पृष्ठ:अजातशत्रु.djvu/१४०

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अजातशत्रु। , वाजिरा-"राजकुमार ! मेरा परिचय पाने पर तुम घृण - करोगे और फिर मेरे पाने पर मुह फेर लोगे । तब मैं बड़ी व्यरि हूँगी ? हम लोग इसी तरह अपरिचित रहें। अमिलापायें । रूप बदलें, किन्तु वे नीरव रहें । उन्हें बोलने का अधिकार न है यस, तुम हमें एक करुण दृष्टि से देखो और मैं मृतझता के पृ तुम्हारे चरणों पर चढ़ाफर चली जाया करूँगी । अजात.-"सुन्दरी ! यह अभिनय कई दिन हो चुका । र धैर्य नहीं रुकता है । तुम्हें अपना परिचय देना ही होगा ।" वाजिरा-"मोह ! राजकुमार ! मेरा परिचय पाकर 3 सन्तुष्ट न होगे, नहीं तो मैं छिपाती क्यों ? अमात-"तुम चाहे प्रसेनजित की ही फन्या क्यों न । किन्तु मैं तुम से असन्तुष्ट न हूँगा । मेरी समस्त भद्धा फार सुम्हारे चरणों पर लोटने लगी है सुन्दरी!" ____ वाजिरा-"मैं यही हूँ राजकुमार । कोशल की राजकुमारी मेरा ही नाम वाजिरा है।। । श्रमात-"सुनता था कि प्रेम द्रोह को पराजित करता है श्राज विश्वास भी हो गया। तुम्हारे उदार प्रेम ने मेरे विद्रोह हृदय को विजिस फर लिया। प्रम यदि कोशलनरेश मुझे यद गृह से छोड़ दे आप भी याजिरा-"सत्र मी क्या ? अजात०-"मैं कैसे आ सकूँगा।"