्तफ-"और इस पापस के युद्ध में प्राक्षण मोजन फरेंगे, ऐसो तो शास्त्र की आशा ही है। क्योंकि युद्ध से प्रायश्चित्त लगता है। फिर तो बिना इ-ह-ह-ह। । (पर पर हाथ फेरता है) जीवफ-"जामो महाराज-दण्डवत-" ( दोनों गाते ) पटपरिर्वतन । दश्यदरवा काष्ठ | मगध में छलना का प्रकोष्ठ । , (पनमा और प्रमाता ) । मलना-"यस थोड़ी सी सफलता मिलते ही अकर्मण्यता' ने सन्तोप का मोदक खिला दिया। पेट भर गया । क्या तुम नहीं जानते कि "सन्तुष्टावमहीपति ।" प्रजात-"माँ ! क्षमा हो। युद्ध में घड़ी भयानकता होती है, | कितनी मियाँ मनाय हो जाती है । मैनिफ जीपन का महत्यमय : चित्र न जाने किम पदयन्त्रकारी मस्तिष्क की मयानप कल्पना है। सम्यता से ओ पाशव दृसि मानव की दयो ई रहती है उसी म