पृष्ठ:अजातशत्रु.djvu/१५२

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'अजातशत्रु कारायण-"तब क्या फरसीं ? अपने स्वामी को मार कर रान्य पर अधिकार करके अपना गौरव, अपनी विजय घोपणा भाप सुनाती १५ शक्तिमती-"क्या प्राणीमात्र में साम्य की घोषणा करनेवाले मनुष्य ही हैं। जब कि वे अपने समाज के प्राधे आम को इस वरह पददलित और पैर की धूलि समझे हुए हैं। क्या उन्हें अन्स - फरण नहीं है क्या बियाँ अपना कुछ भस्विस्व नहीं रस्सवीं ? क्या उनके जन्मसिद्ध कोई अधिकार नहीं हैं ? क्या स्त्रियों का सप कुछ, पुरुषों की छपा मे मिली हुई भिनामात्र है। मुझे इस तरह पदम्युत करने का फिमी को क्या अधिकार था ?" काययण-"किन्तु, जब कि उनके मगठन में सनके शारीरिक और प्राकृतिफ विफाम में ही एक परिवर्तन है जो स्पष्ट यवमाता है कि वे शामन फर सफती हैं किन्तु अपने प्राय पर, ये अधिकार जमा सकती हैं उन मनुष्यों पर जिमने कि समस्त विश्व पर अधिकार जमाया है। वह मनुष्य पर राजरानी के समान एका घिपस्य रस्य सफदी हैं तप उन्हें इस दुरमिमन्धि की क्या आप श्यकता है। जो, केपल सदाचार और शान्ति को ही नहीं शिथिल फरती, फिन्तु उच्छिमलता को भी प्रापय देती है । ___ शक्तिमती-"फिर यार पार यह अवहेलना कैसी ? यह यहाना सा? हमारी असमर्थता सूचित कराफर हमें और भी निर्मल आराफाभों में छोड़ देने की कुटिलता क्यों है ? क्या हम मनुष्य फे समान नहीं हो सकी। पया चेष्टा करके हमारी स्वतंत्रता नहीं TH