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पृष्ठ:अजातशत्रु.djvu/१६८

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प्रजासशन। मागन्धी-'अन्त म हमारी विजय हुई नाथ ! हमने अपने जीवन के प्रथम धेग में ही भापको पाने का प्रयास किया था। फिन्तु यह समय नहीं था, यह ठीक नहीं था। आज मैं अपने स्वामी को अपने नाथ को, अपना-फर धन्य हो रही हूँ। गौतम-"मागन्धी ! अब उन अतीव के विकारों को पयों स्मरण करती है। निर्मल हो जा ___मागन्धी-"प्रमु, मैं नारी हूँ जीवन मर असफल होती आई हैं। मुझे उस विचार के सुख से न वन्चित कीजिये। नाय । जन्म भर के पराजय में भी आज मेरी विजय हुई। पतितपावन ! यह उद्धार आपके लिये भी महत्व देने वाला है और मुझे छो सब कुछ " _गौतम-~-" अच्छा पाम्रपाली ! मुझे भूख लगी है। कुछ स्थिलाओ।" मागन्धी-(आम की टोकनी नाफर रखती हुई) "प्रमु । अथ च भाम्र-फानन की मुझं आवश्यक नहीं, यह सप फो समर्पित है।" (संघका प्रवेश ) / घ-"जय हो अमिताभ की जय हो । पुख शरण । मागधी-"गच्छामि । गौतम-"संपं शरण गच्छामि। सप मिला कर-"धर्म शरणं गच्छामि ।" (पटपरिवर्तन)