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दश्यचौथा, स्थान-कोष्ठ । (दोघकागयण और रानी शक्तिमती ) शक्तिमती-बाजिरा मपी-पन्या है। मेरा तो फुछ पश नहीं भौर सुम मानते हो कि मैं इस समय कोशल की कड़ी में भी गई पीती हूँ। किन्तु कोशल के सेनापति कारायण का अपमान करे, ऐमा वो कारायण-"रानी! हम घर से भी गये और उधर से भी गये। विरुद्धक को भी मुँह दिखाने लायक नहीं रहे और पानि भी नहीं मिली। ___ शक्तिमती-"तुम्हारी मूर्खता । जय मगध के युद्ध में मैंने तुम्हें सचेत किया था सब तुम धर्मप्वज यन गये थे। और हमारे बच्चे को भोस्त्रा दिया । अब सुनती हूँ कि यह उदयन के हाय से घायल हुधा है । उमका पता भी नहीं है।" फारायण-"मैं विश्वास दिलाता है कि कुमार विकक श्रमी नीवित है । वह शीघ्र कोशल प्रायेंगे।" शक्तिमती-"किन्तु तुम इसने सरपोक वाम हो, मैं ऐसा नहीं समझती थी। जिसने वध किया उसी की सेवा करके अपर में भोद में यदि जानती