सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:अजातशत्रु.djvu/१६१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मह तीसरा गौवम-"यह दम्म मुम्हाग प्राचीन स्कार है क्यों प्रमेनजित! क्या दाम दासी मनुष्य नहीं है? क्या का पीढ़ी ऊपर सफसुम प्रमाण, दें सफसे हो कि सभी राजकुमारियों की सन्तान इस सिंहासन पर वेठो हैं, या प्रतिमा फरोग फि कई पोदी आने वाली तक दासी- पुत्र इसपर न बैठने पायेंगे। यह छोटे बड़े का भेद क्या अमी इम सकीर्ण हृदय में इस सरह घुसा है कि नहीं निकल सफचा ? क्या जावन फी धर्तमान स्थिति देख कर प्राचीन अन्य विश्वासों को, जो न जाने किस कारण होती भाई है तुम बदलने के लिये प्रस्तुत नही हो क्या इस सणि भव में तुम अपनी स्वतन्त्र सचा अनन्तकाल तक पनाये रखोगे ? और भी क्या उस भार्यपद्धति को सुम भूल गये कि पिता से पुत्र की गणना होती है । राजन् सावधान हो, इस अपने मुयोग्य शक्ति को स्यम कुण्ठित न बनायो। पपपि इमने कपिलवस्त में निरीह प्राणियों का पप करके पड़ा। अत्याचार किया है और कारणवरा करता भी यह सूप फरने लगा था, किन्तु मप इसफा खय देषी मलिका की रुपा से शुद्ध हो गया है। इसे सुम युषराम पनामो" सय-धम्य है ! धन्य है । प्रमेन-"तप जैसी भाशा-इस व्यवस्था का कौन प्रसि- कम कर सकता है, और यह मेरी प्रसमा का कारण भी है। प्रभु, आपकी दया से मैं आज सर्व सम्पम हुआ। और क्या भाज्ञा है।