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पृष्ठ:अजातशत्रु.djvu/५२

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अजातशत्रु। - सकती हो। किन्सु अजात को न ले जाना-क्या कि तुम्हारा मागे टेदा है। अभागिनी " (इलमा का क्रोध में पायान) गौतम-"यह तो मैं पहिले मेही मममना था,किन्तु छोटी रानी को और तुम लोगों को भी विचार से काम लेना चाहिये ।" म०थिम्यसार- भगवन् । हमारा क्या अविचार श्रापने रेस्या ।" गौतम-"शोसल पाण-मधुर भ्यवहार से क्या वन्य पशु मो वश में नहीं हो जाते ? राजम, ससार भर के उपद्रवों का मूल F: व्या है। इन्य में जिसना यह घुमता है उसनो कटार नहीं। वाक्- मयम विश्वमैत्री की पहिली सीढ़ी है। प्रस्तु, अय मैं तुम से एक काम की बात कहा चाहता है। क्या तुम मानोगे क्यों महारानी ? म. गिम्थसार--"अवश्य " गौतम-"तुम आज ही भमातशत्रु को युवराज धना हो। और इस मीपण भोग मे पुछ विभाम लो, क्यों कुणीक । तुम गव्य का कार्य मन्त्रि परिपम् की सहायता से चला मकोगे।" फुपीक-"क्यों नहीं । पिताजी यदि सहमत हो।" गौतम-"यह योम जहाँ सफ शीघ्र हो यदि एक अधिकारी स्यकि को सौंप दिया जाय तो मानव को प्रसन्न ही होना चाहिये । क्योंकि राजम्, इसमे फभी न कभी तुम हटाये जानोगे। जैमा फि विश्व भर का नियम है । फिर, यहि तुम उमारसा मे उसे भोग कर छोड़ दो तो इममें क्या दुस्व-