पृष्ठ:अजातशत्रु.djvu/१४२

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अजातशत्रु। फारायण-"यह क्या । पन्दीगृह में प्रेमलीला ! राजकुमारी ! तम फैसे यहाँ आई हो ? क्या यजनियम की कठोरता भूल गई हो। पाजिरा-"इसका उत्तर देने के लिये मैं यांध्य नहीं हूँ " ___ कारायण--"किन्तु यह काएठ एक उत्सर की आशा करता है। वह मुझे नहीं, तो महाराज के समक्ष देना होगा। बन्दी, तुम ने ऐसा साहम क्यों किया ? अजात-"मैं सुम से बात भी नहीं किया चाहता ! तुम्हारे महाराज से मेरी प्रतिद्वन्दिता है । उनके सेवकों से नहीं । फारायण-"राजकुमारी ! मैं फठोर फर्तव्य के लिये पाय हूँ। इस यन्दी राजकुमार को ढिठाई की शिक्षा देनी ही होगी।" __याजिरा-"क्यों, पन्दी माग सो गया नहीं, उसका प्रयास भी उसने नहीं किया, फिर १, फारायण-"फिर, भाइ ! मेरी समस्त प्राशाओं पर तुमने [पानी फेर दिया है । और भयानक प्रतिहिमा मेरे हृदय में जल रही है । उस युद्ध में मैंने तुम्हारे लिये ही " बाजिरा-"सावधान ! कारायण । अपनी जीम मन्द फरो" प्रजात--"यदि तुम्हें कुछ पाहुबल फा मरोसा हो वो इन्द युद्ध में सुम्हें मैं आहान फरवा हूँ।" ___फारायण-"मुझे कोई चिन्ता नहीं, यछि रामकुमारी की प्रतिष्ठा पर न आँच पहुँचे। पयोकि मेरे हदय में सभी मी स्थान है। क्यों रामकुमारी क्या कहती हो।