मह तीसरा श्यआठवा . स्थान-प्रकोष्ठ । [पप्रावती और एसमा । ] छमना-~"बेटी । तुम पढ़ी हो, मैं युद्धि में तुम से छोटी हूँ। मैने सुम्हारा अनावर फरफे सुम्हें भी दुख दिया और भ्रान्त पय पर चल कर स्वय मी दुस्त्री हुई। पना-माँ मुझे लखित न करो । तुम, क्या मेरी नहीं हो। माँ,मामी को बचा हुआ है । आहा कैसा सुन्दर नन्हा सा यक्षा है " छलना-"पमा। तुम और अमाव सहोदर भाई और पहिन हो, मैं वो सचमुच एफ यवटर । यहिन पासपी । क्या मेराअप राध क्षमा कर देगी! (वासपी का पण) छलना-(पैर पर गिरकर) "कुणो की तुम्ही वास्तव में जननी हो । मुझे तो पोम टोना था। पा०-"माँ 1 छोटी माँ कह रही है कि क्या मेय अपराध पम्य है?" पासपी--(मुसक्या कर) "कमी नहीं, इसने कुणीक को उत्पन परके मुझे बड़ा मुख पिया, जिसका इस छोटे से लय से मैं उपभोग नहीं कर सकती । इस लिये, मैं इसे पमा नहीं करेगी। पसना-हँसकर) "यो पहिन में भी तुम से लदाई काँग्गी । क्योंकि मेरा दुखहरण फरके हम ने मुझे सोखलीकर
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