पृष्ठ:अजातशत्रु.djvu/१३८

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अजातशत्रु। वासपी-"छलना ! उसका मुझे डर नहीं है। यदि तुम्हें इससे कोई सुख मिले वो तुम फरो। किन्तु एफ घात और विधार लो, -क्या फोशल के लोग जब मेरी यह अवस्था सुनेंगे तो. अजाव को और शीघ्र मुक्त कर देने के बदले कोई दूसरा काण्ड न उपस्थित करेंगे।" छलना-"तष क्या होगा ?" । वासषी-"मो होगा यह सो भविष्य के गर्म में है, किन्तु मुझे एकवार कोशल अनिच्छा पूक भी जाना ही होगा और प्रजाव को ले पाने की चेष्टा करनी ही होगी। छलना-"यह और भी अच्छा वसलाया-जो हाय का है उसे भी जाने दू। क्यों वासवी ! पन्नावसी को पढ़ा रही हो।" , ' वासवी-"पहिन छलना । मुझे तुम्हारी खुसि पर खेद होता है। क्या मैं अपने प्राण को डरती हूँ, या मुख मोग के लिये जा रही हूँ ? ऐसी अवस्था में आर्यपुत्र को मैं छोड़ कर चली जाऊँगी, ऐसा भी सुम्हें अब तक विश्वास है ? मेरा उद्देश्य केवल विवाद मिटाने का है। छलना-"इसका प्रमाण ?" वासवी-"प्रमाण आर्यपुत्र हैं। छनना, चौंको मत । तुम उनकी परिणीवा पत्नी हो सब भी, तुम्हारे विश्वास के लिये मैं उन्हें तुम्हारी देखरेख में छो जाऊँगी ।हाँ इवनीप्रार्थना है कि उन्हें कोई कर न होने पाये, और क्या करें, वे ही तुम्हारे भी पति हैं।