पृष्ठ:अजातशत्रु.djvu/१५४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

अजातशत्र। पड़ती हो। देवी 1 तुम्हारे राज्य की सीमा विस्तृत है, और मनुष्य की सफोर्ण। कठोरता का उदाहरण है मनुष्य, और कोमलता का विशेपण है स्त्री मासि । मनुष्य फ़रता है तो स्त्री फरणा है। जो, 'भन्तर्जगत का उपतम विकास है जिसके यल पर समस्त सदाचार ठहरे हुए हैं। इसीलिये प्रकृति ने उसे इसना सुन्दर और मनमोहन भावरण दिया है, रमणी का रूप। संगठन और आधार भी मे ही हैं। उन्हें दुरुपयोग में न ले आओ। अहकार की पाशववृत्ति जिसका परिणाम कठोरता है सियों के लिये वो क्या मनुष्य के लिये भी नहीं है। यदि कोई व्यक्तिगत स्वार्थ से उसे स्वीकार करता है सो वह केवल उसका स्ववत्रता का बहामा मात्र है। यह अनुकरणीय नहीं है वह मियम का अपवाद है। ससे नारी जाति जिस दिन स्वीकृत कर लेगी, इस दिन समस्त सदाचारों में विप्लष होगा। फिर कैसी स्थिति होगी, यह कौन कह सकता है। शहिमसी-फिर क्या पदच्युत करके मैं अपमानित और पददलित नहीं की गई ? क्या-यह ठीक था ?" ____ कारायण-"पदच्युत होने का अनुमय करना मी एक दम्म मात्र । यो । एक स्वार्थी के लिये समाज दोपी नहीं हो सकता। क्या मलिका देवी का उदाहरण कहीं दूर का है। यही लोलुप नर- पिशाच हमारा और आपका स्वामी, कोशल का सम्राट् ! क्या ३ । उनके साय फर धुका है यह आप क्या नहीं मानती हैं। फिर भी . उनकी सती सुलम वास्तविकता देसिये और अपनी कृत्रिमया की . तुलना कीजिये।